Book Title: Dharm ke Dash Lakshan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 188
________________ अभिमत 0 १८७ यह है कि अधिकांश लोग विज्ञान के अर्थ पर तो तुरन्त सहमत हो जाते हैं, किन्तु ये ही लोग धर्म के अर्थ पर एक नहीं हो पाते।" किन्तु जब कोई 'धर्म के दशलक्षण' को प्राद्यन्त पढ़ जाता है तो उसे प्राइन्स्टीन की गांठ खोलने में काफी सुविधा होती है। वस्तुतः उसे इस किताब में से धर्मान्धता के बाहर होने की एक तर्कसंगत निसनी मिल जाती है। श्री कानजी स्वामी ने धर्म को विज्ञान का धरातल दिया है, और प्रस्तुत पुस्तक उसी शृंखला की एक और प्रशस्त कड़ी है। मुझे विश्वास है इसे पूर्वाग्रहों और मतभेदों से हटकर धर्म को एक निष्कलुष, निर्मल. निर्धूम छवि पाने के लिए अवश्य पढा जाएगा । डॉ० भारिल्ल बधाई के पात्र हैं कि उन्होने एक सही वक्त पर सही काम किया है। अभी हमें विद्वान् लेखक से लोकचरित्र को ऊंचाइयाँ प्रदान करने वाले अनेकानेक ग्रन्थों की अपेक्षा है । ___ - नेमीचन्द जैन * डॉ० कन्छेदीलालजी जैन, साहित्याचार्य, शहडोल (म०प्र०), सह-सं० 'जन संदेश' पुस्तक में प्रत्येक धर्म के अन्तरंग पक्ष वो अच्छी तरह स्पष्ट किया है । छपाई तथा टाइप नयनाभिगम है । मुद्रण सम्बन्धी अशुद्धियों न होना भी प्रकाशन की विशेषता है। -कन्छेदीलाल जैन * डॉ० कुलभूषण लोखंडे, सोलापुर (महाराष्ट्र), संपादक 'दिव्यध्वनि' (मासिक) अध्यात्म-विद्या के लोकप्रिय प्रवक्ता तथा उच्चकोटि के विद्वान डॉ० हुकमचद भारिल्ल हाग लिग्वित "धर्म के दशलक्षा' नामक पुस्तक में पर्युषण में होने वाले उनमक्षमादि दशधर्मों के मबघ में मार्मिक विवेचन प्रस्तुत हुना है। इस प्रथ में डॉ. भारिल्लजी ने दशलक्षगण महापर्व के मम्बन्ध में ऐतिहामिक विवरण देकर उत्तमक्षमा मे लेकर उत्तमब्रह्मनयं तथा क्षगावागी तक का गंभीर एवं नलम्पर्शी विवेचन किया है ।......"डॉ० भारिल्ल की प्टि वैमे पर मे स्त्र तक ले जाने की, विकार में निर्विकार की ओर या विभाव से म्वभाव की ओर ले जाने की मूक्ष्म है, फिर भी मग्ल है; यह इम ग्रथ के द्वारा स्पष्ट होता है। हम समझते हैं कि ऐसे मूलग्राही व धर्म के अंगों का गही चिन्तन प्रस्तुत करने वाले ग्रथ की प्रतीव प्रावश्यकता है । वह प्रावश्यकना डॉ० भारिल्ल ने इस ग्रंथ द्वारा पूर्ण की है। -कुलभूषण लोखंडे * डॉ. नरेन्द्र भानावत, प्राध्यापक, राज० विश्वविद्यालय, सम्पादक 'जिनवाणी' ___ डॉ० हुकमचन्द मारिल्ल प्रमिद्ध प्राध्यात्मिक प्रवक्ता होने के साथ-साथ प्रबुद्ध विचारक, मरम कथाकार पोर मफल लेखक है। उनकी मद्य प्रकाशित पुम्नक 'धर्म के दशलक्षण' एक उल्लेखनीय कृति है। इममें उत्तमक्षमा-मादव मादि दशधर्मों का गूढ़ पर सरस, शास्त्रीय पर जीवन्त, प्रेरक, विवेचन - विश्लेषण हुमा है। लेखक ने धर्म के इन लक्षणों को चित्तवृत्तियों के रूप में

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