Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 41
________________ क्लेश रहित जीवन ५. समझ से सोहे गृहसंसार तेरा पाकिस्तान! पत्नी और पति दोनों पड़ोसी के साथ लड़ रहे हों, तब दोनों एकमत और एकजुट होते हैं। पड़ोसी को कहते हैं कि आप ऐसे और आप वैसे। हम समझें कि यह मियाँ-बीवी की टोली अभेद टोली है, नमस्कार करने जैसी है। फिर घर में जाएँ तो बहन से ज़रा चाय में चीनी कम पड़ी हो, तब फिर वह कहेगा कि मैं तुझे रोज़ कहता हूँ कि चाय में चीनी ज़रा ज्यादा डाल। पर तेरा दिमाग़ ठिकाने नहीं रहता। यह दिमाग के ठिकानेवाला घनचक्कर! तेरे ही दिमाग़ का ठिकाना नहीं है न! अरे, किस तरह का है तू? रोज़ जिसके साथ सौदेबाजी करनी होती है, वहाँ कलह करनी होती है? आपका किसी के साथ मतभेद होता है? प्रश्नकर्ता : हाँ, पड़ता है बहुत बार। दादाश्री : वाइफ के साथ मतभेद हो जाता है? प्रश्नकर्ता : हाँ, बहुत बार पड़ता है। दादाश्री : वाइफ के साथ भी मतभेद होता है? वहाँ भी एकता न रहे तो फिर और कहाँ रखनी है? एकता यानी क्या कि कभी भी मतभेद न पड़े। इस एक व्यक्ति के साथ निश्चित करना है कि आपमें और मझमें मतभेद नहीं पड़े। इतनी एकता करनी चाहिए। ऐसी एकता की है आपने? प्रश्नकर्ता : ऐसा कभी सोचा ही नहीं। यह पहली बार सोच रहा झगड़ा करो, पर बगीचे में क्लेश आपको करना हो तो बाहर जाकर कर आना चाहिए। घर में यदि झगड़ा करना हो, तब उस दिन बगीचे में जाकर खूब लड़कर घर आना चाहिए। परन्तु घर में अपने रूम में लड़ना नहीं है', ऐसा नियम बनाना। किसी दिन हमें लड़ने का शौक हो जाए तो बीवी से हम कहें कि चलो, आज बगीचे में खूब नाश्ता-पानी करके, खूब झगड़ा वहाँ पर करें। लोग रोकने आए वैसे झगड़ा करना चाहिए। पर घर में झगड़ा नहीं होना चाहिए। जहाँ क्लेश होता है वहाँ भगवान नहीं रहते। भगवान चले जाते हैं। भगवान ने क्या कहा है? भक्त के वहाँ क्लेश नहीं होता। परोक्ष भक्ति करनेवाले को भक्त कहा है और प्रत्यक्ष भक्ति करनेवाले को भगवान ने 'ज्ञानी' कहा है, वहाँ तो क्लेश हो ही कहाँ से? पर समाधि होती है! इसलिए किसी दिन लड़ने की भावना हो, तब हमें पतिराज से कहना चाहिए कि 'चलो हम बगीचे में जाएँ।' बच्चों को किसी को सौंप देना। फिर पतिराज को पहले से ही कह देना कि मैं आपको पब्लिक में दो धौल मारूँ तो आप हँसना। लोग भले ही देखें, हमारी हँसी-मजाक।' लोग आबरू नोंधनेवाले, वे जानें कि कभी इनकी आबरू नहीं गई तो आज गई। आबरू तो किसी की होती होगी? यह तो ढंक-ढंककर आबरू रखते हैं बेचारे! ....यह तो कैसा मोह? आबरू तो उसे कहते हैं कि नंगा फिरे तब भी सुंदर ही दिखे! यह तो कपड़े पहनते हैं, तब भी सुंदर नहीं दिखते। जाकेट, कोट, नेकटाई पहनते हैं, तब भी बैल जैसा लगता है! क्या ही मान बैठे हैं अपने आप को! दुसरे किसी को पूछता भी नहीं है। पत्नी को भी पछता नहीं कि यह नेकटाई पहनने के बाद मैं कैसा लगता हूँ! आईने में देखकर खुद ही खुद का न्याय करता है कि बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है। ऐसे-ऐसे करके बाल सँवारता जाता है। और स्त्रियाँ भी बिंदी लगाकर आईने में खुद के दादाश्री : हाँ, वह सोचना तो पड़ेगा न? भगवान कितना सोचसोचकर मोक्ष में गए! मतभेद पसंद है? प्रश्नकर्ता : ना। दादाश्री : मतभेद हों तब झगड़े होते हैं, चिंता होती है। इस मतभेद में ऐसा होता है तो मनभेद में क्या होगा? मनभेद हो तब डायवोर्स लेते हैं और तनभेद हो, तब अरथी निकलती है।

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