Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ १. जीवन जीने की कला मचाता है? नहीं मचाता। इसलिए ज़रूरतें क्या है, इतना निश्चित कर लो। जब कि ये लोग खास प्रकार की आइस्क्रीम ढूंढेंगे। कबीर साहब क्या कहते 'तेरा बैरी कोई नहीं, तेरा बैरी फ़ेल।' क्लेश रहित जीवन हिप्पी यहाँ आए और यहाँ के लोगों ने उनकी नकल कर डाली। इसे जीवन कहा ही कैसे जाए? लोग 'गुड़ मिलता नहीं, चीनी मिलती नहीं' ऐसे शोर मचाते रहते हैं। खाने की चीजों के लिए क्या शोर मचाना चाहिए? खाने की चीजों को तो तुच्छ माना गया है। खाने का तो, पेट है तो मिल ही जाता है। दाँत है उतने कौर मिल ही जाते हैं। दाँत भी कैसे हैं! चीरने के, फाड़ने के, चबाने के, अलग-अलग। ये आँखें कितनी अच्छी हैं? करोड़ रुपये दें तब भी ऐसी आँखें मिलें? नहीं मिलें। अरे, लाख रुपये हों तब भी अभागा कहेगा, 'मैं दुःखी हूँ'। अपने पास इतनी सारी क़ीमती वस्तुएँ हैं, उनकी क़ीमत समझता नहीं है। ये सिर्फ आँख की ही क़ीमत समझे, तब भी सुख लगे। ये दाँत भी अंत में तो दिवालिया निकालनेवाले हैं, पर आजकल बनावटी दाँत डालकर उन्हें पहले जैसे बना देते हैं। पर वह भूत जैसा लगता है। कुदरत को नये दाँत देने होते तो वह नहीं देती? छोटे बच्चे को नये दाँत देती है न? इस देह को गेहूँ खिलाए, दाल खिलाई, फिर भी अंत में अरथी! सबकी अरथी! अंत में तो यह अरथी ही निकलनेवाली है। अरथी यानी कुदरत की जब्ती। सब यहीं रखकर जाना है और साथ में क्या ले जाना है? घरवालों के साथ की, ग्राहकों के साथ की, व्यापारियों के साथ की गुत्थियाँ ! भगवान ने कहा है कि 'हे जीवों! समझो, समझो, समझो। मनुष्यपन फिर से मिलना महादुर्लभ है।' अन्नेसेसरी के लिए बेकार ही भागदौड़ करता है, वही फ़ेल कहलाता है। तू हिन्दुस्तान में रहता है और नहाने के लिए पानी माँगे तो हम तुझे फ़ेल नहीं कहेंगे? 'अपने फ़ेल मिटा दे, फिर गली-गली में फिर।' इस देह की ज़रूरतें कितनी? शुद्ध घी, दूध चाहिए। तब वह शुद्ध नहीं देते और पेट में कचरा डालते हैं। वे फेल किस काम के? ये सिर में क्या डालते हैं? शेम्पू, साबुन जैसा नहीं दिखता और पानी जैसा दिखता है, ऐसा सिर में डालेंगे। इन अक्कल के खजानो ने ऐसी खोज करी कि जो फेल नहीं थे वे भी फेल हो गए! इससे अंतरसुख घट गया! भगवान ने क्या कहा था कि बाह्यसुख और अंतरसुख के बीच में पाँच-दस प्रतिशत फर्क होगा तो चलेगा, पर यह नब्बे प्रतिशत का फर्क हो तब तो नहीं चलेगा। इतना बड़ा होने के बाद फिर वह फेल होता है, मरना पड़ेगा। पर ऐसे नहीं मरा जाता और सहन करना पड़ता है। ये तो केवल फ़ेल ही हैं, अन्नेसेसरी ज़रूरतें खड़ी करी हैं। एक घंटा बजार बंद हो गया हो जाए तो लोगों को चिंता हो जाती है! अरे, तुझे क्या चाहिए कि तुझे चिंता होती है? तो कहे कि, मुझे जरा आइस्क्रीम चाहिए, सिगरेट चाहिए। यह तो फ़ेल ही बढ़ाया न? यह अंदर सुख नहीं है इसलिए लोग बाहर ढूंढते रहते हैं। भीतर अंतरसुख की जो सिलक थी, वह भी आज चली गई है। अंतरसुख का बैलेन्स मत तोड़ना। यह तो जैसे अच्छा लगे वैसे सिलक (राहखर्च, पूँजी) खर्च कर डाली। तो फिर अंतरसुख का बैलेन्स ही किस तरह रहे? नकल करके जीना अच्छा या असल? ये बच्चे एक-दूसरे की नकल करते हैं। हमें नकल कैसी? ये फ़ॉरेन के लोग अपनी नकल कर जाते हैं। पर ये तो फ़ॉरेन के थोड़े जलगा जीवन जीने की कला इस काल में नहीं होती है। मोक्ष का मार्ग तो जाने दो, पर जीवन जीना तो आना चाहिए न? । किसमें हित? निश्चित करना पड़ेगा हमारे पास व्यवहार जागृति तो निरंतर होती है! कोई घड़ी की कंपनी मेरे पास से पैसे नहीं ले गई है। किसी रेडियोवाले की कंपनी मेरे पास

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85