Book Title: Mantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Author(s): Jinkirtisuri, Jaydayal Sharma
Publisher: Jaydayal Sharma

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Page 276
________________ ( २३६ ) श्रीमन्त्रराजगुर्ण कल्पमहोदधि ॥ डाल सका है ), श्रुतः " पञ्चणमोक्कार” पद ईश का वाचक होने से उसके अप और ध्यान से ईशित्व सिद्धि की प्राप्ति होती है । (घ) - अथवा “ पदके एक देशमें पद समुदाय का व्यवहार होता है" इस नियम से “पञ्च” शब्द पञ्चवाण ( पञ्च शर, कामदेव ) का वाचक है, अतः यह अर्थ जानना चाहिये कि “पञ्च” अर्थात् कामदेव को जिनके विषय में "मुत्कार" ( नन्दक्रिया ) नहीं प्राप्त हुई है उसको “पञ्चणमोक्कार” कहते हैं, अर्थात् इस प्रकार भी “पञ्चणमोक्कार" शब्द देश का वाचक है, शेष विषय "ग, धारा के अनुसार जान लेना चाहिये । (ङ) “घ” धारा में लिखित नियमके अनुसार “पञ्च" शब्द से पांच भूतों का ग्रहण होता है, उन ( पंच भूतों) में जिन को “मुत्कार" ( श्रानन्द क्रिया ) नहीं है, ऐसे कौन हैं कि “देश” ( क्योंकि वे पञ्च भूतात्मक (1) सृष्टि का संहार करते हैं), इस प्रकार भी " पञ्चणमोक्कार” पद ईश का बाचक होता है, अतः उसके जप और ध्यान से ईशित्व सिद्धि की प्राप्ति होती है । (च) अथवा “घ” धारा में लिखित (२) नियम के अनुसार “पञ्च” शब्द से पश्च भूतों का ग्रहण होता है, उन पांच भूतों से “नम” अर्थात् नम्रता के सहित “उत्कार ( ३ ) ” अर्थात् उत्कृष्ट क्रिया को जो कराते हैं; ऐसे कौन हैं कि "ईश" ( क्योंकि ईश का नाम भूतपति वा भूतेश है ), अतः “पंचणमोकार" शब्द से इस प्रकार भी ईश का ग्रहण होता है, अतः उक्त पदके जप और ध्यानसे ईशित्व सिद्धि की प्राप्ति होती है । ( क ) ऊपर लिखे नियमके अनुसार "पञ्च” शब्द से पञ्च प्राणों (४) का ग्रहण होता है तथा प्राण शब्द प्राणी का भी वाचक है, (५) तथा प्राणी १- पञ्चभूत स्वरूप ॥ २-लिखे हुए ॥ ३-उत्- उत्कृष्टः, कारः-क्रिया ॥ ४- प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान, ये पांच वायु हैं तथा ये" पंच प्राण” नाम 'से प्रसिद्ध हैं ॥ ५- अर्शादिभ्योऽच् ” इस सूत्र से प्राण शब्द से मत्वर्थमें अच् प्रत्यय करने पर प्राण शब्द प्राणी का वाचक हो जाता है । Aho! Shrutgyanam

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