Book Title: Bruhat Stavanavali
Author(s): Prachin Pustakoddhar Fund
Publisher: Prachin Pustakoddhar Fund
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(३०३) पारणो, देतो वोहरी आण खलना ॥ जरत श्रयो चक्रवर्ति जलो, ते पण मुझ फल जाण ललना ॥ दाम् ॥ ५॥ आप्या उमदना बाकला, उत्तम पात्र विशेष ललना ॥ मूलदेव राजा अयो, दानतणा फल देख ललना ॥ दा० ॥ ६॥ प्रथम जिनेश्वर पारणे, श्रीश्रेयांशकुमार ललना ॥ सेलमीरस वहरावियो, पाम्यो नवनो पार खलना ॥ दा० ॥ ७॥ चंदनवाला बाकुटा, पमिलान्या महावीर ललना ॥ पंचदिव्य परगट थया, सुंदर रूप शरीर ललना ॥ दा० ॥ ॥ पूरव लव पारेवडूं, शरणे राख्यूं सूर ललना ॥ तीर्थकर चक्रवर्तिपणे, प्रगटयो पुन्य पडूर लखना ॥ दा॥॥ गजनव शिशलो राखीयो, करुणा कीधी सार ललना ॥ श्रेणिकने घर अवतस्यो, अंगज मेघकुमार खलना दा० ॥१०॥ श्म अनेक में ऊधस्या, कहतां नावे पार लखना ॥ समयसुंदर प्रनु वीरजी, मुझ पहिलो अधिकार ललना ॥११॥
॥ दोहा ॥ शील कहे सुण दान तुं, किस्यो करै अहंकार ।। आमंबर या पदुर, याचकसुं विवहार ॥१॥ अंतराय वलि ताहरै, जोगकरम संसार ॥ जिनवर कर नीचो करै, तुमने पमो धिक्कार ॥२॥ गर्व म कर रे दान तूं, मुझ पूर्व सऊ कोय ॥ चाकर चालै आगले, तो स्युं राजा होय ॥३॥ जिनमंदिर सोनातणो, नवो निपावे कोय ॥ सोवन कोटी दानदिये शीयल समो नहि कोय ॥॥ शीले संकट सक टले, शीले जश शोनाग ॥ शीले सुर सानिध करै, शील वमो वेराग ॥ ५ ॥ शीलै सर्प न आनमै, शीले शीतल श्राग ॥ शीलै अरि करी केसरी, जय नावै सव नाग ॥६॥ जन्म मरणना
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