Book Title: Sthaviravali Charitra or Parisista Parva
Author(s): Hermann Jacobi
Publisher: Asiatic Society

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ Sakatala and Sthūlabhadra 335 संतगुणकित्तणेण वि पुरिसा लज्जति जे महासत्ता । इयरा उण अलियपसंसणे वि हियए न मार्यति ॥ तो कि कयाइ समो वि वर्षण बगो कलहंसचरियाई अणगरेछ । किं खजोश्रो तुलेद् तरणिमंडलं ति ॥ पसंसंतो थूलभद्दमहामुणं इच्छामि अणुसढि ति भणिऊण गश्री गुरुमूलं । पालोद्यपडिहंतो विहर । आयरिएहि वि वग्यो वा सप्पो वा सरौरपौडाकरा मुणेयव्वा । नाणं व दंसणं वा चरणं व न पञ्चला भेत्तुं ॥ भयवं पि थूलभद्दो तिकडे चंकम्मिउं न उण छिन्नो । अग्गिसिहाए वुत्थो चाउमासं न उण दड्डो ।। एवं दुक्करदुक्करकारो थूलभद्दो । पुब्वपरिचिया उकडरागा अहियासिया। याणिं सड्डौ जाया अदिहृदोसा य तुमे पत्थिय त्ति उवालद्धो । एवं ते विहरंति ॥ सा य गणिया जहा रन्ना रहिगरम दिन्ना जहा य थूलभद्दस गुणे पसंमेद् तहा कहाण्यं श्रावस्मए दट्टब्वं ॥ जहा थूलभद्देणियौपरौसहो अहियासिश्रो तहा अहियासियवो। न उण जहा तेणं नाहियासिश्रो ति।

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467