Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 73
________________ ६. व्यपार, धर्म समेत १३१ प्रश्नकर्ता: सुख-दु:ख भुगतने में भी हैं। दादाश्री : आप अपने बीवी-बच्चों के अभिभावक कहलाते हो । अकेले अभिभावक को किसलिए चिंता करनी? और घरवाले तो उल्टा कहते हैं कि आप हमारी चिंता मत करना । प्रश्नकर्ता: चिंता का स्वरूप क्या है? जन्म हुआ तब तो थी नहीं और आई कहाँ से? दादाश्री : जैसे-जैसे बुद्धि बढ़ती है वैसे-वैसे संताप बढ़ता है। जन्म होता है तब बुद्धि होती है? व्यापार के लिए सोचने की ज़रूरत है। पर उससे आगे गए तो बिगड़ जाता है। व्यापार के बारे में दस-पंद्रह मिनट सोचना होता है, फिर उससे आगे जाओ और विचारों का चक्कर चलने लगे, वह नोर्मेलिटी से बाहर गया कहलाता है, तब उसे छोड़ देना । व्यापार के विचार तो आते हैं, पर उन विचारों में तन्मयाकार होकर वे विचार लम्बे चलें तो फिर उसका ध्यान उत्पन्न होता है और उससे चिंता होती है। वह बहुत नुकसान करती है। चुकाने की नीयत में चोखे रहो प्रश्नकर्ता: व्यापार में बहुत घाटा हुआ है तो क्या करूँ? व्यापार बंद करूँ या दूसरा करूँ? क़र्ज़ बहुत हो गया है। दादाश्री : रूई बाज़ार का नुकसान कोई किराने की दुकान लगाने से पूरा नहीं होता। व्यापार में से हुआ नुकसान व्यापार में से ही पूरा होता है, नौकरी में से नहीं होता। कॉन्ट्रेक्ट का नुकसान कभी पान की दुकान से पूरा होता है? जिस बाज़ार में घाव लगा हो, उस बाज़ार में ही घाव भरता है, वहाँ पर ही उसकी दवाई होती है। हमें भाव ऐसा रखना चाहिए कि अपने से किसी जीव को किंचित् मात्र दुःख न हो। हमें एक शुद्ध भाव रखना चाहिए कि सभी उधार चुका देना है, ऐसी यदि चोखी नीयत हो तो उधार सारा कभी न कभी चुकता हो जाएगा। लक्ष्मी तो ग्यारहवाँ प्राण है। इसलिए किसी की लक्ष्मी अपने १३२ क्लेश रहित जीवन पास नहीं रहनी चाहिए। अपनी लक्ष्मी किसी के पास रहे उसकी परेशानी नहीं है। परन्तु ध्येय निरंतर वही रहना चाहिए कि मुझे पाई-पाई चुका देनी है, ध्येय लक्ष्य में रखकर फिर आप खेल खेलो। खेल खेलो पर खिलाड़ी मत बन जाना, खिलाड़ी बन गए कि आप खतम हो जाओगे। ... जोखिम समझकर, निर्भय रहना हरएक व्यापार उदय-अस्तवाला होता है। मच्छर बहुत हों तब भी सारी रात सोने नहीं देते और दो हों तब भी सारी रात सोने नहीं देते ! इसलिए हमें कहना, 'हे मच्छरमय दुनिया! दो ही सोने नहीं देते तो सभी आओ न !' ये सब नफा-नुकसान वे मच्छर कहलाते हैं। नियम कैसा रखना ? हो सके तब तक समुद्र में उतरना नहीं, परन्तु उतरने की बारी आ गई तो फिर डरना मत। जब तक डरेगा नहीं तब तक अल्लाह तेरे पास हैं। तू डरा कि अल्ला कहेंगे कि जा औलिया के पास ! भगवान के वहाँ रेसकॉर्स या कपड़े की दुकान में फर्क नहीं है, पर आपको यदि मोक्ष में जाना हो तो इस जोखिम में मत उतरना इस समुद्र में प्रवेश करने के बाद निकल जाना अच्छा। हम व्यापार किस तरह करते हैं, वह पता है? व्यापार की स्टीमर को समुद्र में तैरने के लिए छोड़ने से पहले पूजाविधि करवाकर स्टीमर के कान में फूँक मारते हैं, 'तुझे जब डूबना हो तब डूबना, हमारी इच्छा नहीं है।' फिर छह महीने में डूबे या दो वर्ष में डूबे, तब हम 'एडजस्टमेन्ट' ले लेते हैं कि छह महीने तो चला। व्यापार मतलब इस पार या उस पार । आशा के महल निराशा लाए बगैर रहते नहीं हैं। संसार में वीतराग रहना बहुत मुश्किल है। वह तो ज्ञानकला और बुद्धिकला हमारी जबरदस्त हैं, उससे रहा जा सकता है। ग्राहकी के भी नियम हैं प्रश्नकर्ता: दुकान में ग्राहक आएँ, इसलिए मैं दुकान जल्दी खोलता हूँ और देर से बंद करता हूँ, यह ठीक है न?

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