Book Title: Bruhat Stavanavali
Author(s): Prachin Pustakoddhar Fund
Publisher: Prachin Pustakoddhar Fund

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Page 321
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०४) जय थकी, में बोमच्या अनेक ॥ नाम कहूं हिव तेहना, सांजखजो सुविवेक ॥ ७ ॥ ॥ ढाल २॥ पासजिनंद जुहारिये ॥ ए देशी॥ शील कहै जग हूं वमो, मुझ वात सुणो अति मीठी रे ॥ लालच लावै लोकनें, में दानतणी वात दीनी रे ॥ शी० ॥१॥ कलह कारण जग जाणी, वलि विरती नही पण काई रे ॥ ते नारद में सोफव्या, मुझ जुन ए अधिकाई रे ॥ शी० ॥२॥ बांहे पहिस्सा वैरखा, शंखराजा दूपण दीधो रे ॥ काप्यो हाथ कलावती, ते में नवपशव कीधो रे ॥ शी० ॥३॥ रावणघर शीता रही, तो रामचं घर आणी रे ॥ शीतानो कलंक उतारीयो, में पावक कीबूं पाणी रे ॥ शी० ॥४॥ चंपाबार उघामिया, वली चलणिये काब्युं नीरो रे ॥ सतीय सुनता जस अयो, में तह कीधी जीरो रे ॥ शी० ॥ ५॥ राजा मारण मांमीयो, राणी अजयायें दूषण दाख्या रे ॥ शूली सिंहासाए में कियो, में शेठ सुदर्शन राख्यो रे ॥ शी० ॥ ६॥ शील सन्नाह मंत्रीसरें, अवतां अरिदल यंन्यो रे ॥ तिहां पिण सानिध में करी वली धरम काज आरंन्यो रे ॥ शी० ॥ ७ ॥ पहिरण चीर प्रगट किया, में अठोत्तरसो वारो रे॥ पांझवनारी जौपदी, में राखी मान उदारो रे ॥ शी० ॥ ७ ॥ ब्राह्मी चंदनबालिका, वलि शीलवती दवदंती रे ॥ चेमानी साते सुता, राजीमती सुंदरी कुंती रे ॥ शी० ॥ए ॥ इत्यादिक में जयस्या, नर नारीना वृंदो रे ॥ समयसुंदर प्रनु वीरजी, पहिले मुळ आनंदो रे ॥ शी० ॥ १० ॥ For Private And Personal Use Only

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