Book Title: Collection of Kalka Story Part 02
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab

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Page 235
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणरत्नसूरिविरचिता कालिकसूरिकथा । [ रचनासंवत् १६ शतादि] अंपिका पाय मणमेसो, कालिक कवित करेसो । धारावासनयर निरूपम, तीह पुर कुण दीजइ उपम ॥१॥ तीणइ पुरि धैरह सिंघ बलवंत, राज करइ जयवंत । सुरसुंदरि तस घरिणी राणी, रति मीतिरूप समाणी ॥२॥ तेह बिहु अछइ कुमार, कालिक इति सविचार । एफवार खेलि रवाडी, कुमर गयु धनवाडी ॥३॥ विहां जोता मुनिवर दीग, गुणाकरसूरि बईठा । कुमर आवी गुर पासि, चांदी मनह उलासि ॥४॥ देसणा गरि तव दीधी, तस काया निरमल कीधी । देव-गुर-धरम तिहां जाणी, दीक्षा अपरि भाव इति आणी ॥५॥ माय बाप सजन मनावी, कालिक सरसति आवी । गुरु साषि दीक्षा लेई, संयम पालइ ए बेई ॥६॥ गुणाकरि विद्या सवे आपी, कालिक निज पाटि थापी । कीधा इ(अ)तिसय प्रमाण, मयण मनावई ए आण ॥७॥ पणि गुण हर वसइ देह, पिमुण सूयण सम नेह। सावधितणं निधान, गणधर युगह प्रधान ॥८॥ छेदइ करम अपार, श्रीगर इति सविचार । ..............गुण नवि कामई ए पार ॥९॥ नवकारमंत्र आराधइ, रुषिराज निज काज साधा । तपनिधि साइसधीर, नमइ निरंतर वीर ॥१०॥ परिवर जगि जयवंत, आवइ क्रम जीपी पळवंत । कीधुं सफल संसार, महीयलि करइ विहार ॥११॥ गणधर ऊजेणी पहता, तिहां राउ गर्दभिक इंता । सूता साप जगावइ, रिपु यइ सती य पावइ ॥१२॥ गणइ नहीं पाप जि काइ, छलि बलि लीइ म लीई । भावी संघ सामंति, राम प्रति असि कहति ॥१३॥ For Private And Personal Use Only

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