Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 40
________________ ५. समझ से सोहे गृहसंसार ६५ साइन्स समझने जैसा प्रश्नकर्ता : हमें क्लेश नहीं करना हो, परन्तु सामनेवाला आकर झगड़े तो क्या करें? उसमें एक जाग्रत हो परन्तु सामनेवाला क्लेश करे तो वहाँ तो क्लेश होगा ही न? दादाश्री : इस दीवार के साथ लड़े, तो कितना समय लड़ सकेगा? इस दीवार के साथ एक दिन सिर टकरा जाए तो हमें उसके साथ क्या करना चाहिए? सिर टकराया इसलिए हमारा दीवार के साथ में झगड़ा हो गया, तब फिर हमें दीवार को मारना चाहिए? उसी तरह ये खूब क्लेश करवाता हो, तो वे सब दिवारें हैं। उसमें सामनेवाले का क्या देखना ? हमें अपने आप समझ जाना चाहिए कि यह दीवार जैसी है, ऐसा समझना चाहिए । फिर कोई मुश्किल नहीं । प्रश्नकर्ता: हम मौन रहें तो सामनेवाले पर उल्टा असर होता है कि इनका ही दोष है, और वे अधिक क्लेश करते हैं। दादाश्री : यह तो हमने मान लिया है कि मैं मौन रहा इसलिए ऐसा हुआ। रात को मनुष्य उठा और बाथरूम में जाते समय अंधेरे में दीवार के साथ टकरा गया, तो वहाँ हम मौन रहे इसलिए वह टकराई ? मौन रहो या बोलो, उसे स्पर्श नहीं करता है, कोई लेना-देना नहीं है। हमारे मौन रहने से सामनेवाले पर असर होता है, ऐसा कुछ होता नहीं, या अपने बोलने से सामनेवाले पर असर होता है ऐसा भी कुछ होता नहीं है। ओन्ली साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स, मात्र वैज्ञानिक सांयोगिक प्रमाण हैं। किसी की इतनी-सी भी सत्ता नहीं है। इतनी-सी सत्ता बगैर का जगत् है, उसमें कोई क्या करनेवाला है? इस दीवार के पास यदि सत्ता होती तो इन्हें भी सत्ता होती! इस दीवार से हमें झगड़ने की सत्ता है? उसी तरह सामनेवाले के साथ चीखने-चिल्लाने का क्या अर्थ? उसके हाथ में सत्ता ही नहीं है वहाँ ! इसीलिए आप दीवार जैसे बन जाओ न ! आप पत्नी को झिड़कते रहते हो, तो उसके अंदर भगवान बैठे हैं वे नोंध करते हैं कि यह मुझे झिड़काता है। और आपको वह झिड़काए तब आप ६६ क्लेश रहित जीवन दीवार जैसे हो जाओ तो आपके अंदर बैठे भगवान आपको हेल्प करेंगे। जो भुगते उसकी ही भूल प्रश्नकर्ता: कुछ ऐसे होते हैं कि हम चाहे जितना अच्छा व्यवहार करें फिर भी वे समझते नहीं है। दादाश्री : वे न समझते हों तो उसमें अपनी ही भूल है कि वह समझदार क्यों नहीं मिला हमें? उसका संयोग हमें ही क्यों मिला? जिसजिस समय हमें कुछ भी भुगतना पड़ता है, वह भुगतना अपनी ही का परिणाम है। प्रश्नकर्ता: तो हमें ऐसा समझना चाहिए कि मेरे कर्म ही ऐसे हैं? दादाश्री : बेशक । अपनी भूल के बिना हमें भुगतना होता नहीं है। इस जगत् में ऐसा कोई नहीं कि जो हमें थोड़ा भी, किंचित् मात्र दुःख दे और यदि कोई दुःख देनेवाला है तो वह अपनी ही भूल है। तत्त्व का दोष नहीं है, वह तो निमित्त है। इसलिए भुगते उसकी भूल । कोई स्त्री और पुरुष दोनों खूब झगड़ रहे हों और फिर हम उन दोनों के सो जाने के बाद चुपचाप देखने जाएँ तो वह स्त्री तो गहरी नींद सो रही हो और पुरुष ऐसे इधर-उधर करवटें बदल रहा हो तो हमें समझना चाहिए कि इस पुरुष की भूल है सारी, यह स्त्री भुगत नहीं रही है। जिसकी भूल हो वही भुगतता है। और उस घड़ी यदि पुरुष सो रहा हो और स्त्री जाग रही हो तो समझना कि स्त्री की भूल है। 'भुगते उसकी भूल ।' यह विज्ञान तो बहुत बड़ा साइन्स है। मैं जो कहता हूँ, वह बहुत सूक्ष्म साइन्स है जगत् सारा निमित्त को ही काटने दौड़ता है। मियाँ- बीवी बहुत बड़ा, विशाल जगत् है, परन्तु यह जगत् खुद के रूम के अंदर है इतना ही मान लिया है और वहाँ भी यदि जगत् मान रहा होता तो अच्छा था। पर वहाँ भी वाइफ के साथ लट्ठबाज़ी करता है ! अरे ! यह नहीं है

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