Book Title: Jain Tirth Yatra Vivaran
Author(s): Dahyabhai Shivlal
Publisher: Dahyabhai Shivlal

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Page 41
________________ (३५) अस्तु यात्री सूर्योदयके करीब २ गौतमस्वामीकी गुमठीके पास पहुँच जाते है, फिर कुंथुनाथकी टोंक आती है इसके बाद क्रमसे, नमिनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, श्रेयान्सनाथ, पुष्पदन्त, पद्मप्रभु तथा मुनिसुव्रत स्वामीकी टोंकके दर्शन करते हुए चन्द्रप्रमुकी टोंकपर जाते है फिर दक्षिणकी ओर क्रमसे आदिनाथ अनन्तनाथ, सम्भवनाथ, वांसपूज्य और और अमिनंदननाथकी टोंकपर जाते हुए जलमंदिरमें जाते है वहांके दर्शन करके फिर ऊंचे चढ़कर गौतमस्वामीकी टौकपर जाते है वहांसे चलकर क्रमसे धर्मनाथ, सुमतिनाथ, शान्तिनाथ, विमलनाथ, सुपार्श्वनाथ, महावीरस्वामी, अजितनाथ __ और नेमिनाथकी टोकपर जाकर अन्तमें पार्श्वनाथ स्वामीकी टोकपर नाना चाहिये । यह टौंक सबसे ऊंची होनेके कारण चारों तरफसे कई कोसकी दूरीपरसे दिखाई देती है। यहांसे पार्श्वनाथ स्वामीने मोक्ष लाम किया था। जैनशास्त्रों में इसका नाम सुवर्णमद्र लिखा है, इस जगहसे बहुत दूरकी चीजें दिखाई पड़ती है, दूसरी ओरको नीमयाघाट व गोमोह स्टेशन नजर आता है। इस टोंकसे दो फोग नीचे सरकारी बंगला है, बंगलासे थोड़ी दूर आनेपर दो मार्ग मिलते है, जिनमें से बायें हाथवाले रास्तेको छोड़ देना चाहिये, क्योंकि वह नीमयाघाटको जाता है, दूसरे रास्तेसे ४ मील उतरनेपर गन्धर्वनाला मिलता है यहापर जलपानके लिये लड्ड वगैरह मिलते हैं। यहांसे चलकर यात्री चायका वगीचा पार करता हुआ ठीक मधुवनमें आ जाता है । प्रायः १२ बजे तक यात्री लौटकर आजाता है । ३ री बन्दनाके वाद यात्री लोग पर्वतकी परिक्रमा देते

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