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( १७३ )
जैतसी रे | सूत्री ज्यो मुज निस्तार रे ॥ ए ॥ जिनवर० ॥ इति ष्टमाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥
॥ अथ नवमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥
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॥ जलगमी उलगमी करिये गीतारथ गुरू ती रे । मान मोमी मद बोकी । सातना असातना टाली नमियें पूजीयें । वंदिये कर जोक | जेलगमी० ॥ १ ॥ सिद्धांत सिद्धांत सुणावे सखरा वांचने रे । बूकवे अरथ विचार | इंद्र चंद्र चंद्रसूर जिम सह गुरु सेवी ये रे । विनय करी वारं वार | उं० ॥ २ ॥ नवमे विनय समाहि अजे मेरे । नव नवा अरथ विचार | उसे उसे चोथे थिवर वरण व्यारे । समाधि थानक घ्यार । ॥ जं० ॥ ३ ॥ पहिली पहिली विनय समाधि विधिजली रे । बीजी सूत्र समाधि । त्रीजी तप २ चोथी आचारनी रे | च्यार जेद श्रराधि ॥ जं० ॥ ४ ॥ समाधी समाधी राधे
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सुख सिलहे रे । अजर अमर पद देव । बेकर जोमी बेकर जोमी वांदे जेतसीरे । गुणवंत श्रीगुरूदेव ॥ ए ॥ जै० ॥ इति नवमाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥
॥ अथ दशमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ || ढाल || अरिहंत वचने दीक्षा दी जी । निरूपम रस जाए । दसम निक्षुनाम अजय में जी वम्यु न वांबे सुजाए ॥ अरि० ॥ १ ॥ प्रथवी न खणे खणावे नहीं जी । पीवे न पात्रे सीतल नीर | जालेन जलावे तेऊ कायनें जी । वींजे न वीं जावे समीर | ० ॥ २ ॥ वेदे न वेदावे तरूहरी कायनें जी । वरजे बीज सचित्त । पचे न पचावे जोजन रसवती जी ।
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