Book Title: Bruhat Stavanavali
Author(s): Prachin Pustakoddhar Fund
Publisher: Prachin Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(एए) धरे ॥ १० ॥ तिण पालत्तै सूरिने जाण्यो एह महंत । पूजे को सुरदाखवो अतिसय गुणवंत । कृपाकरी मुज नाखवो । गुरु तेह नाखे जेह अंने उपजव सुरनर तणों । तिण कह्यो कुंतीने प्रसादें पास के प्रनु अंजणों । कुण यद वीर वेत्ताल व्यंतर सहू तसु सेवा करे । तेहनी दृष्टे साध विद्या जेम तुम वंचित सरे ॥ ११ ॥ विद्या पिण आकर्षण। । दुती जोगीने पास । ते प्रतिमा आणी तिहां । थापी निज आवास । सोवन रस सीधो जिहां । रस तिहां सीधो सुजस लीधो । नदी सेढीने तटे। गुरुनें जणाव्यो तिण कहाव्यो बिंब नंमायो घटे । इण काल धरम सुथान श्रोमा ढुसी मलेबाण इहां । खाखरा तले सेढिका तीरे । बिंब माखो तिहां ॥ १ ॥ ढाल ४ थी। मेघ आगम सही नदी जलटि वही वेलुका बिंब ऊपर वलै ए। तेण लुइ घणचरे खीर सुरही करे चीकणी नूमि खाखर तले ए। केतला दिन पळे सुगुरु खरतर गजे। श्री अजय देव सूरी सरूए । पट विगय परिहरी नग्रतप आदरी । रगत्त पित्ती श्रया मुनि वरूए । तेरगत्तपित्ती गलत काया चित्तमें चिंता करे । अधरात सासण देवी श्रावी कोकमा नव कर धरे । ए सूत्र तूं सुलका सुपरे ताम गुरु जंपे इसो । जो थायसी मुक नीरोग काया तो सही उखेलसुं ॥ १३॥ तामदेवी कहै नदीय सेढीवहै । तैण तट वृक्ष खाखर तलेए । तिहां तुझे जावो तवन करिवो नवो प्रगट थासी प्रनु धनणो ए। तेहनें स्नात्र जल रोग सवि जाय टले । म कहीय गई सासण सुरीए । संघ सगलो मिली तिहां जाइ मनरली । ताम धरणिंद ध्याने
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345