Book Title: Collection of Kalka Story Part 02
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कालिकाचार्यकथा।
२२५ न पश्यति दिवोलूका, काको नक्तं न पश्यति ।
कामान्धः कोऽपि पापीयान् , दिवा नक्तं न पश्यति ॥४॥ घूयड दीहिं न देषइं । काग रात्रिं न देषई । पुणि कामांध पापी दीहिं अनइं रात्रिं न देषहं । एह कारणतो अंध इतई अंतेउरमांहि ते सती सरस्वती भगवती राषी । हा बांधव । हा कालिकाचार्य ! हा तात वैरसिंह !, हा माता सुरसुंदरि !, हा गुरु गुणाकारा सूरि ! माहरउं चारित्ररत्न गर्दभिल्लि नृपाधमि लीजतउं राषओ राषओ । सूरीस्वरे तथा श्रीसंघिई, मंत्रीश्वरे, प्रधान पुरुषे कहूं, तूई न मेल्हइ । इसिउं कहिउं छह
यत्रास्ति राजा स्वयमेव चौरो, भाण्डिवहो यत्र पुरोहितश्च
वनं भजध्वं ननु नागरा भो !, यतः शरण्याद् भयमत्र बातम् ॥५॥ __ जिहां राजा स्वयमेव-आपहणीइ चोरी करइ । जिहां पुरोहित भंड विद्या करइ, अहो लोको ! तओ वन सेविओ। जेह तउं रखोपउं जोईइ, तेह हतओ भय हुइ । इमइ सांभलिई इतउं पुणि न मेलई । संघ समु(म)क्ष्य गुरि श्रीकालिकाचार्यइं इसी प्रतिज्ञा कीधी जे, गर्दभिलिई श्रीसंघर्नु कहुं नथी कीघउं अनइ महासतीनई अवज्ञाभाव कीधओ छई । जिनशासनमाहि काई नथी लेषव, तओ मुंह कालकाचार्यनुं काई नथी मान, तओ पणि तओ प्रमाण जु एह गर्दभिल्ल रहई राज्य थकु उन्मूली नई नांषउ, चोटी साही मांथा पाषती फेरी राज्य थकु काढउं तु जाणिज्यो । जु ए बलवत्तर तु किसुं, एहनइ घणउं सेनि तु किसउ , एहनइ गर्दभी विद्यार्नु पराण तु किसउ !, इसां वचन बोलतओ उन्मत्तनी परि भ्रमह । एहनइ गढनूं पराण, द्रव्य पराण तु किसउं ! असगं प्रिथलपणूं करतु बोलतु हीडइ । साहित्यस्यां वचन बोलतु जाणी लोके राजा गर्दभिल्ल चित्तमाहि निदिओ। ए राजानइ धिग पडओ, जीणहं पापी राजाए गुरु इसी दुर्दि(द)शा पाडिओ । एतलई वली महंते राय वीनविओ, पसाओ करि ए साध्वी व्रतस्था महासती मेल्हि । राजा रीसाविइ हुंतई तेह मुहतां रहहं कहिउं तुझे आपणा मा-बाप रहई जई सीषामण दिओ । इसिउँ रायन वचन सांभली ते प्रधान पुरुष मौनि थई रह्या । इसउं स्वरूप सांभली श्रीकालिकाचार्य नगरतओ बाहिरि नीसर्या । गच्छ गीतार्थ महातमानइं भालवी, अवधूतनु वेस करी, ओघओ मुहपती गोपवीनइं पश्चिम दिशि सिंधु नदीनइ पारि शककूल इसिं नामि स्थानकि ग्या । तिहां नगरनइ परिसरि शाकी कुमर गेडी दडे रमता देषी उभा रह्या । तेह रहई रमता दडओ अवह कूपमाहि पडिओ । सह सचिंत थई रहिउ । गुरे तेहजिना बाण धनुष लेई दृष्टि वेधी दिषाडते इते ते दडओ एक एकनो पूषई बाण संधान करी ईणी रोतिइं दडु काढिउ । सवे शाकी कुमार रलीयायत हुआ। इसिउं कहिउँ छई
मानमुल्लसति यत्पदे पदे, संपदे भवति वाक्यडम्बरः ।
धीमतामभिमतार्थसिद्धये, यद्धि देशगमनः स उत्सवः ॥६॥ जे बुधिवंत छई, जे विद्वांस हुइ, ते जु विदेश जाई तो हइ संपदा। जि हुइ बोलता आधा काज सीमई, मननउं वांछउँ कार्य सीझइ । एतलई स्यु आश्चर्य सिउं संदेह काई ।
विद्वत्त्वं च नृपत्वं च, नैव तुल्यं कदाचन ।
खदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥७॥ ___ विद्वांसपणं अनइं राज्य पदवी सिरीषां न कहांइ काई । विद्वांस जिहां जाइं तिहां कला विधानइ चमत्कारि करी मानहं । इम तीणे कुमारे मानिओ, पूजिओ, सत्कारिओ। साथिई लेई आपणा पिता रहा जणाव। चारु बाणी
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237