Book Title: Moksh marg prakashak
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 10
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रकाशकीय (सप्तमावृत्ति) श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थ सुरक्षा द्रस्ट ने श्री टोडरमल स्मारक भवन, जयपुरमें 'साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार विभाग' के नाम से एक नया विभाग विगत जुलाई, १९८३ से प्रारम्भ किया है। इस विभाग का उद्देश्य प्राचीन, अर्वाचीन, अप्रकाशित एवं अनुपलब्ध जैन साहित्य का प्रकाशन करना है। इस विभागने अपना कार्य बड़ी तेजी के साथ प्रारम्भ किया और मात्र थोड़े ही दिनों में सर्वमान्य आचार्य कुन्दकुन्द के नियमसार व पंचास्तिकायसंग्रह तथा कविवर पंडित बनारसीदासीजी के समयसार नाटक का पुनः प्रकाशन करके विगत दो वर्षों में अनुपलब्ध साहित्य को उपलब्ध कराया है। अब इसी श्रृंखला में सर्वमान्य आचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी के सर्वमान्य ग्रन्थ 'मोक्षमार्गप्रकाशक' का प्रकाशन करते हुए हमें अत्यन्त गौरव का अनुभव हो रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ मोक्षमार्गप्रकाशक अध्यात्मजगत् में आज सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रचलित है। यह ग्रन्थराज हस्तलिखित और अनेक भाषाओं में प्रकाशित होकर लाखों की संख्या में जन-जन तक पहुँच चुका है। फिर भी इसकी मांग बराबर बनी हुई है। यह सब इसकी लोकप्रियता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। यह ग्रन्थराज तत्कालीन साहित्यभाषा 'ब्रज' में लिखा गया था, जिसमें स्थानीय भाषा ढुंढारी का भी पुट था। पंडित टोडरमलजी द्वारा स्वयंलिखित इसकी मूलप्रति भी सुरक्षित है और उपलब्ध भी है। इसके विशेष प्रचार-प्रसार के लिये सन् १९६५ ई० में श्री टोडरमल स्मारक भवन के शिलान्यास-समारोह के अवसर पर स्थापित आचार्यकल्प श्री टोडरमल ग्रंथमाला के व्यवस्थापकोंकी ओर से प्रस्ताव आया की मोक्षमार्ग प्रकाशक की मूलप्रति के आधार पर इसका एक प्रामाणिक अनुवाद आधुनिक हिन्दी (खड़ी बोली) में कराया जाय और बहुत बड़ी संख्या में उसका सुन्दरतम प्रकाशन कर अल्पमूल्य में घर-घर तक पहुँचाया जाय। फल स्वरूप हस्तलिखित मूलप्रति के सम्पूर्ण पृष्ठों की फोटोस्टेट कापियाँ तैयार कराई गईं; जो आज जयपुर, बुम्बई और सोनगढ़ में सुरक्षित हैं। उक्त फोटोस्टेट कापी के आधार पर श्री मगनलालजी जैन ने उक्त सम्पूर्ण ग्रन्थ का खड़ी बोली में भाषा-परिवर्तन बड़ी ही लगन से किया। पूज्य श्री कानजीस्वामी के सान्निध्य में बैठकर पं० श्री रामजीभाई माणेकचंद दोशी, पं० श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह बी० एस-सी, पं० श्री खीमचन्द जेठालाल शेठ, ब्र० श्री चन्दूलालजी तथा श्री नेमीचन्दजी पाटनी आदि ने उसको सूक्ष्मता से मूलप्रति से मिलान कर देखा। तत्पश्चात् उसे प्रकाशन में दिया गया, जिसका ग्यारह हजार का प्रथम संस्करण वि० सं० २०२३ ई० में प्रकाशित हुआ। प्रथम संस्करण प्रकाशित करते समय सम्पादन सम्बन्धी बहुत-सी कमियाँ ध्यान में आई थीं। लेकिन उस समय तीव्र मांग होने से तथा तत्काल कोई योग्य संपादक उपलब्ध न हो सकने से ब्र० श्री गुलाबचन्जी के संपादनमें यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार बहुत परिश्रम करके इसे अच्छे से अच्छा बनाने की चेष्टा की। उसके तीन वर्ष बाद ही सात हजार का दूसरा संस्करण भी उसी रूप में प्रकाशित हो गया। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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