Book Title: Sthaviravali Charitra or Parisista Parva
Author(s): Hermann Jacobi
Publisher: Asiatic Society

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Page 425
________________ Sakațäla and Sthūlabhadra 331 दय विसमसहाव((१) वल्लहद जो रागा उरुरकर । सुहपसहि कारणि मूढमद दुरियखारि सो उरि धरद् ॥ तहा। अजु न दिट्टउ अनु रुडु सभाउ न बोल पवसिउ अज्जु न रमिउ अञ्जु अणुरत्तु न चलइ । अजु विरत्तउ अवरु अज्जु नजद उब्विग्गउ दय बल्लहि सुहगस्यचितसंतावहि भग्गउ ॥ य मुणिवि न रजद् जो कह वि। न य जो विसएहि प्रारमद् । सुकयत्थु वियक्तणु सो सुहिउ । तस्सु समाहिय] परं परिणमद ॥ ता सव्वहा उज्झिऊण भोगसंग छिदिऊण मोहपासं । (२)जाव न जरकडपूय णि सव्वंगिउ गसद् जाव न रोगभुयंगु उगु निद्दउ डसइ । ता धम्मिहि(२) मणु दिजउ किज्जउ अप्पहिउ अज किं कन्नु पयाणउ जिउ निच्चप्पहिउ । एयं चिंतिउं पंचमुट्टियं लोयं काऊण पाउयं कंवलरयणं । तमेव किंदित्ता रयहरणं करेत्ता रन्नो पायमागो। धम्मेण वट्टाहि । एयं चिंतियं । राया भणद् । सुचिंतियं । निग्गश्रो। पेच्छह कवडत्तर्णण गणियाघरं पविसद् न व त्ति । श्रागासतले गो पेच्छद् । मयकलेवरम्म जणो अवसर मुहाणि य ठए । 1) B निममविरत्त । (E) .Also quoted in Supisanihacnrin p 27. v. 355 (1) C.Sup नाव धम्मि ।

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