________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २२१ )
धूपमें नीरंजन निराकारा खमा । कमवा सुरने किया कमाका । नजमंगल वादल चका ॥ ७ ॥ उसी दिन्नको कमठा सुरने । पिछला दावा जगवाया । मेघ माली की सेना लेकर जलकुं जलदी बुलवाया । वमा किया घन घोर जोरसें । पवन चलाया मत वाला । करुरु करूरु कर दुआ कमाका | चमक बीजका उजवाला ॥ ८ ॥ मूसलधारा मेघ वरसता । गगन गाजता चौताला । सात खूंटकी वमी ऊर्मी में । प्रभु खमा हे मतवाला ॥ नाक बरोबर या पाणी । नाथ निरंज धीरवका । पराजय नहिं होय जिनूंका। एसा प्रजुका ध्यान चढा ॥ ए ॥ संकटसें सिंहास मोला । दुवा घंटका श्रावाजा । अवधि ज्ञानसें इंदर देखा || धा धा धरणी राजा ॥ धरणीधर जलदी सें आया । पदमावती कूं संगलिया | पदमावतीने लिये शीसपर | शेषनागने बन किया ॥ १० ॥ कोरु उपाय तो किया कमवने । कुछबी इलाज नहिं चलता । तरणे वाला साहिब उनकूं | TH वाला क्या करता । जीते श्रीजिनराज हारकें कमठ हाथ दो जो खमा || धरणीधर साहिबके आगे । रजी करता खमा खमा ॥ ११ ॥ केवल पाय शिव पदकूं पहुंचे । पार्श्वनाथ शुज मतवाला । लगी ज्योतमें ज्योति दीपकी तपे तेजका अजुवाला ॥ वीसनगर में पार्श्वनाथका । देवल बनाया तेंताला ॥ वमे देवल में इंदर सोहे । घंटा वाजता चोताला ॥ ॥ १२ ॥ वमी जुगतसें सिंहासा कर । कोट बनाया देवलका ॥ जगों जगों पर शिखर चढाया । दरवाजा शुभ केवलका । नामंगलके आगे शोजता । मूल गुंजारा आरसका || पीछे
For Private And Personal Use Only