Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ प्रकाशकीय राजस्थान के प्राचीन जैन तीर्थ स्वर्णगिरि-जालोर का इतिहास हमारे प्राकृत-भारती संस्थान से प्रकाशित करने का विचार कई वर्षों से था। किन्तु जब समय परिपक्व होता है तभी शुभ कार्य की परिणति साकार होती है। इसी अरसे में प्राकृत भारती ने अनेक ग्रन्थ रत्न प्रकाशित किये। श्री भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित योगीन्द्र युग प्रधान श्री सहजानन्दघनजी महाराज द्वारा उद्बोधित १ श्री आनन्दघन चौवीसी २ खरतरगच्छ दीक्षानंदी सूची तथा नाहटा जी द्वारा विरचित अपभ्रंश भाषा में ३ सिरी सहजानन्दघन चरियं नामक अनठे काव्य का प्रकाशन भी हमारे प्राकृत भारती पुष्प ५७, ६४ एवं ६७ के रूप में प्रकाशित कर दिये। अब इस राजस्थान के प्राचीन जैन तीर्थ के इतिहास को प्रकाश में लाने का सुयोग मिला इसे सचित्र सुन्दर रूप में प्रकाशित कर इतिहास प्रेमी और तीर्थ भक्तों के कर कमलों में प्रस्तुत करते हमें अत्यन्त प्रसन्नता है। इसका प्रकाशन प्राकृत भारती अकादमी तथा बी० जे० नाहटा फाउण्डेशन द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। राजस्थान का यह महत्वपूर्ण संभाग प्रारम्भ से ही अत्यन्त समृद्ध था। यहाँ अनेक शासकों द्वारा पट परिवर्तन हुआ है। स्वर्णगिरि के नाम से प्रसिद्ध सोनिगिरा गोत्र यहीं से निकला था और मांडवगढ (मालवा ) में जाकर बसे सुप्रसिद्ध साहित्यकार मंडन और धनदराज राज-मान्य और नीति निपुण सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 134