________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ५३ )
तम तमाम ॥ श्री० || ६ || नरक सात कही ए सही । करम कठिन कर जोर । जीव करम वस ते सही । उपजे तिहीज ठगेर ॥ श्री० ॥ ७ ॥ बेदन जेदन तारुना । जूख त्रिषा वलि त्रास । रोम रोम पीमा करे | परमाम्मी तास ॥ श्री० ॥ ८ ॥ रात दिवश खेत्र वेदना । तिलनर नहीं जिहां सुक्ख । किया करम जे जोगवे । पामें जीव बहु एक्ख || श्री० ॥ ए ॥ इक दिनरी नवकारसी । जे करे जाव विशुद्ध । सो वरस नरक नो ऊखो। दूर करे ज्ञान बुद्धि ॥ श्री ॥ १० ॥ नित्य करे नव कारसी । ते नर नरक न जाय । न रहे पाप वलि पावला । निरमल होवे जी काय ॥ श्री० ॥ ११ ॥ || ढाल ॥ २ ॥ श्रीविमला चल सिरतिलो एदेशी ॥ सु गोतम पोरसी कियां महा मोटो फल होय जावसुं जे पोरसी करे। रगति वेदे सोय । श्री० ॥ १२ ॥ नरक मांहें जे नारकी । वर एक हजार । करम खपावे नरकमें । करता बहुत पुकार | सु० ॥ १३ ॥ एक दिवशनी पोरसी । जीव करे इक तार । करम हों सहस एकना । निहचेसुं गणधार ॥ सु० ॥ १४ ॥ रगति मांहें नारकी । दस हजार प्रमाण | नरक आयु खिए एकमें । साढपोरसी करे हांण ॥ सु० ॥ १५ ॥ पुरम करे नित जीव जे । नरके ते नवि जाय । लाख वरष करमनें दहे । पुरम करम खपाय ॥ सु० ॥ १६ ॥ लाख वरष दश नारकी । पामें दुःख अनंत इतरा करम एकास । दूर करे मनखंत || सु० ॥ १७ ॥ एक कोकि वरसां लगे | करम खपावे जीव । नीवीय करतां जावसुं । डुरगति ह
For Private And Personal Use Only