Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 15
________________ १. जीवन जीने की कला बाहर कितने सारे एशो-आराम भोगने के हैं! ये लाख रुपये की डबलडेकर बस में आठ आने दें तो यहाँ से ठेठ चर्चगेट तक बैठकर जाने का मिलता है। उसमें गद्दी फिर कितनी अच्छी! अरे! खुद के घर पर भी ऐसी नहीं होती! अब इतने अच्छे पुण्य मिले हैं फिर भी भोगना नहीं आता है, नहीं तो हिन्दुस्तान के मनुष्य को लाख रुपये की बस कहाँ से भाग्य में हो? यह मोटर में जाते हो तो कहीं धूल उड़ती है? ना। वह तो रास्ते धूल बिना के हैं। चले तो पैरों पर भी धूल नहीं चढ़ती। बादशाह को भी उसके समय में रास्ते धुलवाले थे, वह बाहर जाकर आए तो धूल से भर जाता था! और इसे बादशाह से भी ज्यादा साहिबी है, परन्तु भोगना ही नहीं आता न? यह बस में बैठा हो तब भी अंदर चक्कर शुरू! संसार सहज ही चले, वहाँ.... क्लेश रहित जीवन ये संसार चलाना तो अपने आप ही आ जाए ऐसा है। हाँ, 'स्वरूपज्ञान' प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करने की ज़रूरत है। संसार को चलाने के लिए कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। ये मनुष्य अकेले ही बहुत अधिक अक्कलवाले हैं। इन पशु-पक्षियों के क्या बीवी-बच्चे नहीं हैं? उन्हें शादी करवानी पड़ती है? यह तो मनुष्यों के ही पत्नी-बच्चे हुए हैं। मनुष्य ही शादी करवाने में पड़े हुए हैं। पैसे इकट्ठे करने में पड़े हुए हैं। अरे, आत्मा जानने के पीछे मेहनत कर न! दूसरे किसी के लिए मेहनत-मजदूरी करने जैसी है ही नहीं। अभी तक जो कुछ किया है, वह दुःख मनाने जैसा किया है। यह बच्चे को चोरी करना कौन सिखाता है? सब बीज में ही रहा हुआ है। यह नीम हरएक पत्ते में कड़वा किसलिए है? उसके बीज में ही कड़वाहट रही हुई है। ये मनुष्य अकेले ही दु:खी-दु:खी हैं, परन्तु उसमें उनका कोई दोष नहीं। क्योंकि चौथे आरे तक सुख था, और यह तो पाँचवाँ आरा, इस आरे (कालचक्र का बारहवाँ हिस्सा) का नाम ही दूषमकाल! इसलिए महादुःख उठाकर भी समता उत्पन्न नहीं होती है। काल का नाम ही दूषम!! फिर सुषम ढूंढना वह भूल है न? कुछ दु:ख जैसा है ही नहीं और जो है वे नासमझी के दुःख हैं। इस दुनिया में कितने सारे जीव हैं। असंख्य जीव हैं ! परन्तु किसी की पुकार नहीं कि हमारे यहाँ अकाल पड़ा है। और ये मूर्ख हर साल शोर मचाया करते हैं ! इस समुद्र में कोई जीव भूखा मर गया हो ऐसा है? ये कौए वगैरह भूखे मर जाते हैं ऐसा है? ना, वे भूख से नहीं मरनेवाले, वह तो कहीं टकरा गए हों, एक्सिडेन्ट हो गया हो, या फिर आयुष्य पूरा हो गया हो, तब मर जाते हैं। कोई कौआ आपको दुःखी दिखा है? कोई सूखकर दुबला हो गया हो ऐसा कौआ देखा है आपने? इन कुत्तों को कभी नींद की गोलियाँ खानी पड़ती हैं? वे तो कितने आराम से सो जाते हैं। ये अभागे ही बीस-बीस गोलियाँ सोने के लिए खाते हैं! नींद तो कुदरत की भेंट है, नींद में तो सचमुच का आनंद होता है ! और ये डॉक्टर तो बेहोश होने की दवाईयाँ देते हैं। गोलियाँ खाकर बेहोश होना, वह तो शराब पीते हैं, उसके जैसा है। कोई ब्लडप्रेशरवाला कौआ देखा है आपने! यह मनुष्य नाम का जीव अकेला ही दु:खी है। इस मनुष्य अकेले को ही कॉलेज की ज़रूरत है। ये चिड़ियाँ सुंदर घोंसला बनाती हैं, तो उन्हें कौन सिखाने गया था?

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