Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 12
________________ १. जीवन जीने की कला से पैसे नहीं ले गई है। हमने तो खरीदा ही नहीं। इन सबका अर्थ ही क्या है? मीनिंगलेस है। जिस घड़ी ने मुझे परेशान किया, जिसे देखते ही अंदर अत्यंत दु:ख लगे, वह किस काम का? काफी कुछ लोगों को बाप को देखने से अंदर द्वेष और चिढ़ होती है। खुद पढ़ता नहीं हो, किताब एक तरफ रखकर खेल में पड़ा हो, और अचानक बाप को देखे तो उसे द्वेष और चिढ़ होती है, वैसे ही इस घड़ी को देखते ही चिढ़ होती है तो फिर रखो घड़ी को एक तरफ। और यह दूसरा सब, रेडियो, टी.वी. तो प्रत्यक्ष पागलपन है, प्रत्यक्ष 'मेडनेस' है। प्रश्नकर्ता: रेडियो तो घर-घर में हैं। दादाश्री : वह बात अलग है। जहाँ ज्ञान ही नहीं, वहाँ पर क्या हो? उसे ही मोह कहते हैं न? मोह किसे कहते हैं? बिना ज़रूरत की चीज़ को लाएँ और ज़रूरत की चीज़ में कमी करे, उसका नाम मोह कहलाता है। यह किसके जैसा है, वह कहूँ? इस प्याज़ को चीनी की चासनी में डालकर दें तो ले आए, उसके जैसा है। अरे, तुझे प्याज खानी है या चासनी खानी है, वह पहले पक्का तो कर। प्याज़ वह प्याज़ होनी चाहिए। नहीं तो प्याज खाने का अर्थ ही क्या है? यह तो सारा पागलपन है। खुद का कोई डिसीजन नहीं, खुद की सूझ नहीं और कुछ भान ही नहीं है! किसी को प्याज को चीनी की चासनी में खाते हुए देखे तो खुद भी खाता है! प्याज़ ऐसी वस्तु है कि चीनी की चासनी में डाला कि वह यूज़लेस हो जाता है। इसलिए किसी को भान नहीं है, बिलकल बेभानपना है। खद अपने आप को मन में मानता है कि मैं कुछ हँ और उसे ना भी कैसे कहा जाए हमसे? ये आदिवासी भी मन में समझते हैं कि मैं कुछ हूँ। क्योंकि उसे ऐसा होता है कि इन दो गायों और इन दो बैलों का मैं ऊपरी हूँ! और उन चार जनों का वह ऊपरी ही माना जाएगा न? जब उन्हें मारना हो, तब वह मार सकता है, उसके लिए अधिकारी है वह। और किसी का ऊपरी न हो तो अंत में पत्नी का तो ऊपरी होगा ही। इसे कैसे पहुँच सकें? जहाँ विवेक नहीं, सार-असार का भान नहीं, वहाँ क्या हो? मोक्ष की बात तो जाने दो, पर सांसारिक हिताहित का भी भान नहीं है। क्लेश रहित जीवन संसार क्या कहता है कि रेशमी चादर मुफ्त में मिलती हो तो वह लाकर बिछाओ मत और कॉटन मोल मिलती हो तब भी लाओ। अब आप पूछोगे कि इसमें क्या फायदा! तो कहे, यह मुफ्त लाने की आदत पड़ने के बाद यदि कभी नहीं मिले तो मुश्किल में पड़ जाएगा। इसलिए ऐसी आदत रखना कि हमेशा मिलता रहे। इसलिए कॉटन की खरीदकर लाना। नहीं तो आदत पड़ने के बाद मुश्किल लगेगा। यह जगत् ही सारा ऐसा हो गया है, उपयोग नाम को भी नहीं मिलता। बड़े-बड़े आचार्य महाराजों को कहें कि साहब ये चार गद्दों में आज सो जाइए। तो उन्हें महाउपाधि लगेगी, नींद ही नहीं आएगी सारी रात ! क्योंकि दरी पर सोने की आदत पड़ी हुई है न! इन्हें दरी की आदत हो गई है और ये चार गद्दो की आदतवाले हैं। भगवान को तो दोनों ही कबल नहीं हैं। साध के तप को या गृहस्थी के विलास को भगवान कबूल करते नहीं। वे तो कहते हैं कि यदि आपका उपयोगपूर्वक होगा तो वह सच्चा। उपयोग नहीं और ऐसे ही आदत पड़ जाए तो सब मीनिंगलेस कहलाता है। बातें ही समझने की है कि इस रास्ते पर ऐसा है और इस रास्ते पर ऐसा है। फिर निश्चित करना है कि कौन-से रास्ते जाना चाहिए! नहीं समझ में आए तो 'दादा' को पूछना। तब दादा आपको बताएँगे कि ये तीन रास्ते जोखिमवाले हैं और यह रास्ता बिना जोखिम का है, उस रास्ते पर हमारे आशीर्वाद लेकर चलना है। और ऐसी गोठवणी से सुख आता है एक व्यक्ति मुझे कहता है कि, 'मुझे कुछ समझ नहीं पड़ती है। कुछ आशीर्वाद मुझे दीजिए।' उसके सिर पर हाथ रखकर मैंने कहा, 'जा, आज से सुख की दुकान खोल। अभी तेरे पास जो है वह दुकान खाली कर डाल।' सुख की दुकान मतलब क्या? सुबह से उठे तब से दूसरे को सुख देना, दूसरा व्यापार नहीं करना। अब उस मनुष्य को तो यह बहुत अच्छी तरह से समझ में आ गया। उसने तो बस यह शुरू कर दिया, इसलिए वह तो खूब आनंद में आ गया! सुख की दुकान खोले न, तब फिर तेरे भाग में सुख ही रहेगा और लोगों के भाग में भी सुख ही जाएगा।

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