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( १३ ए )
रोग हो गोतम ॥ वैरी नहीं मित्रो नही नही संजोग वियोग हो गोतम ॥ शि० ॥ ८ ॥ जूख नहीं तिरखा नहीं हरख नहीं नही सोक हो गोतम ॥ करम नहीं काया नहीं विषाय रस नहीं योग हो गोतम || शि० ॥ ए ॥ शब्द रूप रस गंध नही फरस नहीं नहीं वेदहो गोतम ॥ वोले नही चाले नही मोन प नहीं खेद हो गोतम ॥ शि० ॥ १० ॥ गाम नगर ए को नहीं वसती नही जाम हो गोतम ॥ काल तिहां वरते नहीं नहीं रात दिवस तिथिवार हो गोतम ॥ शिव० ॥ ११ ॥ राजा नहीं परजा नहीं नहीं ठाकुर नहीं दास हो गोतम ॥ मुक्तिमें गुरु चेलो नहीं नहीं लघु वमाइ वास हो गोतम ॥ शि० ॥ १२ ॥ अनंता सुखमें फिल रह्या रुपी ज्योत प्रकाश हो गोतम || सह कोश्ने सुख सारिखा सगलाने अविचल राज हो गोतम ॥ शि० ॥ १३ ॥ अनंता सिद्ध मुगते गया वली अनंता जाय हो गोतम ॥ श्रवर जग्या फंधे नहीं जोतमां जोत समाय हो गोतम ॥ शि० ॥ १४ ॥ केवल ज्ञाने सहित केवल दर्शन खास हो गोतम ॥ कायक समकित दीपता कदय न होवे उदास हो गोतम || शि० ॥ १५ ॥ सिद्ध स्वरुप जे लखे आणी मन वैराग हो गोतम ॥ शिवरमणी वेगे वली नय कड़े सुख याग हो गोतम ॥ शि० ॥ १६ ॥ इति सिद्धि पद वर्णन सजाय संपूर्ण ॥
|| प्रथम आचारांग सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल हठीलानी ॥ पहिलो अंग सुहामणो रे, अनुपम श्राचरांग रे ॥ सुगणनर || वीरजिनंदे जापियो रे लाल,
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