Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 45
________________ क्लेश रहित जीवन ऐसा जन्मा ही नहीं। हिन्दुस्तान में प्रकृति नापी नहीं जा सकती, यहाँ तो भगवान भी भुलावे में आ जाएँ। फ़ॉरेन में तो एक दिन उसकी वाइफ के साथ सच्चा रहा तो सारी ज़िन्दगी सच्चा ही रहता है! और यहाँ तो सारा दिन प्रकृति को देखते रहें, फिर भी प्रकृति नापी नहीं जा सकती। यह तो कर्म के उदय घाटा करवाते हैं, नहीं तो ये लोग घाटा उठाएँगे? अरे, मरें फिर भी घाटा नहीं होने दें, आत्मा को एक तरफ थोड़ी देर बैठाकर फिर मरें। 'पलटकर' मतभेद टाला दादाश्री : भोजन के समय टेबल पर मतभेद होता है? प्रश्नकर्ता : वह तो होता है न? ५. समझ से सोहे गृहसंसार क्लेश रहित जीवन जीना वही धर्म है। हिन्दुस्तान में यहाँ संसार में ही खुद का घर स्वर्ग बनेगा तो मोक्ष की बात करनी चाहिए, नहीं तो मोक्ष की बात करनी नहीं, स्वर्ग नहीं तो स्वर्ग के नज़दीक का तो होना ही चाहिए न? क्लेश रहित होना चाहिए, इसलिए शास्त्रकारों ने कहा है कि, 'जहाँ किंचित् मात्र क्लेश है वहाँ धर्म नहीं है।' जेल की अवस्था हो वहाँ डिप्रेशन नहीं, और महल की अवस्था हो वहाँ एलिवेशन नहीं, ऐसा होना चाहिए। क्लेश रहित जीवन हुआ इसलिए मोक्ष के नज़दीक आया, वह इस भव में सुखी होता ही है। मोक्ष हरएक को चाहिए। क्योंकि बंधन किसी को पसंद नहीं है। परन्तु क्लेश रहित हुआ, तब समझना कि अब नज़दीक में अपना स्टेशन है मोक्ष का। ...तब भी हम सुल्टा करें एक बनिये से मैंने पूछा, 'आपके घर में झगड़े होते हैं?' तब उसने कहा, 'बहुत होते हैं।' मैंने पूछा, 'उसका तू क्या उपाय करता है?' बनिये ने कहा, 'पहले तो मैं दरवाजे बंद कर आता हूँ।' मैंने पूछा, 'पहले दरवाजे बंद करने का क्या हेतु है?' बनिये ने कहा, 'लोग घुस जाए तो उल्टा झगड़ा बढ़ाते हैं। घर में झगड़े फिर अपने आप ठंडा पड़ जाता है।' इसकी बुद्धि सच्ची है, मुझे यह पसंद आया। इतनी भी अक्कलवाली बात हो तो उसे हमें एक्सेप्ट करना चाहिए। कोई भोला मनुष्य तो उल्टे दरवाजा बंद हो तो खोल आए और लोगों से कहे. 'आओ, देखो हमारे यहाँ!' अरे. यह तो तायफ़ा किया! ये लट्ठबाजी करते हैं उसमें किसी की जिम्मेदारी नहीं, अपनी खुद की ही जोखिमदारी है। इसे तो खुद ही अलग करना पड़ेगा। यदि तू खरा समझदार पुरुष होगा तो लोग उल्टा डालते रहेंगे और त सल्टा करता रहेगा तो तेरा हल आएगा। लोगों का स्वभाव ही उल्टा डालना वह है, तू समकिती है तो लोग उल्टा डालें तो हम सीधा कर डालें. हम तो उल्टा डालें ही नहीं। बाकी, जगत् तो सारी रात नल खुल्ला रखे और मटका उल्टा रखे, ऐसा है! खुद का ही सर्वस्व बिगाड़ रहे हैं। वे समझते हैं कि मैं लोगों का बिगाड़ रहा हूँ। लोगों का तो कोई बिगाड़ सके ऐसा है ही नहीं, कोई दादाश्री : क्यों, शादी करते समय ऐसा करार किया था? प्रश्नकर्ता : ना। दादाश्री: उस समय तो करार यह किया था कि 'समय वर्ते सावधान।' घर में वाइफ के साथ 'तुम्हारा और मेरा' ऐसी वाणी नहीं होनी चाहिए। वाणी विभक्त नहीं होनी चाहिए, वाणी अविभक्त होनी चाहिए। हम अविभक्त कुटुंब के हैं न? हमें हीराबा के साथ कभी भी मतभेद पड़ा नहीं, कभी भी वाणी में 'मेरा-तेरा' हुआ नहीं। पर एक बार हमारे बीच मतभेद पड़ गया था। उनके भाई के वहाँ पहेली बेटी की शादी थी। उन्होंने मुझसे पूछा कि, 'उन्हें क्या देना है?' तब मैंने उसे कहा कि, 'आपको ठीक लगे वह, पर घर में ये तैयार चाँदी के बरतन पड़े हुए हैं, वे दे दीजिए! नया बनवाना मत।' तब उन्होंने कहा कि, 'आपके ननिहाल में तो मामा की बेटी की शादी हो तो बड़े-बड़े थाल बनाकर देते हैं!' वे मेरे और आपके शब्द बोले तब से ही मैं समझ गया कि आज आबरू गई अपनी। हम एक के एक वहाँ मेरा-तेरा होता होगा? मैं तुरन्त ही समझ गया और तुरन्त ही पलट गया,

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