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(३५) ॥ * ॥ ढाल ४ नाभि अने मरुदेवा ए चाल ॥ ॥ दिव तिरयंच तणी गति धागति कहीये अशेष । जीवजमें इण पर नवमांहें करम विशेष । आऊ संख्याती जे नर तिर्यंच विचार । ते सगला तिरयंचां माहें लहै अवतार ॥२५॥ जिण तिरयंचां माहें आवे नारक देव । ते कह्या पहिली तिण कारण न कहुँ हेव । पंचेंड़ी तिरयंच संख्याते आऊखे जेह । ते मरी चिहुं गतिमां जावे यहां नहीं संदेह ॥ २६ ॥ थावर पांच तीने विकलेंजी आये कहावे । तिहांथी आउ संख्याता नर तिरयंचमें आवे । विकल चवी लहै सर्व विरति पिण मुग तिन पावे । तेऊ वाऊ श्री आयो तेहनें समकित नावे ॥२७॥ नारक वरजीने सगलाही जीव संसार । पृथवी श्राउ वनस्पती माहें लहै अवतार । ए तीने इहां श्री चवि आवे दसे गमें । थावर विकल तिरी नर माहें उत्पत्ति पामें ॥ २०॥ पृथवी काय आदि देई दस दंमके एह । तेऊ वाऊ माहें श्रावी उपजे तेह । मनुष्य विना नवमाहें तेऊ वाऊ बें जावे। विकलेंजी ते दसमाहिं जावे पूगही आवे ॥ श्ए ॥ एम अनादि तणो मिथ्याती जीव एकंत । वनस्पती माहें तिहां रहीयो काल अनंत । पुढवी पाणी अग्नि अनें चोथो वलि वाय। काल चक्र असंख्याता तांई जीव रहाय ॥ ३० ॥ बेइंजीते इंजी अनें चौरिंडीमकारे । संख्याता वरसां लगे नमियो कर्म प्रकारे सात आठ जव लगितां नर तिरयंचमें रहियो । हिवमानव लव लहिनें साधुने वेषमें रहियो ॥ ३१ ॥ राग द्वेष बूटे नहीं किम होवे चूटक वार । पिण जे महारे मन सुधता
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