Book Title: Mantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Author(s): Jinkirtisuri, Jaydayal Sharma
Publisher: Jaydayal Sharma

View full book text
Previous | Next

Page 249
________________ प परिच्छेद । वाचना का पर्याय (९) मानकर जो अन्य महानुभावों सम्पद् बतलाई हैं, वह उनका मन्तव्य भ्रान्तियुक्त (२) है । ( उत्तर ) यदि इस विषय में अन्य भी कतिपय (३) हेतुत्रों की जिज्ञासा (४) है तो सुनो: ( २०६ ) इस मन्त्र में प्राठ ( क ) प्रथम कह चुके हैं कि सम्पद् नाम यति ( विश्राम स्थान ) अथवा सनकी मानी हुई सहयुक्त वाक्यार्थ योजना स्वरूप वांचना का नहीं है, क्योंकि किसी कोष में यति ( विश्रामस्थान ) अथवा वाचना ( सहयुक्त वाक्यार्थ योजना ) रूप अर्थ का वाचक सम्पद् शब्द को नहीं कहा है, फिर सम्पद् शब्द से ' यति ( विश्राम स्थान ) अथवा स्वमत सहयुक्त वाक्यार्थ योजना रूप वाचना का ग्रहण कैसे हो सकता है । (ख) जिस पदार्थ के जितने अत्रान्तर (५) भेद होते हैं; उस पदार्थ का वाचक शब्द अवान्तर भेदों में से किसी भेद विशेषका ही सर्वथा वाचक नहीं होता है, जैसे देखो ! सुकृत रूप ( धर्म ) पदार्थ के क्षान्ति (६) आदि दश अवान्तर भेद हैं, उस सुकृतरूप पदार्थ का वाचक धर्म शब्द अपने प्रवान्तर भेदों में से किसी एक भेद विशेषका ही सर्वथा वाचक नहीं होता है ( कि धर्म शब्द केवल क्षान्ति का ही वाचक हो, ऐसा नहीं होता है; (9), इसी प्रकार से अन्य भेदों के विषय में भी जान लेना चाहिये । बोध रूप ( ज्ञान ) पदार्थ के मति आदि (८), पांच अवान्तर भेद हैं; उस बोध रूप अर्थ का वाचक ज्ञान शब्द अपने अवान्तर भेदों में से किसी ही सर्वथा वाचक नहीं होता है ( कि ज्ञान शब्द केवल मति का ही वाचक हो; ऐसा नहीं होता है; इसी प्रकार से अन्य भेदों के विषय में (९) भी जान लेना चाहिये ) इसी नियमको सर्वत्र जानना चाहिये, उक्त नियमके ही अनुसार प्राचार्य सम्बन्धी मुख्य साधन वा मुख्य सामग्रीरूप अर्थ के प्राचार आदि पूर्वोक्त आठ अवान्तर भेद हैं, उक्त अर्थ का वाचक सम्पद् शब्द - एक भेद विशेष का १ - एकार्थवाचक ॥ २ - भ्रमसहित ॥ ३- कुछ ॥ ४- जानने की इच्छा ॥ ५- मध्यवर्ती, भीतरी ॥ ६-क्षमा ॥ ७-यदि धर्म शब्द केवल क्षान्ति का ही वाचक माना जावे तो उसके कथनसे मार्दव आदि नौ भेदों का ग्रहण ही नहीं हो सके इसी प्रकार से सर्वत्र जानना चाहिये ॥ ८-आदि शब्द से श्रुत आदि को जानना चाहिये ॥ श्रुत आदि भेदों के विषय में भी ॥ ૨૭ Aho ! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294