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( २२० )
ari ani वाज होता । महेल बनाया गगनोका ॥ कल्याण पार्श्वनाथ नामका । नित नित वाजे चोघमा || तीन लोकमें सच्चा साहिब । पार्श्वनाथ अवतार वा ॥ १ ॥ वणारसी नगरी में तेरा जनम हे | माता वामाके नंदा || अश्वसेनके कुलमें शोने । जेसा सरद पूनमचंदा || स्वर्ग लोकमें दुवा आनंदा । इंद्राणी मंगल गावे । तेत्रीस कोम देवता मिलकर । श्रव करकुंवे ॥ २ ॥ कोइ श्रावता कोइ गावता । कोइ नाम लेता देवा ॥ चोस इंद्र अरज करता । चंद्र सूरज करता सेवा । केइ सुरनर साहेबके आगे अरज करता खमा खमा ॥ जिनके सरूपको पार न पावे। जिनका गुण हे सबसे वका ॥ ३ ॥ दूर देससें या जोगी । वने जोर तपस्या करता । नीचे लगाता ज्वाला जोगी । वरे व कोके खाता । बारे वरसकी उमर प्रजुकी । छोटे पनमें बहोत कला || बरोबरी के लिये सोबती । तपशी कूं देखए चला ॥ ४ ॥ ज्ञान देखके बोले जोगीसें । एसी तपस्या कूं करता श्री जोगी तेरे वने लकदेमें बका नाग इक अध जलता ॥ पारसनाथ जोगीसुं कहता । तोबी जोगी नहिं सुता । लकने दिये फेंक जंगलमें लोक तमासा देखता ॥ ५॥ क्या की या बे जोगी तुमने । बका नागकूं जला दिया । दिया सार नवकार नागकूं । धरणीधर पदवी पाया । anी उमेद या साहिब । संवत्सरीका दान दिया । माता पिताकी आज्ञा लेकर महाराजने जोग लिया ॥ ६ ॥ राज ahhh चले जंगलमें । जुगती सें कालसग्ग किया । वमे धीर गंजीर प्रभूनें। तीन लोकमें नाम किया । उष्ण कालकी वकी
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