Book Title: Mantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Author(s): Jinkirtisuri, Jaydayal Sharma
Publisher: Jaydayal Sharma

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Page 280
________________ (२४०) श्रीमन्त्रराजगुणकलामहोदधि । अर्थ-अभीष्ट अर्थ के लिये कल्पवृक्षके समान महामभाव वाले, संसार से पार ले जानेके लिये अद्वितीय कारण स्वरूप, देवलोकोंसे प्रशंसनीय तथा शीघ्र ही मुक्ति सुख के देने वाले श्रीपञ्चपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र की व्या. रूया की गई है, इस ( व्याख्या.) में मति मोह के कारण जो कुछ मुझ से वितथ (अयथार्थ ) प्ररूपणा की गई हो उस का पूज्यमति जन कृपा कर सं. शोधन करलें, क्योंकि अल्पबुद्धि मनष्य का कठिन विषय में स्खलन होना कोई आश्चर्यकारक नहीं है ॥ १॥२॥ इस पवित्र स्तोत्र की व्याख्या कर जो मैंने शुभ पुग्यबन्ध का उपार्जन किया है। उस से यह समस्त संसार-महात्माओं के अभिलषणीय सुन्दर सुख को प्राप्त होता है ॥३॥ संवत् १९७६ शुभ नाश्विनमास पौर्णमासी गुरुवारको यह ग्रन्थ परि समाप्त हुआ ॥४॥ श्री (डूंगर कालेज नाम्नः ) राजकीयांग्लसंस्कृतविद्यालयस्य संस्कृतमधानाध्यापकेन जयदयालशर्मणा निर्मितोऽयं "श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि" नामा ग्रन्थः परिसमानः। Aho! Shrutgyanam

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