Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 76
________________ ७. ऊपरी का व्यवहार अन्डरहैन्ड की तो रक्षा करनी चाहिए प्रश्नकर्ता : दादा, सेठ मुझसे बहुत काम लेते हैं और तनख्वाह बहुत कम देते हैं और ऊपर से धमकाते हैं। दादाश्री : ये तो हिन्दुस्तान के सेठ वे तो पत्नी को भी धोखा देते हैं। परन्तु अंत में अरथी निकलती है, तब तो वे ही धोखा खाते हैं। हिन्दुस्तान के सेठ नौकर का तेल निकालते रहते हैं, चैन से खाने भी नहीं देते, नौकर की तनख्वाह काट लेते हैं। पहले इन्कम टैक्सवाले काट लेते तब वहाँ वे सीधे हो जाते थे, पर आज तो इन्कम टैक्सवाले का भी ये लोग काट लेते हैं! १३८ क्लेश रहित जीवन दादाश्री : वह हम 'ज्ञान' देते हैं उस समय सब खुलासा दे देते हैं। यह तोड़नेवाला कौन, चलानेवाला कौन, वह सब 'सॉल्व' कर देते हैं। अब वहाँ वास्तव में क्या करना चाहिए? भ्रांति में भी क्या अवलंबन लेना चाहिए? नौकर तो 'सिन्सियर' है, वह तोड़े ऐसा नहीं है। प्रश्नकर्ता : चाहे जितना 'सिन्सियर' हो पर नौकर के हाथों टूट गया तो परोक्ष रूप से वह जिम्मेदार नहीं है? दादाश्री : जिम्मेदार है! पर हमें वह कितना जिम्मेदार है वह समझना चाहिए। हमें सबसे पहले उसे पूछना चाहिए कि 'तू जला तो नहीं न?' जल गया हो तो दवाई लगाना। फिर धीरे से कहना कि अब जल्दी मत चलना आगे से। सत्ता का दुरुपयोग, तो... यह तो सत्तावाला अपने हाथ नीचेवालों को कुचलता रहता है। जो सत्ता का दुरुपयोग करता है, वह सत्ता जाती है और ऊपर से मनुष्य जन्म नहीं आता है। एक घंटा ही यदि अपनी सत्ता में आए हुए व्यक्ति को धमकाएँ तो सारी ज़िन्दगी का आयुष्य बंध जाता है। विरोध करनेवाले को धमकाएँ तो बात अलग है। प्रश्नकर्ता : सामनेवाला टेढ़ा हो तो जैसे के साथ वैसा नहीं होना चाहिए? दादाश्री : सामनेवाले व्यक्ति का हमें नहीं देखना चाहिए. वह उसकी जिम्मेदारी है, यदि लुटेरे सामने आ जाएँ और आप लुटेरे बनो तो ठीक है, पर वहाँ तो सबकुछ दे देते हो न? निर्बल के आगे सबल बनो उसमें क्या है? सबल होकर निर्बल के आगे निर्बल हो जाओ तो सच्चा। ये ऑफिसर घर पर पत्नी के साथ लड़कर आते हैं और ऑफिस में असिस्टेन्ट का तेल निकाल देते हैं। अरे, असिस्टेन्ट तो गलत हस्ताक्षर करवाकर ले जाएगा तो तेरी क्या दशा होगी? असिस्टेन्ट की तो खास ज़रूरत है। जगत् तो प्यादों को, अन्डरहैन्ड को धमकाए ऐसा है। अरे. साहब को धमका न, वहाँ हम जीतें तो काम का! जगत् का ऐसा व्यवहार है। जब कि भगवान ने एक ही व्यवहार कहा था कि तेरे 'अंडर' में जो आया उसका तू रक्षण करना। अंडरहैन्ड का रक्षण करें, वे भगवान हुए हैं। मैं छोटा था तब से ही अन्डरहैन्ड का रक्षण करता था। अभी यहाँ कोई नौकर चाय की ट्रे लेकर आए और वह गिर जाए तब सेठ उसे धमकाते हैं कि 'तेरे हाथ टूटे हुए हैं? दिखता नहीं है?' अब वह तो नौकर रहा बेचारा। वास्तव में नौकर कभी कुछ तोड़ता नहीं है, वह तो 'रोग बिलीफ़' से ऐसा लगता है कि नौकर ने तोडा। वास्तव में तोड़नेवाला दूसरा ही है। अब वहाँ निर्दोष को दोषी ठहराते हैं, नौकर फिर उसका फल देता है, किसी भी जन्म में। प्रश्नकर्ता : तो उस समय तोड़नेवाला कौन हो सकता है?

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