Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 42
________________ ५. समझ से सोहे गृहसंसार ६९ खुद ही नखरे करती है। यह किस तरह की रीति कहलाए? कैसी लाइफ? भगवान जैसा भगवान होकर यह क्या धाँधली मचाई है? खुद भगवान स्वरूप है। कान में लौंग डालते हैं, वे खुद को दिखते हैं क्या? ये तो लोग हीरा देखें, इसलिए पहनते हैं। ऐसी जंजाल में फँसे हैं, तब भी हीरा दिखाने फिरते हैं! अरे, जंजाल में फंसे हुए मनुष्य को शौक होता होगा? झटपट उकेल लाओ न! पति कहे तो पति को अच्छा दिखाने के लिए पहनो। सेठ दो हजार के हीरे के लौंग लाए हों और पैंतीस हजार का बिल लाए तो सेठानी खुश हो जाती है। लौंग खद को तो दिखते नहीं है। सेठानी से मैंने पूछा कि रात को सो जाते हो तब कान के लौंग नींद में भी दिखते हैं या नहीं? यह तो माना हुआ सुख है, रोंग मान्यताएँ हैं, इसलिए अंतरशांति होती नहीं है। भारतीय नारी किसे कहते हैं? घर में दो हजार की साड़ी आकर पड़ी हुई हो, तो पहनती है। यह तो पति-पत्नी बाजार में घूमने गए हों और दुकान में हज़ार की साड़ी रखी हुई हो तो साड़ी स्त्री को खींचती है और घर आती है, तब भी मुँह चढा हआ होता है और कलह करती है। उसे भारतीय नारी कैसे कहा जाए? ....ऐसा करके भी क्लेश टाला ७० क्लेश रहित जीवन कि वह क्या चढ़ बैठनेवाली थी? उसके पास हथियार नहीं, कुछ नहीं। मैंने कहा कि हमारे हिन्दूओं को तो डर लगता है कि बीवी चढ़ बैठेगी तो क्या होगा? इसीलिए ऐसे झूला नहीं डालते। तब मियाँभाई बोलते हैं कि यह झूला डालने का कारण आप जानते हैं? मेरे तो ये दो ही कमरे हैं। मेरे पास कोई बंगला नहीं, ये तो दो ही कमरे हैं और उसमें बीवी के साथ लड़ाई हो तो मैं कहाँ सोऊँगा? मेरी सारी रात बिगड़ेगी। इसलिए मैं बाहर सबके साथ लड़ आता हूँ पर बीवी के साथ क्लियर रखता हूँ। बीवी मियाँ से कहेगी कि सुबह गोश्त लाने को कह रहे थे, तो क्यों नहीं लाए? तब मियाँभाई नक़द जवाब देता है कि कल लाऊँगा। दूसरे दिन सुबह कहता है, 'आज तो किधर से भी ले आऊँगा।' और शाम को खाली हाथ वापिस आता है, तब बीवी खूब अकुलाती है पर मियाँभाई खूब पक्के, तो ऐसा बोलते हैं, 'यार मेरी हालत मैं जानता हूँ!' वह ऐसे बीवी को खुश कर देता है, झगड़ा नहीं करता। और हमारे लोग तो क्या कहते हैं, 'तू मुझ पर दबाव डालती है? जा, नहीं लानेवाला।' अरे, ऐसा नहीं बोलते। उल्टे तेरा वजन टूटता है। ऐसा तू बोलता है, इसलिए तू ही दबा हुआ है। अरे, वह तुझे किस तरह दबाए? वह बोले, तब शांत रहना, पर कमजोर बहुत चिड़चिड़े होते हैं। इसीलिए वह चिढ़े, तब हमें चुप रहकर उसकी रिकार्ड सुननी चाहिए। हिन्दू तो मूल से ही क्लेशी स्वभाव के हैं। इसलिए कहते हैं न कि हिन्दू बिताते हैं जीवन क्लेश में! पर मुसलमान तो ऐसे पक्के कि बाहर झगड़कर आएँ, पर घर में बीवी के साथ झगडा नहीं करते। अब तो कई मुस्लिम लोग भी हिन्दूओं के साथ रहकर बिगड़ गए हैं। पर हिन्दू से भी ज्यादा इस बारे में मुझे तो वे लोग समझदार लगे। अरे कुछ मुस्लिम तो बीबी को झूला भी झुलाते हैं। हमारा कॉन्ट्रेक्टर का व्यवसाय, उसमें हमें मुसलमान के घर भी जाने का होता था, हम उसकी चाय भी पीते थे! हमें किसी के साथ जुदाई नहीं होती। एक दिन वहाँ गए हुए थे, तब मियाँभाई बीबी को झूला डालने लगा। तब मैंने उससे पूछा कि आप ऐसा करते हो तो वह आपके ऊपर चढ़ बैठती नहीं है? तब वह कहने लगा जिस घर में झगड़ा नहीं होता, वह घर उत्तम है। अरे झगड़ा हो पर वापिस उसे मना ले, तब भी उत्तम कहलाए ! मियाँभाई को एक दिन खाने में टेस्ट नहीं आए तो मियाँ चिढ़ते हैं कि तू ऐसी है, वैसी है। और सामने यदि पत्नी चिढ़े तो खुद चुप हो जाता है और समझ जाता है कि इससे विस्फोट होगा। इसीलिए हम अपने में और वह उसमें। और हिन्दू तो विस्फोट करके ही रहते हैं। बनिये की पगड़ी अलग, दक्षिणी की अलग और गुजराती की अलग, सुवर्णकार की अलग, ब्राह्मण की अलग, हरएक की अलग। चूल्हेचूल्हे का धरम अलग। सभी के व्यू पोइन्ट अलग ही हैं, मेल ही नहीं खाते। पर झगड़ा न करें तो अच्छा ।

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