Book Title: Mantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Author(s): Jinkirtisuri, Jaydayal Sharma
Publisher: Jaydayal Sharma

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Page 246
________________ (२०६) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ वाचना) मानकर तथा पाठवें और नवें पद की एक सम्पद् मान कर उक्त महामन्त्र में ऊपर लिखे अनुसार प्राठ सम्पद् मानी हैं । (प्रश्न )-उक्त महानुभावों ने पाठवें तथा नवें पद की एक सम्पद् क्यों मानी है ? (उत्तर)-इसका कारण यह है कि-पाठवें और न पद की सह. युक्त वाक्यार्थ योजना (१) है और सहयुक्त वाक्यार्थ योजना को ही वे लोग वोचना तथा सम्पद् मानते हैं, अतः उन्हों ने पाठ सम्पद् मानी हैं । ( प्रश्न )-उक्त दोनों पदों की सहयुक्त वाक्यार्थ योजना किस प्रकार होती है? (उत्तर)-उक्त दोनों पदों की सहयुक्त वाक्यार्थ योजना अर्थात् मि. श्रित वाक्यार्थ योजना इस प्रकार है कि-"सब मङ्गलों में ( यह पञ्च नमस्कार ) प्रथम मङ्गल है”। (प्रश्न )-अब इस विषय में आप अपना मन्तव्य प्रकट कीजिये ? (उत्तर)-सम्पद् नाम यति ( पाठच्छेद ) अथवा वाचना ( सहयक्त वाक्यार्थ योजना ) का हमारे देखने में कहीं भी नहीं आया है। अतः (२) हमारा मन्तव्य उक्त विषय में अनकल नहीं है ।। (प्रश्न )-पाप कहते हैं कि-सम्पद् नाम वाचना का नहीं है। परन्तु वाचना का नाम सम्पद् देखा गया है, देखिये-श्रीप्राचाराङ्ग सत्र के लोकसार नामक पांचवें अध्ययन के पांचवें उद्देशक में श्रीमान् शीलाङ्काचार्य जी महाराज ने अपनी विवृति में लिखा है कि आयार सुन्न सरीरे, वयणे वायण मई पोग मई ।। एए सु संपया खल, अमिमा संगह परिन्ना ॥१॥ इस का अर्थ यह है कि प्राचार, श्रुत, शरीर, वचन, वाचना, मति, प्रयोगमति तथा भाठवीं सङ्ग्रह परिज्ञा, ये सुन्दर सम्पद् हैं ॥ १ ॥ उक्त वाक्य में वाचना को सम्पद कहा है, फिर आप वाचना का नाम सम्पद क्यों नहीं मानते हैं ? (उत्तर)-उक्त वाक्य जो श्रीमान् शीलाझाचार्य जी महाराजने अपनी विवृति में लिखा है, वह प्रसंग (३) इस प्रकार है किः १-मिश्रित वाक्यार्थ सङ्गति ॥ २-इसलिये ॥ ३-विषय ॥ - Aho! Shrutgyanam

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