Book Title: Collection of Kalka Story Part 02
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab

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Page 174
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० श्रीमज्ञातसूरिविरचिता चितमाहि सिद्धांतनूं वचन किसिउं सांभरिउ ! जं सांमलि [सात]वाहण राजा श्रीकालिकसूरिनई आग्रहई पांचमि थकुं चउथई पजूसण आणि, ॥५५॥ यथा चतुर्थी जिनवीरवाक्यात् , संवेन मन्तव्यमहो ! तदेव । प्रवचितं+ पर्युषणाख्यपर्व, यथेयमाज्ञा महती सदैव ॥५६॥ जिम जिन श्रीमहावीरि इम कहिउं छइ सिद्धांतमाहि । श्रीसंघनी अनुमतिई कालिकसूरिइं पांचमि थकुं पजूसण चउपि(थि)ई करई तिम आधु सदाइ सविहुं कुणिहिं मानिएं । जिननं वचन एहवं छह, तेह भणी आज लगइ चउत्थिई पजूसण हुइ छइ ॥५६॥ अथान्यदा कालवशेन सर्वान् , प्रमादिनः सूरिवराश्च साधून् । त्यक्त्वा गताः स्वर्णमहीपुरस्थानेकाकिनः सागरचन्द्रसूरीन् ॥५७॥ अथ एतलानु अनंतर कालनई विशेषिई श्रीकालिकसूरिना परिवारना साधु महात्मा प्रमादीया थि । गुरु महात्मानइं सूता मेल्ही स्वर्णपुर नगरि सागरचंद्रसूरि छइ तिहां पुहता। तिहां आव्या एकला सागरचंद्रसूरिइं न ओलख्या । रूप व(प)रावतपणई करी । पोसालमाहि डोसु तपोधन एकई पासई आवी रहिउ ॥५७॥ तेषां समीपे मुनिपः स तस्थौ, ज्ञातो न केनापि तपोधनेन । शय्यातराद् ज्ञातयथार्थवृत्ताः, प्रमादिनस्ते मुनयस्तमीयुः ॥१८॥ तिसिइ पइठाण पुर पाटणि शय्यातर श्रावके महात्मा हाकी करी काढ्या । स्वर्णपुर भणी आव्या। सागरचंद्रसरे पछिउं गुरु किहां छह ! पहि[ला] आव्या तेहे कहिउ । गुरु पाछलि आवई छई । सागरचंद्रसूरि साहमा गिआ । पाछिला महात्मा पूछ्या, ते कहई; "गुरु आगलि पुहता"। सघले कुडउ बोलउ । पछह सागरचंद्रसूरे पोसालइ आवी ते वृद्धगुरु भणी मानी पगि लागी खमावीनई समस्त महात्माए खमावी करी गुरु मनाव्या ॥५८॥ (५) जिनेश्वरः पूर्वविदेहवर्ती, सीमन्धरो बन्धुरवाग्विलासः । निगोदजीवानतिसूक्ष्मकायान् , सभासमक्षं स समादिदेश ॥१९॥ श्रीकालिकसरि आपणा परिवार सहित पइठाण पुरि पाटणि समाधिई रह्या छई । इसिइ समइ सौधर्मेन्द्र महाविदेहि क्षेत्रि श्रीसीमंधरस्वामि कन्हलि बइठा हता । श्रीसीमंधरस्वामि उपदेश देता धर्मनइ अधिकारि आविई । विचार करता निगोद जीवनु विचार आविउ । तिसिइ इंदिई पूछिउं, निगोदनु विचार रूडई प्रीछवउ । पछह परमेश्वरि निगोदनु विचार परिपूर्ण कहिउ ॥५९॥ +P आदर्श टिप्पण्यामेते श्लोका उड़िताः-श्रीवीरनिवते वसु वर्षशतेषु भशीच्या त्रिनवत्या वाऽधिकेषु इयं वाचना बाता, यदा पञ्चम्याव चतुर्यों पर्युषणा प्रववृते, यतः तेण्ड य नवसएहि, समइकतेहि वद्धमाणाओ। पज्जुसवणा चउत्थी, काल[ग]सूरीहि तो ठविया ॥१॥ बीसहि दिणेहि कप्पो, पंचगहाणीह कप्पठवणाय । नवसझतेणउएहिं, वोच्छिज्जा संघआगाए ॥२॥ सालाइणेण रमा, संघाएसेण कारिओ भयवं । पजू(ज्जू सवणा चउत्थी, चाउम्मासी उदसीए ॥३॥ ...मासपडिक्मणं, पक्खियदिवसम्मि पउविहो संगो। बयसयतेणउएहिं, भायरए तं पमाणं तु ॥४॥ इति तीयोगारादिषु भवनात् । For Private And Personal Use Only

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