Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 32
________________ ४. फैमिलि आर्गेनाइजेशन १० ज्वार की शुरूआत होती है। उसी तरह यह जगत् चलता रहता है। ज्वारभाटा नियम के अनुसार। धर्म के बिना तो मनुष्य जी ही नहीं सकता। धर्म के अलावा दूसरा आधार ही क्या है मनुष्य को? ये बच्चे तो दर्पण हैं। बच्चों के ऊपर से पता चलता है कि हममें कितनी भूल है। बाप रातभर सोए नहीं और बेटा आराम से सोता है, उसमें बाप की भूल है। मैंने बाप से कहा कि, 'इसमें तेरी ही भूल है। तूने ही पिछले जन्म में बेटे को सिर पर चढ़ाया था, बहकाया था, और वह भी तेरी किसी लालच की खातिर।' यह तो समझने जैसा है। यह अन्सर्टिफाइड फादर और अनुसर्टिफाइड मदर की कोख से बच्चे जन्मे हैं, उसमें वे क्या करें? बीस-पच्चीस वर्ष के हों, तब बाप बन जाते हैं। अभी तक उनका ही बाप उन पर चिल्ला रहा होता है! यह तो रामभरोसे फादर बन जाते हैं। इसमें बच्चों का क्या दोष? ये बच्चे हमारे पास सारी भूलें कबूल करते हैं, चोरी करी हो, तब भी कबूल कर लेते हैं। आलोचना तो गज़ब का पुरुष हो वहीं पर होती है। हिन्दुस्तान का किसी अद्भुत स्टेज में बदलाव हो जाएगा। संस्कार प्राप्त करवाए, वैसा चारित्र चाहिए प्रश्नकर्ता : दादा, घरसंसार पूरा शांतिमय रहे और अंतरात्मा का जतन हो ऐसा कर दीजिए। दादाश्री : घरसंसार शांतिमय रहे उतना ही नहीं, मगर बच्चे भी हमारा देखकर अधिक संस्कारी हों, ऐसा है। यह तो सब माँ-बाप का पागलपन देखकर बच्चे भी पागल हो गए हैं, क्योंकि माँ-बाप के आचार-विचार पद्धति अनुसार नहीं है। पति-पत्नी भी बच्चे बैठे हों तभी छेड़खानी करते हैं, इसलिए बच्चे बिगड़ें नहीं तो और क्या होगा? बच्चों में कैसे संस्कार पड़ते हैं? मर्यादा तो रखनी चाहिए न? इन अंगारों का कैसा ऑ लगता है? छोटा बच्चा अंगारो का ऑ रखता है न? माँ-बाप के मन फ्रेक्चर हो गए हैं, मन विह्वल हो गए हैं। वाणी चाहे जैसी बोलते हैं। सामनेवाले को दुःखदायी हो जाए वैसी वाणी बोलते हैं, इसीलिए बच्चे बिगड़ जाते हैं। हम ऐसा बोलें क्लेश रहित जीवन कि पति को दुःख हो और पति ऐसा बोले कि हमें दुःख हो। यह तो सब पज़ल खड़ा हो गया है। हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं होता। परन्तु यह कलियुग का निमित्त है, इसलिए ऐसा ही होता है। उसमें भी यह एक गजब का विज्ञान निकला है, तो जिसे मिलेगा उसका काम निकल जाएगा। इसलिए सद्भावना की ओर मोड़ो प्रश्नकर्ता : बच्चे टेढ़े चलें, तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : बच्चे टेढ़े रास्ते जाएँ, तब भी हमें उसे देखते रहना है और जानते रहना है। और मन में भाव तय करना है और प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि इस पर कृपा करो। हमें तो जो हुआ वही करेक्ट कहना चाहिए। जो भुगते उसीकी भूल है। हुआ वही करेक्ट कहकर चलो तो हल आएगा। भगवान ने कहा, 'तु सुधर तो तेरी हाज़िरी से सब सुधरेगा।' ___छोटे बेटे-बेटियों को समझाना चाहिए कि सुबह नहा-धोकर सूर्यपूजा करें और रोज संक्षेप में बोलें कि मुझे तथा जगत् को सद्बुद्धि दो, जगत् का कल्याण करो। इतना ही बोलो तो वह संस्कार मिले कहलाएँगे, और माँ-बाप का कर्मबंधन छूटा। यह तो सब अनिवार्य है। माँ-बाप ने पाँच हजार का उधार लेकर बेटे को पढ़ाया हो, फिर भी किसी दिन बेटा उद्धताई करे तो बोलकर बताना नहीं चाहिए कि हमने तुझे पढाया। वह तो हम ड्यूटी बाउन्ड थे, फ़र्ज था। फ़र्ज़ था, वह किया। हमें अपना फ़र्ज़ निभाना

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