Book Title: Jain Tirth Yatra Vivaran
Author(s): Dahyabhai Shivlal
Publisher: Dahyabhai Shivlal

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Page 7
________________ भूमिको लोग तीर्थयात्राके लिये चलते है उनमें कई लोग ऐसे भी होते है कि जिनको अपने जैन तीर्थस्थानोंके वि षयमें पूरा परिचय भी नहीं होता है। इस कारण र उन लोगोको किसी २ तीर्थस्थानपर तो दुवारा " जाना आना पड़ता है. इससे उन विचारोंका समय और वन व्यर्थ ही नष्ट होता है; किस स्टेशनसे किस तीर्थस्थानपर जानेके लिये समीता होगा वा अमक स्टेशनसे अमक तीर्थपर पहुँचनेके लिये क्या सामग्री मिलती है, किस तीर्थस्थानका तारघर ना डाकखाना कहां है. इत्यादि साधारण वात भी मालूम न होनसे पात्री व्यर्थ ही तकलीफ पाते है व उनको अपनी चिट्ठी समयपर नहीं मिलती है इन सब तकलीफोंको यथासाध्य दूर करनेके लिये यह पुस्तक वनाई गई है. जैन तीर्थयात्रा, जैनतीर्थप्रदीपिका और तीर्थाटन नामकी दो तीन पुस्तकें इसी उद्देशसे अवतक प्रकाशित भी हो चुकी हैं, परन्तु उन पुस्तकोंमें भारतवर्षके सब तीर्थोंका मानचित्र ( नकशा) । नहीं है. इससे यात्रीको घरसे चलते समय यह नहीं मालूम पड़ता कि मुझे रास्तेमें कौनसे तीर्थ मिलेंगे तथा इस तीर्थ से अगाड़ी कौनसा तीर्थ मिलेगा, तथा उन पुस्तकोंका मूल्य भी कुछ ज्यादा होनेसे सर्व साधारणको उनसे जो लाभ होना चाहिये था,

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