Book Title: Mantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Author(s): Jinkirtisuri, Jaydayal Sharma
Publisher: Jaydayal Sharma

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Page 243
________________ पञ्चम परिच्छेद ॥ (२०३) वृद्धि ही होती है, यदि प्रथम शब्द का प्रयोग न कर उसके स्थानमें उत्तम, उत्कृष्ट अथवा प्रधान प्रादि किसी शब्द का प्रयोग किया जाता तो यह ध्वनि नहीं निकल सकती थी, अतः उत्तम प्रादि शब्दों का प्रयोग न कर प्रथम शब्द का प्रयोग किया गया। (प्रश्न ) इस नवें पदमें "हवइ” इस क्रिया पदका प्रयोग क्यों किया गया, यदि इस क्रिया पदका प्रयोग न भी किया जाता तो भी "हवइ” क्रिया पदका अध्याहार होकर उसका अर्थ जाना जा सकता था, क्योंकि वाक्योंमें प्रायः "अस्ति” “भवति" इत्यादि क्रिया पदोंका अध्याहार होकर उनका अर्थ जाना ही जाता है ? ( उत्तर ) निस्सन्देह अन्य वाक्यों के समान इस पदमें भी "हवाई क्रिया पदका प्रयोग न करने पर भी उसका अध्याहार हो सकता है, तथापि (१) यहांपर जो उक्त क्रिया पदका प्रयोग किया है उसका प्रयोजन यह है कि उक्त मङ्गल की भवन क्रिया (२) अर्थात् सत्ता (३) विद्यमान रहती है, तात्पर्य यह है कि “यह पञ्चनमस्कार सब मङ्गलों में उत्तम मङ्गल है तथा वह ( मंगल ) वृद्धि को प्राप्त होता है और निरन्तर विद्यमान रहता है," यदि "हवइ” इस क्रिया पदका प्रयोग न किया जाता तो "उसकी निरन्तर सत्ता रहती है। इस अर्थ की प्रतीति नहीं हो सकती थी। ___(प्रश्न ) नवें पदके अन्त में “मंगलं” इस पद का प्रयोग क्यों किया गया, यदि इसका प्रयोग न भी किया जाता तो भी मंगल पदका अध्याहार हो सकता था, अर्थात् “( यह पञ्चनमस्कार ) सब मंगलों में प्रथम है" इ. तना कहने पर भी “प्रथम मंगल है" इस अर्थ की प्रतीति (४) स्वयमेव (५) हो जा सकती थी, जैसे कि "कवीनां कालिदासः श्रेष्ठः” इत्यादि वाक्यों में कवि आदि शब्दों का प्रयोग (६) न करने पर भी उनके अर्थ की प्रतीति स्वयमेव हो जाती है। उत्तर “मंगलं” इस पद का प्रयोग न करने पर भी उसके अर्थ की प्रतीति यद्यपि निःसन्देह हो सकती थी, परन्तु प्रथम कह चुके हैं कि “जगत् क १-तोभी ॥२-होना रूप कार्य ॥ ३-विद्यमानता ॥ ४-ज्ञान ॥ ५-अपने आप ही ॥६-व्यवहार ॥ Aho ! Shrutgyanam

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