Book Title: Mantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Author(s): Jinkirtisuri, Jaydayal Sharma
Publisher: Jaydayal Sharma

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Page 277
________________ षष्ट परिच्छेद ॥ ( २३७ ) शब्द का पर्याय “भूत" शब्द भी (१) है, उन (भूतों ) से जो "नम (२) " अर्थात् नम्रता पूर्वक "उत्कार" अर्थात् उत्कृष्ट क्रिया को करानेवाले हैं, ऐसे कौन हैं कि " ईश” ( क्योंकि उनका नाम ही भूतपति वा भूतेश है, और पति अर्थात् स्वामी का यह स्वभाव ही है कि वह अपने आश्रितों से उत्कृ ष्ट अर्थात् उत्तम क्रिया को कराता है ), तात्पर्य यह है कि उक्त व्युत्पत्ति के करनेपर भी "पचणमोक्कार” पदसे ईश का बोध (३) होता है; अतः उसके जप और ध्यान से ईशित्व सिद्धि की प्राप्ति होती है । ( प्रश्न ) " मंगला गं " इस पद में वशित्व सिद्धि क्यों सन्निविष्ट है ? ( उत्तर ) " मंगला" इस पद में जो वशित्व सिद्धि सन्निविष्ट है उसके हे हैं। ( क ) इस संसार में धर्म उत्कृष्ट (४) मङ्गलरूप है, जैसा कि श्रीदश वैकालिक जी में कहा है कि: धम्मो मंगलमुक्कट, अहिंसा संजभोतवो ॥ देवावितं नमसति, जस्स धम्मे सयामणो ॥ १ ॥ अर्थात् श्रहिंसा, संयम और तपः स्वरूप धर्म ही उत्कृष्ट मङ्गल है, . अतः जिस ( पुरुष ) का मन धर्म में सदा तत्पर रहता है उसको देवता भी नमस्कार करते हैं ॥ १ ॥ इस कथन से तात्पर्य यह निकलता है कि "मङ्गल" नाम धर्म का है, अतः " मंगला" इम पद के ध्यानसे मानों धर्म का ध्यान और उसकी आराधना होती है तथा धर्म की आराधना के कारण देवता भी वशीभूत हो - कर उसे प्रणाम करते हैं (जैसा कि ऊपर के वाक्य में कहा गया है), तो फिर अन्य प्राणियों के वशीभूत होनेका तो कहना ही क्या है, अतः स्पष्टant (५) सिद्ध है कि " मंगला" इस पद के जप और ध्यान से वशित्व सिद्धि की प्राप्ति होती है । ( ख ) " मङ्गल" शब्द की व्युत्पत्ति यह है कि “मङ्गति हितार्थं सर्पति, मङ्गति दुरदृष्टमनेन श्रस्मादति मंगलम् ” अर्थात् जो सब प्राणियोंके हित के १- क्रिया विशेषण जानना चाहिये ॥ २-ज्ञान ॥ ३-उत्तम ॥४- स्पष्ट रीतिसे ॥ ५ - यद्यपि " प्राणी" तथा "भूत" शब्द की व्युत्पत्ति पृथक् २ है तथापि वाच्यवाचकं भाव सम्बन्धसे उक्त दोनों शब्द प्राणधारीके ही वाचक हैं | Aho! Shrutgyanam

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