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( ४२ )
करण नवमो गुण जालिये। जिहां जाव थिर रूप निवृत्ति न जाहिये । क्रोध माननें माया संजला हर्णे । उदे नहीं जिहां वेद वेद पण ति ॥ २५ ॥ जिहां रहे सुखम लोन काक शिव लिखे । ते सूखम संपराय दशम पंकित दखे | संतमोह इस नाम इग्यारम गुण कहे । मोह प्रकृति जिए गम सहु उपसम लहे ॥ २६ ॥ श्रेणि चढ्यो जो काल करे किएही परे । तो थाये अहमिंद्र अवर गति नादरे । च्यार वार समश्रेणि लहे संसार में । एक नवे दोय श्रेणि अधिक न हुये कि ॥ २७ ॥ चढि इग्यारम सीम समी पहिली पh | मोह दे उत्कृष्ट अरध पुद्गल रहे। क्षपक श्रेणि इग्यारम गुण गणो नहीं । दशम थकी बारम्म चढे ध्यानें रही ॥ २८ ॥ || ढाल ६ || एकदिन कोई मागध आयो पुरंदर
पास ए चाल ॥
॥ खीए मोह नामें गुण गणो बारम जाए । मोह खपायो नेमो यो केवल नाए । प्रगटपणें जिहां चारित श्रमल यथा आख्यात | वियागे तेरम गुण गए तणी कहे वात ॥ २५ ॥ घातीय चौकी दय गई रहीय अघातीय एम । प्रकृति पच्यासी जेहनें जूना कापक जेम | दरसण ज्ञान वीरज सुख चारित पंच अनंत । केवल ज्ञान प्रगट थयो विचरे श्री जगवंत ॥ ३० ॥ देखे लोक लोकनी बानी परगट वात । महिमावंत अढारे दूषण रहित विख्यात । आवे वरसे ऊणी कही इक पूरव कोमि । उत्कृष्ट तेरम गुण गएँ एथिति जोकि ॥ ३१ ॥ कर शैलेस करण निरूध्या मन वचकाय । ते योगी त
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