Book Title: Bruhat Stavanavali
Author(s): Prachin Pustakoddhar Fund
Publisher: Prachin Pustakoddhar Fund
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(२५६) वीनती तूं हि सुणंदा हे॥२५॥क्या कत्थू गहां हुकम अदया। समकित मन जलसंदा हे । सिद्धां दा वासा तिहां रहासा। तुझ सेवक विलसंदा हे । घग्घर नीसांणी पास वखाएं। गुण जिनहर्ष कहंदा हे ॥ ३० ॥ इति श्रीपार्श्वजिन घग्घर निसाणी संपूर्णा ॥
॥ अथ श्रीपार्श्वजिन स्तवनं लिख्यते ॥ तूं मेरे मनमें प्रनु तूं मेरे दिल में ध्यन धरूं पल पलमें । पासजिनेसर अंतर जामी। सेवा करूं छिन छिनमें ॥ तूं०॥१॥ काहूको मन तरुणीसें राच्यो । काहूको चित्त धनमें । मेरो मन प्रनु तुमहीसें राच्यो । ज्युं चात्रक चित्त घनमें ।। तूं ॥५॥ जोगीसर तेरी गति जांणे । अलख निरंजन जिनमें । कनक कीरति सुखसागर तूं ही। साहिब तीन जुवनमें । तूं मेरे मनमे तूं मेरे दिलमे ॥३॥इति श्रीपार्श्वनाथजीरो स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥अथ श्रीचिंतामणी पार्श्वनाथजीका लघुस्तवन लिख्यते॥
॥जिनजी महिर करीने राज । दरसण वहिलो दीजे । दीजे दीजे जी माहाराज । कारज सगला सीके । ए आंकणी । मुफ मन लमर तणी पर मोह्यो । गेझायो नवि लूटे । प्रेमराग बंधाणो पूरण तेतो कदियन खूटे ॥ जि० ॥ १॥ अलग थकां पिण हूं प्रत्तु तुमने । नहिय विसारं दिलसुं।रात दिवस एहवी मन वरते । जाणुं जा मिळु तुमसुं ॥ जि० ॥२॥ पूरब पुन्यथकी में पायो । ए अवसर आजूणो । मिलियो तूं प्रनु पास चिंतामण । साहिब सहज सलूणो ॥ जि० ॥ ३ ॥ थारे तो सेवक ने बहुला । मो सरिखा लख ग्याने । माहरे तो इण जगमे
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