Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 30
________________ ४५ ४. फैमिलि आर्गेनाइजेशन हैं। इसलिए हरएक की प्रकृति का लाभ उठाओ। यह तो रिलेटिव संबंध हैं, वाइफ भी रिलेटिव है। अरे! यह देह ही रिलेटिव है न! रिलेटिव मतलब उसके साथ बिगाड़ो तो वे अलग हो जाएँगे! किसी को सुधारने की शक्ति इस काल में खतम हो गई है। इसलिए सुधारने की आशा छोड़ दो, क्योंकि मन-वचन-काया की एकात्मवृत्ति हो तभी सामनेवाला सुधर सकता है, मन में जैसा हो, वैसा वाणी में निकले और वैसा ही वर्तन में हों तभी सामनेवाला सुधरे। अभी तो ऐसा है नहीं। घर में हरएक के साथ कैसा व्यवहार रखना उसकी नोर्मेलिटी ला दो। उसमें मूर्च्छित होने जैसा है ही क्या? कितने तो बच्चे 'दादा, दादा' कहें, तब दादाजी अंदर मलकते हैं ! अरे! बच्चे 'दादा, दादा' न करे तो क्या 'मामा, मामा' करें? ये बच्चे 'दादा. दादा' करते हैं, पर अंदर समझते हैं कि दादा यानी थोड़े समय में मर जानेवाले हैं वे, जो आम अब बेकार हो गए हैं, निकाल फेंकने जैसे हैं, उनका नाम दादा! और दादा अंदर मलकता है कि मैं दादा बना! ऐसा जगत् क्लेश रहित जीवन एक भी बच्चा न हो और बच्चे का जन्म हो तो वह हँसाता है, पिता को बहुत आनंद करवाता है। जब वह जाता है, तब रुलाता है उतना ही। इसलिए हमें उतना जान लेना है कि आए हैं वे जाएँगे, तब क्या-क्या होगा? इसीलिए आज से हँसना ही नहीं। फिर झंझट ही नहीं न! यह तो किस जन्म में बच्चे नहीं थे? कुत्ते, बिल्ली, सब जगह बच्चे-बच्चे और बच्चे ही सीने से लगाए हैं। इस बिल्ली को भी बेटियाँ ही होती हैं न? व्यवहार नोर्मेलिटीपूर्वक होना चाहिए इसलिए हरएक में नोर्मेलिटी ला दो। एक आँख में प्रेम और एक आँख में कठोरता रखना। कड़ाई से सामनेवाले को बहुत नुकसान नहीं होता, क्रोध करने से बहुत नुकसान होता है। कड़ाई यानी क्रोध नहीं, लेकिन फुफकार । हम भी काम पर जाते हैं तब फुफकार मारते हैं। क्यों ऐसा करते हो? क्यों काम नहीं करते? व्यवहार में जिस तरह जिस भाव की जरूरत हो, वहाँ वह भाव उत्पन्न न हो तो वह व्यवहार बिगड़ा हुआ कहलाएगा। एक व्यक्ति मेरे पास आया वह बैंक का मेनेजर था। वह मुझसे कहता है कि मेरे घर में मेरी वाइफ को और बच्चों को मैं एक अक्षर भी कहता नहीं हूँ। मैं बिलकुल ठंडा रहता है। मैंने उनसे कहा, 'आप अंतिम प्रकार के बेकार मनुष्य हो। इस दुनिया में किसी काम के नहीं हो आप।' वह व्यक्ति मन में समझा कि मैं ऐसा कहूँगा, तब फिर ये दादा मुझे बड़ा इनाम देंगे। अरे बेवकूफ, इसका इनाम होता होगा? बेटा उल्टा करता हो, तब उसे हम 'क्यों ऐसा किया? अब ऐसा मत करना।' ऐसे नाटकीय बोलना चाहिए। नहीं तो बेटा ऐसा ही समझेगा कि हम जो कुछ कर रहे हैं वह करेक्ट ही है। क्योंकि पिताजी ने एक्सेप्ट किया है। ऐसा नहीं बोले, इसलिए तो सिर पर सवार हो गए हैं। बोलना सब है पर नाटकीय! बच्चों को रात को बैठाकर समझाएँ, बातचीत करें, घर के सभी कोनों में कचरा तो साफ करना पड़ेगा न? बच्चों को ज़रा-सा हिलाने की ही जरूरत होती है। वैसे संस्कार तो होते हैं, पर हिलाने की ज़रूरत होती है। उनको हिलाने में कोई गुनाह है? अरे! पापा को भी बच्चा जाकर मीठी भाषा में कहे कि 'पापाजी, चलो, मम्मी चाय पीने बुला रही है।' तो पापा अंदर ऐसा खुश होता है, ऐसा मलकता है, जैसे साँड मलकाया। एक तो बालभाषा, और मीठीतोतली भाषा, उसमें भी पापाजी कहते हैं... इसीलिए वहाँ तो प्राइम मिनिस्टर हो तो उसका भी कोई हिसाब नहीं। ये तो मन में क्या ही मान बैठा है कि मेरे अलावा कोई पापा ही नहीं है। अरे पागल ! ये कुत्ते, गधे, बिल्ली, निरे पापा ही है न। कौन पापा नहीं है? ये सब कलह उसीकी है न? समझकर कोई पापा न बने, ऐसा कोई चारित्र किसी के उदय में आए तो उसकी तो आरती उतारनी पड़े। बाकी सभी पापा ही बनते हैं न? बॉस ने ऑफिस में डाँटा हो, और घर पर बेटा 'पापा, पापा' करे तब उस घड़ी सब भूल जाता है और आनंद होता है। क्योंकि यह भी एक प्रकार की मदिरा ही कहलाती है, जो सबकुछ भुला देती है!

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