Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 48
________________ ८२ ५. समझ से सोहे गृहसंसार प्रकृति पहचानकर सावधानी रखना पुरुष घटनाओं को भूल जाते हैं और स्त्रियों की नोंध सारी जिन्दगी रहती है, पुरुष भोले होते हैं, बड़े मन के होते हैं, भद्रिक होते हैं, वे भूल जाते हैं बेचारे। स्त्रियाँ तो बोल भी जाती है फिर कि उस दिन आप ऐसा बोले थे, वह मेरे कलेजे में घाव लगा हुआ है। अरे बीस वर्ष हुए फिर भी नोंध ताजी? बेटा बीस वर्ष का हो गया, शादी के लायक हो गया, फिर भी अभी तक वह बात रखी हुई है? सभी चीजें सड़ जाएँ, पर इनकी चीज नहीं सड़ी। स्त्री को हम लोगोंने दिया हो तो वह असल जगह पर रख छोड़ती है, कलेजे के अंदर, इसीलिए देना-करना नहीं। नहीं देने जैसी चीज़ है ये। सावधान रहने जैसा है। इसलिए शास्त्रों में भी लिखा है कि, 'रमा रमाड़वी सहेली छे, विफरी महामुश्केल छे' (रमा को खेल खिलाना आसान है, बिफरे तब महामुश्किल है।') बिफरे तो वह क्या कल्पना नहीं करेगी, वह कहा नहीं जा सकता। इसलिए स्त्री को बार-बार नीचा नहीं दिखाना चाहिए। सब्जी ठंडी क्यों हो गई? दाल में बधार ठीक से नहीं किया, ऐसी किच-किच किसलिए करता है? बारह महीने में एकाध दिन एकाध शब्द हो तो ठीक है. यह तो रोज़! 'भाभो भारमां तो वहु लाजमां' (ससुर गरिमा में तो बहू शर्म में), हमें गरिमा में रहना चाहिए। दाल अच्छी नहीं बनी हो, सब्जी ठंडी हो गई हो, तब वह नियम के अधीन होता है। और बहुत हो जाए तब धीमे रहकर बात करनी हो तो करें किसी समय, कि यह सब्जी रोज़ गरम होती है, तब बहुत अच्छी लगती है। ऐसी बात करें तो वह उस टकोर को समझ जाती क्लेश रहित जीवन और यह घोड़ी उसका न्याय किसे कहने जाए? घोड़ी पर बैठना तुझे नहीं आता, उसमें तेरी भूल है या घोड़ी की? और घोडी भी बैठने के साथ ही समझ ही जाती है कि यह तो जंगली जानवर बैठा, इसे बैठना आता नहीं है ! वैसे ही ये हिन्दुस्तानी स्त्रियाँ, यानी आर्य नारियाँ, उनके साथ काम लेना नहीं आए तो फिर वे गिरा ही देंगी न? एक बार पति यदि स्त्री के आमने-सामने हो जाए तो उसका प्रभाव ही नहीं रहता। अपना घर अच्छी तरह चलता हो, बच्चे पढ़ रहे हों अच्छी तरह, कोई झंझट नहीं हो, और हमें उसमें उल्टा दिखा और बिना काम के आमने-सामने हो जाएँ, इसलिए फिर अपनी अक्कल का कीमिया स्त्री समझ जाती है कि इसमें बरकत नहीं है। यदि हमारा प्रभाव नहीं हो तो घोड़ी को सहलाएँ तब भी उसका प्रेम हमें मिलेगा। पहले प्रभाव पड़ना चाहिए। वाइफ की कुछ भूलें हम सहन करे तो उस पर प्रभाव पड़ता है। यह तो बिना भूल के भूल निकालें तो क्या हो? कुछ पुरुष स्त्री के संबंध में शोर मचाते हैं. वे सब गलत शोर होता है। कुछ साहब ऐसे होते हैं कि ऑफिस में कर्मचारी के साथ दख़ल करते रहते हैं। सब कर्मचारी भी समझते हैं कि साहब में बरकत नहीं है, पर करें क्या? पुण्य ने उसे बॉस की तरह बैठाया है वहाँ। घर पर तो बीवी के साथ पंद्रह-पंद्रह दिन से केस पेन्डिंग पड़ा होता है। साहब से पूछे, 'क्यों?' तो कहें कि उसमें अक्कल नहीं है। और वह अक्कल का बोरा! बेचें तो चार आने भी नहीं आएँ। साहब की वाइफ से पूछे तो वे कहेंगी कि जाने दो न उनकी बात। कोई बरकत ही नहीं है उनमें। स्त्रियाँ, मानभंग हो उसे सारी ज़िन्दगी भूलती नहीं हैं। ठेठ अरथी में जाने तक वह रीस साबूत होती है। वह रीस यदि भुलाई जाती हो तो जगत् सारा कब का ही पूरा हो गया होता। नहीं भुलाया जाए ऐसा है इसलिए सावधान रहना। सारा सावधानी से काम करने जैसा है। स्त्रीचरित्र कहलाता है न? वह समझ में आ सके ऐसा नहीं है। फिर स्त्रियाँ देवियाँ भी हैं ! इसलिए ऐसा है कि उन्हें देवियों की तरह देखोगे तो आप देवता बनोगे। बाकी आप तो मुर्गे जैसे रहोगे, हाथी और मुर्गे जैसे! डीलिंग नहीं आए, तो दोष किसका? अट्ठारह सौ रुपये की घोड़ी ले, फिर भाई ऊपर बैठ जाए। भाई को बैठना नहीं आए और उसे छेड़ने जाए, तब घोड़ी ने कभी भी वैसी छेड़खानी देखी नहीं हो इसलिए खड़ी हो जाती है। तब मूर्ख गिर जाता है। ऊपर से वह लोगों को कहता क्या है कि घोड़ी ने मुझे गिरा दिया।

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