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५. समझ से सोहे गृहसंसार
७३ हैं। इन मंदिरों में भी वापिस क्लेश करते हैं। मुकट, जेवर ले जाते हैं तब भगवान कहते हैं कि यहाँ से भी चलो अब। तो भगवान भी तंग आ गए
अंग्रेजों के समय में कहते थे न कि,
'देव गया डुंगरे, पीर गया मक्के।' (देवी-देवता गए पहाड़ पर और पीर चले गए मक्का ।)
अपने घर में क्लेश रहित जीवन जीना चाहिए। इतनी तो हम में कुशलता होनी चाहिए। दूसरा कुछ नहीं आए तो उसे समझाना चाहिए कि क्लेश होगा तो अपने घर में से भगवान चले जाएँगे, इसलिए तू निश्चय कर कि हमारे यहाँ क्लेश नहीं करना है। और हमें निश्चित करना है कि क्लेश नहीं करना है। निश्चित करने के बाद क्लेश हो जाए तो समझना कि यह हमारी सत्ता के बाहर हुआ है। इसीलिए हमें, वह क्लेश करता हो तब भी ओढकर सो जाना चाहिए। वह भी थोडी देर बाद सो जाएगा, और हम भी सामने जवाब देने लगें तो?
उल्टी कमाई, क्लेश कराए मुंबई में एक ऊँचे संस्कारी कुटुंब की बहन को मैंने पूछा कि घर में क्लेश तो नहीं होता न? तब उस बहन ने कहा, 'रोज़ सुबह क्लेश के नाश्ते ही होते हैं!' मैंने कहा, 'तब आपके नाश्ते के पैसे बचे, नहीं?' बहन ने कहा, 'नहीं, वह भी वापिस ब्रेड निकालनी, और ब्रेड पर मक्खन चुपड़ते जाना।' मतलब फिर क्लेश भी चलता है और नाश्ता भी चलता है ! अरे, किस तरह के जीव हो?
प्रश्नकर्ता : कुछ लोगों के घर में लक्ष्मी ही उस प्रकार की होगी इसलएि क्लेश होता होगा?
दादाश्री : यह लक्ष्मी के कारण ही ऐसा होता है। यदि लक्ष्मी निर्मल हो, तो सब अच्छा रहता है, मन अच्छा रहता है। यह लक्ष्मी अनिष्टवाली
क्लेश रहित जीवन घर में घुसी है, उससे क्लेश होता है। हमने बचपन में ही निश्चित कर लिया था कि हो सके तब तक खोटी लक्ष्मी घुसने ही नहीं देनी है। फिर भी संजोगाधीन घुस जाए तो उसे धंधे में ही रहने देना है, घर में नहीं घुसने देना है, इसलिए आज छासठ वर्ष हुए पर खोटी लक्ष्मी घुसने नहीं दी है, और घर में कभी भी क्लेश खड़ा हुआ नहीं है। घर में निश्चित किया हुआ था कि इतने पैसे से घर चलाना है। व्यापार लाखों रुपया कमाता है, परन्तु यह पटेल सर्विस करने जाएँ तो क्या तन्ख्वाह मिलेगी? बहुत हुआ तो छ सौ-सात सौ रुपये मिलेंगे। व्यापार, वह तो पुण्य का खेल है। मुझे नौकरी में मिलते उतने ही पैसे घर में खर्च कर सकते हैं, दूसरे तो व्यापार में ही रहने देने चाहिए। इन्कम टैक्सवाले की चिट्ठी आए तो हमें कहना चाहिए कि, 'वह जो रक़म थी वह भर दो।' कब कौन-सा 'अटैक' हो उसका कोई ठिकाना नहीं और यदि वे पैसे खर्च कर दिए तो वहाँ इन्कम टैक्सवालों का 'अटैक' आया तो हमारे यहाँ वो वाला 'अटैक' आएगा! सभी जगह अटैक घुस गए हैं न! यह जीवन कैसे कहलाए? आपको क्या लगता है? भूल लगती है या नहीं लगती? वह हमें भूल मिटानी है।
प्रयोग तो करके देखो क्लेश न हो ऐसा निश्चित करो न! तीन दिन के लिए तो निश्चित करके देखो न! प्रयोग करने में क्या परेशानी है? तीन दिन के उपवास करते हैं न, तबियत के लिए? वैसे ही यह भी निश्चित तो करके देखो। हम घर में सब लोग इकट्ठे होकर निश्चित करें कि 'दादा बात करते थे, वह बात मुझे पसंद आई है, तो हम आज से क्लेश मिटाएँ।' फिर देखो।
धर्म किया (!) फिर भी क्लेश? जहाँ क्लेश नहीं वहाँ यथार्थ जैन, यथार्थ वैष्णव, यथार्थ शैव धर्म हैं। जहाँ धर्म की यथार्थता है, वहाँ क्लेश नहीं होता। ये घर-घर क्लेश होते हैं तो वहाँ धर्म कहाँ गया?
संसार चलाने के लिए जो धर्म चाहिए कि क्या करने से क्लेश नहीं हो, इतना ही जो आ जाए, तब भी धर्म प्राप्त किया माना जाएगा।
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