Book Title: Sthaviravali Charitra or Parisista Parva
Author(s): Hermann Jacobi
Publisher: Asiatic Society

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Page 435
________________ 341 Cãnakya and Candragupta 341 अहो भण नवपाउसंमि पुलाए गिरिनदीयाए सिग्धवेयाए । एगाहमहियमेत्तेण नवौएण पालिं बंधामि ॥ एत्य वि ता मे होलं वाएहि ॥ अलो भणद जच्चाण नवकिसोराण तद्दिवसएण जायमेत्ताणं । केसेहि नहं छाएमि एत्थ(१) वि ता मे होलं वाएहि ॥ अमो भण दो मज्म अस्थि रयणा (२) सालिपसूई य गद्दभिया य । छिया छिया वि रहंति एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥ प्रमो भणदू सयसुकिलनिचसुयंधो भज्ज अणब्वय नत्थि पवासो । निरिणे य टुपंचसो य(१) एत्य विता मे होलं वाएहि ॥ एवं नाऊण दव्वं मग्गियं । जहोचियं कोडागारा भरिया सालोणं । ताओ छिन्ना छिन्ना पुणो जायति । पासा एगदिवसजाया मग्गिया। एगदिवसियं नवौयं ॥ सुवणुप्पायपत्थं च चाणक्कण जंतपासया कया । केद् भमंति वरदिपया । तो एगो दकलो पुरिसो सिकहावित्री। दोणाराण थालं भरियं । सो भण। जद ममं कोई जिण तो थालं गेएहउ । अह अहं जिणामि ताडे गं दोणारं जिणामि । तस्स इच्छाए पासा पडंति । श्री न नौरए जिणिउं । जह सो न जिप्पद् एवं माणुसलंभो वि। अवि नाम सो जिप्पेजा न य माणसानो भट्टस्स पुणे माणुसत्तणं ॥ (11 AC सन्य। (0) AC रयपा। () Com.

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