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भूमिको
लोग तीर्थयात्राके लिये चलते है उनमें कई लोग ऐसे भी होते है कि जिनको अपने जैन तीर्थस्थानोंके वि
षयमें पूरा परिचय भी नहीं होता है। इस कारण र उन लोगोको किसी २ तीर्थस्थानपर तो दुवारा " जाना आना पड़ता है. इससे उन विचारोंका समय और वन व्यर्थ ही नष्ट होता है; किस स्टेशनसे किस तीर्थस्थानपर जानेके लिये समीता होगा वा अमक स्टेशनसे अमक तीर्थपर पहुँचनेके लिये क्या सामग्री मिलती है, किस तीर्थस्थानका तारघर ना डाकखाना कहां है. इत्यादि साधारण वात भी मालूम न होनसे पात्री व्यर्थ ही तकलीफ पाते है व उनको अपनी चिट्ठी समयपर नहीं मिलती है इन सब तकलीफोंको यथासाध्य दूर करनेके लिये यह पुस्तक वनाई गई है.
जैन तीर्थयात्रा, जैनतीर्थप्रदीपिका और तीर्थाटन नामकी दो तीन पुस्तकें इसी उद्देशसे अवतक प्रकाशित भी हो चुकी हैं, परन्तु उन पुस्तकोंमें भारतवर्षके सब तीर्थोंका मानचित्र ( नकशा) । नहीं है. इससे यात्रीको घरसे चलते समय यह नहीं मालूम पड़ता कि मुझे रास्तेमें कौनसे तीर्थ मिलेंगे तथा इस तीर्थ से अगाड़ी कौनसा तीर्थ मिलेगा, तथा उन पुस्तकोंका मूल्य भी कुछ ज्यादा होनेसे सर्व साधारणको उनसे जो लाभ होना चाहिये था,
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(२)
वह न हुआ । इस लिये हमने सारे भारतवर्षके जैन तीर्थस्थानोंका तथा उन तीर्थस्थानोंपर जानेवाली रेलवे लाइनोंका नकशा भी छपवाया है, इससे उसको देखते ही सारे तीर्थस्थानोंका परिचय हो जायगा । ___ इस पुस्तकमें जिस तीर्थस्थानका विवरण दिया है उसमें पाठक शायद यह समझेंगे कि लेखक उन सव तीर्थोपर स्वयं गया होगा पर यह बात ठीक नहीं है, हमको जिस २ तीर्थोंका दर्शन करनेका अवसर मिला है उस पर * यह चिन्ह किया है बाकी 'अन्य सब तीर्थोंका वृत्तांत उस प्रांतके निवासियोंसे 'तथा जिन्होंने उन तीर्थ स्थानोंकी यात्रा की है, उन लोगोंसे पूछकर लिखा है, इसी कारण इसमें कहीं २ पर ठीक भी न लिखा गया होगा, दूसरे आजकल ब्रिटिश राज्यमें रेलवे लाईन प्रतिदिन बढ़ रही है, इससे नवीन मार्ग भी खुलते जाते है; सम्भव है कि जिस रेलवे स्टेशनसे जानेका अब मार्ग है, वह आगे न रहे. इस कारण पाठक वर्गसे हमारा नम्र निवेदन है कि वह उस जगह पर उसको सधारकर पढ़ें तथा हमको कृपा करके सूचित करें जिससे हम द्वितीयावृत्तिमें ठीक कर देखें। ___हमारी मातृ भाषा गुजराती है. हिन्दी भाषामें पुस्तक प्रगट करनेका हमको यह प्रथमही समय था. इस लिये भाषाकी कई एक अशुद्धियां थीं जिसको पंडित गोविन्दरायनी, विद्यार्थी स्याद्वाद महाविद्यालय काशीने सुधार दी है, निससे मैं उनका चिर कृतज्ञ हूं।
निवेदक, डाह्याभाई शिवलाल.
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तीर्थयात्राका असली फल
जो नितना अधिक ज्ञानी होता है वह उतनी ही सरल
रीतिसे अपनी आवश्यकताओंको पूर्ण कर सुखी होता
है। जब मनुष्य बाल्यावस्थामें रहना है तब उसको me मापारणमे भी माधारण आपथ्यकताओं को पूर्ण कर
' में बहुत तकरीफ उठानी पड़ती है, परन्त जम कर प्रौद हो जाता है तब उनरी आवश्यक्ताओंको बड़ी सरल गनिमे यह पूर्णकर देना है इन मनका कारण सोचनेपर यही निश्चित होता है कि ज्यों २ मनुस्यों ज्ञान का विकास होता नाता है त्यो २ वह अपनी आवश्यकताओंको परलेमे अधिक सम्दतासे पूर्ण करनमें क्षम होना जाना है। इस लिये जिस तरह बने उस तरह मन्यको अपना ज्ञान उत्तरोत्तर बढाना चाहिये, यदि वह मंगारमें मुगी होकर रहना चाहता है तो आन भारतवर्षकी जो हात है निमको टेराकर भारतहिती दिन गत आखोसे
आट २ आसू वराते रहते है उसका मुख्य कारण यही है कि नामे उसने विकाममिवान्त मुख मोड़कर लकीरके फकीर का पथ पकड़ा. नवहीसे उसको इसके बदलेमें ऐसा प्रतिफल मिला है कि इसके गठेमें अनिधिन अपषिके लिये गुलामी की अपवित्र नीर पढ़गई । हमारे पूर्वन हमारे जैसे कूपमंदूक नहीं थे।
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जो अपने गांवमें ही सड़ते रहे हों। उन्होंने जगतके उपकार के लिये सम्पूर्ण विश्वकी भूमि खंद डाली थी । आज उन आर्योंकी कीर्तिको उनके जातीय तथा धार्मिक चिन्ह विदेशीम स्थित होकर विश्वके चारों खूटोमें उनकी कीर्ति बतला रहे हैं। धन्य था उन आयोको जिनकी बदौलत यह देश सारे जगत्का गुरू कहलाया। वे हमारे पूर्वन ज्ञानोपार्जन करने के लिये बड़ी २ यात्रायें किया करते थे और यात्राओंमें दूसरे देशोंका भी हाल हवाल देखते थे। ___ और अपने देशकी दूसरे देशसे तुलना करते थे।जो कुछ उनको विदेशों में अच्छा दीखता था उसको लालाकर अपने भाइयोंको वतलाकर अपने देशको सौभाग्यशाली बनाते थे । अस्तु जो आदमी मूर्ख भी हो और दि यात्रा करने चले तो वह भी अपनी यात्राकी बदौलत विद्वान्की तरह होशयार हो जाता है। बाहर जानसे आदमी की आंखे सुल जाती हैं, त्या तब हीसे उसकी बुद्धि वड़ने लगती है, और यदि विद्वान् यात्रा करें तो उसले उनको तो लाभ होता है पर और लोगोंको भी कई वात्रोंका लाभ होता है। सच पूज जाय तो केवल शाखोंपर भी मनुष्य तब तक अधूरा ही विद्वान् रहता है जब तक वह देश विदेशोंकी यात्रा न करे इस लिये पूरा विद्वान् बननेके लिये भी मनुष्यको आवश्यक है कि वह यात्रा करे । इनही बातोंको सोचकर हमारे पूर्वनोंने हमारे लिये शिक्षा दी कि 'देशाटन पंडितमित्रताचे" इत्यादि अर्थात् देश विदेशोंमें घूमनेसे तथा
पंडितके साथ मित्रता करनसे बुद्धि-दिन दनी रात चौगुनी बढ़ती है। इस लिये आवश्यक है कि मनुष्य अपने ज्ञान वर्द्धनाथ यात्रा
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करे, जैसा कि इस समयके विद्वान् देशाटन के लाभदायक उपदेश सुनाया करते है | सर्व भाइयोंका एक स्थानपर मिलना होता है अतएव अच्छी २ गूढ़ वार्तो पर भी विचार किया जा सकता है । आशा है कि शिक्षाका प्रचार अधिक होनेसे देशाटनका शौक सर्वके हृदयमें स्थान पायगा जिससे तीर्थयात्रा और देशाटन दोनो कार्योंकी सिद्धि हो सकेगी ।
यात्रियोंको ध्यान में रखने योग्य सूचनाएं.
१. पाप तो किसी भी जगह अच्छा नहीं होता परंतुः --
अन्यक्षेत्रे कृतं पापं . तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं, वज्रलेपः प्रजायते ॥
अर्थात् दूसरी जगह किया हुआ पाप तीर्थ स्थानमें तो छूट भी जाता है, परंतु तीर्थस्थानमें किया हुआ पाप वज्रका लेप हो जाता है इस लिये यात्री को चाहिये जहा तक हो वहां तक पाप वृत्तिसे बचे.
२. परिणाम शुद्ध करनेकी और पाप निवारण करनेकी मनमें भावना घर यात्राको जाना चाहिये न कि योती मान बढ़ाई के लिए. तथा धर्मध्यानमें विशेष समय न लगाकर लडुआ पुड़ी तथा गप्पाष्टकोंमें लगाने के लिये; क्योंकि ऐसा करनेसे तीर्थयात्राका असली उद्देश सिद्ध नहीं होगा.
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३. जिस महाशयको तीर्थ वन्दना करनेकी शुभेच्छा उत्पन्न हो उसको चाहिये कि वह निज शक्त्यानुसार उन गरीव आदमियोंको भी निनको तीर्थयात्रा करनेकी उत्कण्ठा हो साथ ले आकर अथवा भूखे प्यासेको भोजन वस्त्रादि देकर अपने द्रव्यका सदुपयोग करे.
४. जिस तीर्थपर जाना हो वहांका इतिहास तथा उसके महात्म्यका परिचय प्राप्त करना चाहिये; वह तीर्थस्थान क्योंकर पूज्य हुआ है. उसके द्वारा मानवजातिके क्या २ उपकार हुए है। इत्यादि वाते. जरा परिश्रमसे ढूंढना चाहिये, नहीं तो तीर्थ करनेका पूरा २ फल नहीं मिलता है.
५. जिस तीर्थमें जिस समय जाना हो उस समय वहांपर निन २ महात्माओंने अचल पद प्राप्त किया हो उन सबका जीवन चरित्र पढ़ना चाहिये, उनके गुणोंका चितवन करना चाहिये. उनकी आत्मासे तथा अपनी आत्मासे तुलना करना चाहिये. तथा हमारे वह क्योंकर पूज्य हुए है और अन्य लोगोंसे उनमें क्या क्या विलक्षणता थी इत्यादि बातोंका खूब छानबीन करे. सवेरे और शामको शास्त्रश्रवण या स्वाध्याय करे जिससे ज्ञानवृद्धि हो क्योंकि ज्ञान विना न किसीको सुख मिला है. जिनको उपयुक्त ज्ञान नहीं है वे पृथ्वीकेलिये भार है.
६, जिस तीर्थपर तुम गये हो वहां के यात्रियोंको आराम मिल
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नेमें किस वातकी त्रुटि है, धर्मशाला व मंदिरकी क्या व्यवस्था है, भण्डारमें यात्री जो रकम देते है वह सब कहा जाती है, उसका क्या उपयोग होता है, इन सब बातोंका निरीक्षण करके स्वतंत्रता पूर्वक सम्मतिप्रदर्शिका पुस्तकों (विजीटर वुकमें) अपनी सम्मति लिखना चाहिये. अपनेसे जो त्रुटि दूर हो सकती हो उसको उदारतापूर्वक दूर करना चाहिये.
७. तीर्थके मैनेजरके प्रबंधमें जो त्रुटि मालूम हो वह त्रुटि मैनेजरको बता देनी चाहिये, जिससे वह उसको आगेके लिये सुधार देवे. ___ तीर्थके भंडारमें यथाशक्ति द्रव्य जमा कराना चाहिये। क्योंकि बिना द्रन्यके मैनेजर यात्रियोंके आरामके लिये कैसे प्रबंध कर सकेगा. किसी २ माई का यह विचार है, कि तीर्थस्थानोंमें द्रन्य देनेकी क्या आवश्यक्ता है, पर उनलोगोंका यह विचार गलत है, क्योंकि द्रन्यके विना किसी भी संस्थाका उचित प्रबंध नहीं हो सकता फिर तीर्थकी संभाल रखनेके लिये तथा यात्रियोंको आराम देनेके लिये जो २ बंदोबस्तकी आवश्यकता है सो पाठकवर्ग स्वयं विचार सक्ते हैं, कि द्रव्यके विना इतना बड़ा कार्य मैनेजर तो क्या कोई भी आदमी नहीं कर सक्ता इसलिये प्रत्येक भाईको प्रत्येक तीर्थमें यथाशक्ति द्रव्यदान अवश्य प्रदान करना चाहिये.
८. तीर्थयात्राकी स्मृतिमें कोई न कोई ऐसी उत्तम प्रतिज्ञा __ अवश्य लेनी चाहिये जिससे देश व समानकी उन्नतिके साथ ही
साथ अपने आत्माकी उन्नति हो.
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९. यदि तीर्थयात्रा करने पर भी आपकी आत्माकी उन्नति न हुई हो तो तीर्थ करनेका क्या फल है ? भगवान तो घरपरभी थे, इसलिये क्रोध, मान, माया, लोभ, झूठ, कुशील सेवन, मादक वस्तु, अभक्ष्य भक्षण, अज्ञान, पक्षपात, और अन्य हिंसा का त्याग करना चाहिए तथा समताभाव रखना, दुःखित भूखे के प्रति दयाभाव प्रकट करना, मातृभूमिके सच्चे सुपूत वननेका उद्योग करना, साधुसंत, मुनि, आर्जिका, भट्टारक, यती, ब्रह्मचारी, तुलक और विद्वान इनमें से जिसका समागम हो यथायोग्य वैय्यावृत्त्य व आदर सत्कार करना चाहिये क्योंकि धर्म इन्हीं लोगों से स्थिर है: परंतु वैसी अयोग्यभक्ति नहीं करना चाहिये, कि जैसी आज कल भारतके कई एक प्रान्तोंमें प्रचलित है, और इनसे किसी न किसी प्रकार की शिक्षा ग्रहण करना चाहिये. यह भी तीर्थयात्रा करनेका फल स्वरूप है.
१०. तीर्थोंपर हरएक देशके यात्री भाते हैं उन सबसे मिलना चाहिये तथा अपनेसे उनका जो उपकार ह। सक्ता हो उसको प्रसन्नतासे करना चाहिये. अपने आचार विचारोंमें जिन कारणों से दूसरोंसे मतभेद हो उन कारणोंको यथाशक्ति बदलकर आपसमें व्यवहार करना चाहिये. जिससे सब लोगों में मैत्रीभाव बढने के साथही साप निन कार्य क्षेत्रकी सीमा भी चढ़े.
११. जिस तीर्थस्थान व शहरमें जाना हो वहांके हाल चाल का विवरण अपने पास रखना चाहिये, शहरमें जहां २ जिनमंदिर
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व चैत्यालय हो वहा जाकर उनका दर्शन करना चाहिये, उस शहरमें किस चीज़का व्यापार होता है वहाकी तिजारत क्योंकर वढी व घटी है. उसमें अधिकतर तिजारती कौन जाति है. अन्य शहरों की अपेक्षा उसमें क्या विशेषता है, उसमें किस धर्मकी प्रबलता है, तुम उससे क्या फायदा उठा सक्ते हो, नगर भरमें कहीं जैन पाठशाला है या नहीं, वहाके जैन बालकोंका कहापर पठन पाठन होता है इत्यादि बातोंका जरा गौरसे निरीक्षण करना चाहिये ।
१२. यात्रामें नियमित भोजन करना चाहिये तथा बहुत खट्टे व व तीखे स्वादसे परहेज करना चाहिये. कोई तीर्थका पानी भारी हो तो उसको उबालकर उपयोगमें लाना चाहिये.
१३. दक्षिण भारत से उत्तर भारत में तथा बंगाल प्रान्तमें अधिक उड पढ़ती है इसलिये यात्राके योग्य गरम कपड़े अपने साथ लेजाना चाहिये.
१४. रेलवे यात्रामें ज्यादा वजनकी चीजको अच्छी तरहसे बांध करके लगेज व ब्रेकमै दे देना चाहिये जिससे हर स्टेशनपर उसको उठानेकी तकलीफ न हो. तथा चोर व बदमाशोंसे हर समय सावधान रहना चाहिये. छोटे मोटे बच्चे जिन यात्रियों के साथ हों उन लोगोंको रातके बदले दिनमें ही रेलकी यात्रा करनी चाहिये क्योंकि रातको रेलमें प्रायः ज्यादा भीड़ होती है, बच्चोंकी नींद में बाधा पड़ती है, रातको सोते रहनेसे रेलमें चीज चोरीजाने का मय रहता है. दिनमें इन तकलीफोंसे बच सक्ते है व जिस
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(१०) देशमें यात्रा करते है उसका प्राकृतिक दृश्य भी रेलगाड़ीसे नज़र आता है.
१५. निस तीर्थपर गये हो वहांसे यदि आगेके तीर्थपर जानेके लिये पूरा २ हाल मालूम न हो तो वहांसे लौटे हुए यात्रियोंसे अथवा वहांके मैनेजरसे सारा हाल पूंछ लेना चाहिये. जिस तीर्थपर जो चीज़ देना चाहते हो उस चीज़को अपने हाथसे वहांकी __ मंडारवहीमें लिख दो और उसकी रसीद वहांके मैनेजर अथवा रो
कडियासे ले लो. गत रीतिसे दान करनेकी चीज गप्त भंडारमें ही __ छोड़ दो, न कि योंही जहां चाहो वहां रख दो. जो चीज़ गुप्त
मंडारके बदले ऊपर ही रक्खी जाय उसकी इत्तिला वहाँके मैनेजर को दे दो नहीं तो छोटे २ नौकर उसको उड़ा लेते हैं और वह भंडार में जमा भी नहीं होने पाती. जैनियोंके तीर्थ अधिक तर पहा
के ऊपर है इस लिये जाड़ेकी मौसम (आश्विनसे फाल्गुन') यात्राके लिए अच्छी गिनी जाती है. क्योंकि उन दिनोमें 'ठंडीके सिवाय और तकलीक नहीं होती. गरमाके दिनोंमें पहाड़के ऊपर पत्थर तप्त हो जाते है, यात्रीको ज्यादा समय पहाड़पर ठहरकर 'स्थिरतापूर्वक धर्म ध्यान करनेका अवकाश नहीं मिलता व बाल बच्चोंको प्यास · लग आती है इस लिये यात्रीको आश्विनसे फाल्गुण तक यात्रा करनेके वास्ते गमन करना चाहिये.
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रेलवेसम्बन्धी आवश्यक नियम । १. हर एक स्टेशनकी घदीमें स्टेन्डर्ड टाइम रक्खा जाता है. नो कलकत्ता टाइमसे २४ मिनट पीले व मद्रास टाइमसे ९ मिनट आगे. दिल्ली टाइमसे २२ मिनट आगरा टाइमसे १९ मिनट और बई टाइमसे ३९ मिनट आगे रहता है।
२. रेल्में नानेवाले यात्रीको चाहिये कि वह गाडी आनेके समय से १५ मिनट पहले स्टेशनपर पहुंच जावे ।
३. रेलमें चार में होते है फर्ट (१) सेकन्ट (२) इंटर (३) और पई शास । इटर प्रासमें ख्योड़ा किराया लगता है।
४. मिस दर्नेका टिकट यात्रीने लिया है। यदि उस दकी गाटीमें बटनेको जगह न मिले तो वह स्टेशनमास्टर या गार्डको इत्तिहा टेकर उससे ऊपर या नीचे के दमें बैठ जाये, और उतरने पर उन दमेक दार देने के लिये व नीचे दमें के दाम वापिस लेने के लिये रेलवे अफसरसे निवेदन करे ।
५.निम ट्रेनमें जाने, लिये टिकट खरीदा है। उसमें जगह न मिलने के कारण या बीमारीके कारण अथवा और किसी कारणसे न जा सके तो उसकी सबर तुरन्त स्टेशनमास्टरको देना चाहिये । और यदि टिकटके दाम वापिस लेना हो तो तीन घंटेके भीतर स्टेशनमास्टर के पास उसकी रिपोर्ट करना नाहिये ।
६. तीन वर्षतको बालकका किराया रेलमें माफ है तथा तीनवर्षसे १२ वर्ष तकके बालकका किराया आधा है।
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(१२) ७. यात्रीको नीचे लिखे हुए लगेजसे अधिकका किराया देना प्पड़ता है। पहले दर्नेमें १॥ मन दूसरे दर्नेमें ३० सेर इंटरक्लास और थर्डक्लासमें १५ सेर तक बिना किराया दिये ले जा सकता है.
८. जिस यात्रीको, लम्बी यात्रा करना हो उसे थोड़ी थोड़ी दूरकी टिकट लेनेके वदले अधिक दूरकी टिकिट लेनेमें लाभ है । क्यों कि पहले सवा तीनसौ मीलका किराया ज्यादा लगता है फिर हर मौलपर आधा पाई किराया कम लगता है प्रत्येक रेलवेका इस विषयमें अलग २ कायदा है। __९. सौ मीलसे अधिक दूर जाने वाला यात्री सौमील जाकर उतरकर २४ घंटा तक विश्रामकर सकता है.और फिर उसी टिकटसे आगेके लिये बैठ सकता है । जैसे देहलीसे बम्बई ८६५ मीलकी दूरीपर है यदि यात्री वीचमें बडौदा, सूरत अहमदावाद ठहरना चाहे तो दिल्लीसे बम्बई तककी एक टिकिट लेकर ठहर सकता है
और इससे विरुद्ध थोड़ी दूरकी टिकट लेनेसे अधिक किराया देना पडता है।
१० जो लोग सारी गाडीको रिजर्व कराना चाहें उन्हें स्टेशन मास्टरको २४ या ४८ घंटे पहले सूचना देना चाहिये।
११ यदि किसी यात्रीसे रेलवे कर्मचारी (नौकर) अनुचित व्यवहार करें तो उस लाइन के ट्राफिक सुप्रि० के नाम उसकी रिपोर्ट करनी चाहिये।
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(१३) भारतवर्षके डॉक विभागके नियम । १. जो चिट्ठी चारों तरफसे बंद होती है उसके पढनेका किसीको अधिकार नहीं है, ऐसी चिट्ठीका वजन १ तोला तक हो तो उसका महसूल आधा आना लगता है तथा उससे अधिक अर्थात् १० तोले तक एक आना लगता है । वैरग चिट्ठीका उससे दूना लगता है।
२. पोष्ट कार्ड एक पैसेमें मिलता है उसके एक तरफ तथा दूसरी तरफके आधे भागमें समाचार लिखना चाहिये । पता साफ लिखना चाहिये. इसी तरह सादे कार्ड को भी एक पैसेका टिकट लगाकर काममें ला सकते है।
३. वुक पैकिट-यह दोनों तरफसे खुला रहता है. इसमें छपी हुई पुस्तकें व छपनेके लिये हाथकी लिखी हुई कापियाँ वगैरह भेजी जाती है इसका महसूल १० तोले तक आध आना लगता है.
४. वानगीकी वस्तु भी १० तोले तक आधे आनामें जाती है और फिर हर दस तोले पर आधे आना ज्यादा होता जाता है.
५. पार्सल-४० तोले तकके वजनका 2) आनेमें जाता है फिर हर ४० तोले या उसके हिस्सेपर ) आना अधिक होता जाता है, ये सब अनरजिष्टर्ड पार्सल कहलाते है जो रजिस्ट्री कराना चाहे वह ) का अधिक टिकट लगावे पार्सल कितने ही वजनका क्यों न हो । पारसल वेरंग कभी नहीं जाते ।
६. वेल्यूपेवल ( वी. पी.) पारसल, चिट्ठी, वुक पाकेट वगैरह
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(१४) सव किये जा सकते है, महसूल भी ऊपर लिखा ही रहता है, केवल मनिआर्डरकी फीस अधिक देनी पड़ती है।
७. सब चीजोंकी रजिष्ट्री उसकी रवानगीके समय हो सकती है, रनिष्टीकी फीस ) है.
८. किसी चीजको उचित रीतिसे पहुंचनेके लिये उसका वीमा हो सकता है ५०) रुपया तककी यदि चीन हो तो पार्सल वगैरहका महसूल देनेके वाद ) और अधिक देना पड़ता है, और १००) तककीका ३) आना है फिर हर ५०) रुपया पर या उसके हिस्से पर ) आनाके हिसावसे बढ़ता जाता है, अनरजिष्टर्डका वीमा नहीं हो सकता है।
१०. मनीआर्डर--डॉक द्वारा मनीआर्डर भेजनेमें ५) रुपये 'पर ). १०) रुपयेपर २). १५) रुपयेपर ३). २५) रुपयेपर
1) तथा हर पच्चीस रुपयेपर ।) वढ़ते चले जाते है । मनीआर्डरसे ___ एक फार्मपर ६००) रुपया तक जा सकता है।
११. चिट्ठी तार और मनीआर्डरके भेजनेवालोंको चाहिये कि वे पानेवालेका पता व डांकघर स्पष्ट लिखें ताकि पहुँचनेमें विलम्ब न हो,
तार भेजनेके नियम । १.तार दो तरहसे भेजा जाता है।
(क) एक्स प्रेस-इसमें १२ शब्द पता समेत जाते है १) रुप__ या लगता है, तथा प्रति शब्द दो आना अधिक लगता है।
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(१५) (ख) ऑर्डनरी-इसमें पते समेत १२ शब्द 1) आनामें जाते हैं. आगे हर शब्दका आध आना बढ़ता जाता है।
तार सब भाषामें दिया जा सकता है पर लिपी अंग्रेजी होना चाहिये।
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तारका मनीआर्डर। १. तार द्वारा भी मनीआर्डर भेजा जा सकता है. इसके लिये साधारण मनीआर्डरके फारमको भरकर डाक घरमें (नहां तार आफिस हो ) देना पड़ता है, इसमें महसूल वही मनीआर्डरके हिसाबसे लगता है, केवल 1) आना अथवा १) तारका ज्यादा देना पड़ता है।
२ यदि तार घर बंद है तो ( अर्थात् उसका समय नहीं है) उसके खुलानेकी फीस १) और अधिक देना पड़ती है।
भारतवर्षके तीर्थक्षेत्रोंकी सूची।
(प्रान्तवार) १. वङ्गाल और विहार प्रान्तमें ७ सिद्धक्षेत्र तथा ५ अतिशय क्षेत्र हैं।
सिद्धक्षेत्र--सम्मेद शिखर, चम्पापुरी, पावापुरी मंदारगिरी, राजगृही, गुणावा, पटना । ।
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( १६ )
अतिशयक्षेत्र — खंडगिरी, उदद्यागिरी, कुंडलपुर भदलीपुर ( कुलुहा पहाड़ ) मिथिलापुरी ।
२ उत्तर भारत और पूर्व भारतमें सिद्धक्षेत्र दो तथा अतिशय क्षेत्र १४ है ।
सिद्ध क्षेत्र---मथुरा, कैलाशगिरी ( अगम्य है )
अतिशय क्षेत्र - अयोध्या, अलाहाबाद, अहिक्षित काकन्दी ( किष्कंधापुरी ) कौशाम्बी ( कुसुमपुर ) कंपिला, चन्द्रपुरी, सिहपुरी, वनारस, बटेश्वर, फिरोजाबाद, रत्नपुरी श्रावस्तीनगरी और हस्तनापुर ( इन्द्रप्रस्थ ) है |
३ राजपूताना मेवाड़ और मालवेमें सिद्धक्षेत्र दो और अतिशय क्षेत्र १० है ।
सिद्धक्षेत्र --- बड़वानी और सिद्धवरकूट है ।
अतिशय क्षेत्र —- अजमेर, केशरियाजी, चमत्कारजी ( सवाई माघोपुर ) चान्दनगांव, चूलेश्वर, जयपुर, तालनपुर, बनेड़ा, मकशीपार्श्वनाथ, शातिनाथका मंदिर ( झालरापाटन ).
४. गुजरात और काठियावाड़ ( सौराष्ट्र ) में सिद्धक्षेत्र ४ और अतिशय क्षेत्र ४ है ।
सिद्धक्षेत्र - गिरनार, तारंगा, पागगढ, शत्रुंजय ( पालीताना ) है । अतिशयक्षेत्र – अभीझरा पार्श्वनाथ, (बडाली ) आबूजी, महुआ ( विघ्नहर पाश्र्वनाथ ) तथा सनोत है ।
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(१७) ५. दक्षिण प्रान्त और मैसूर प्रान्तमें सिद्धक्षेत्र १ और अतिशयक्षेत्र १४ है। सिद्धक्षेत्र-कुंथलगिरी.
अतिशयक्षेत्र-इलोरा, कचनेरा-पार्श्वनाथ, कुन्डल, कुम्भोन कारकल, जैनबद्री, दहीगाव, मूडबद्री, वेणूपुर, वरान्द, स्तवनिधी, शोलापुर, श्रवणबेलगोला ( श्वेत सरोवर ) हूमसके पद्मावती।।
६. वरार ( विदर्भ ) और मध्यभारतमें सिद्धक्षेत्र १ और अतिशयक्षेत्र ४ है। सिद्धक्षेत्र-मुक्तागिरी।
अतिशय क्षेत्र अंतरीक्ष पार्श्वनाथ (शिरपुर ) कारंजा, भातकुली, रामटेक।
७. बुन्देलखन्डमें सिद्धक्षेत्र ३ और अतिशयक्षेत्र ५ है । सिद्धक्षेत्र-द्रोणागिरी, नैनागिरी, सोनागिरी.
अतिशय क्षेत्र-कुंडलपुर, खनराहा, ग्यालियर, थोवनना और पपोरानी।
८. बम्बई प्रान्तमें सिद्धक्षेत्र २ है-गजपंथानी और मागीतुंगी।
नोट-ऊपर लिखे हुए तीर्थोसे और भी तीर्थ ऐसे हैं जो अपने २ जिलोंमे प्रसिद्ध हैं बाहर उनकी बहुत कम प्रसिद्धि है, इसी कारण उन तीर्थोका हाल लेखकको पूरा न मिलनेसे वे यहाँपर नहीं लिखे गये, जिन महाशयोंको उनको यात्रा करना होवे उस जिलेके निवासियोंसे उसका हाल पूंछ लेवें ।
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नंवर
तीर्थका
नाम.
१ | अजमेर*
२ अमीझरा पा र्श्वनाथ ३ | अयोध्या
८ आरा
९ / इरा
+
( १८ )
४ | अलाहाबाद : आदिनाथका दीक्षा (प्रयाग)
५ अहिक्षितजी
पूजनीक होने
का कारण.
१३ कारकल
हुआ स्थान ।
६ अंतरीक्ष पा | पार्श्वनाथ स्वामीका
र्श्वनाथ ७ आबूजी
अतिशय क्षेत्र मशहूर मंदिर
१४ कारंजा
राजपूताना
समोशरण वा अयोध्याकी रचना पार्श्वनाथ स्वामीका गुजरात
अजमेर
बड़ाली
C. I. Ry.
अतिशय क्षेत्र तीर्थकरोंकी जन्म- उत्तरहिन्दु- अयोध्या O. R. Ry. भूमि
स्थान
अलाहाबाद E. I. Ry.
कल्याणक, प्रयाग बड़के नीचे । श्रीपार्श्वनाथको कमठद्वारा उपसर्ग किया
१० | उदयगिरी | | ११ कचनेरा पा पार्श्वनाथ स्वामीका
अतिशय क्षेत्र
वनाथ १२ काकंदी उर्फ पुष्पदंत स्वामीका
किष्किंधापुरी
किस प्रान्तमें.
जन्म स्थान
गोमटेश्वर की मूर्ति
३०० चैत्यालय
""
तीर्थोंकी
रेलवेका
नाम.
31
कौन स्टेशनसे जाना
होता है.
B. B & C. L. Ry. B. B. &
अनला | O. R. Ry. Aonla
वराड़
गुजरात
CI. Ry. आरा E. I Ry.
State Ry.
बंगाल ३१ मंदिर पहाड़ों में पुरानी गु. हैदराबाद दौलताबाद Nizames फाएं । (दक्षिण) उड़ीसा भुवनेश्वर BN. Ry. | दक्षिण औरंगाबाद N. S. Ry. हैदरावाद
पूर्व हिन्दु- नौनखार B. NW.
अकोला | G.I.P.Ry.
मुर्तिजापुर आबूरोड B. B. & |
Ry.
स्थान दक्षिण मूढ़ विदरी S. M. Ry. कनेरा
वराड. अकोला या G. I. P. मुर्तिजापुर
Ry.
Page #25
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________________
स्टेशनसे. : : फासला मील
(१९) अनुक्रमणिका. तीर्थपर जाने |
खास मेला होके लिये स्टेश
नेकी मिती अगर पोस्ट आफिस.। तार घर. नसे क्या साधन मिलता है. हो तो.
अजमेर अजमेरे Ajmer वडाली वडाली Vadalı अयोध्या अयोध्या Ajodhya Ayodhya अलाहाबाद अलाहाबाद Allahabad
:
:
:
:
:
६
बैलगाड़ी
आनला
। चैत्रवदी ८ से
१० तक
मु० रामनगर Via-P.Aonla
१९ ।
कार्तिक सुदी १५/ सिरपुर । बासीम
Sirpur Basım १० घोड़ा गाड़ी व ... ...
। मु. दिलवाडा आबू बैलगाड़ी
पोस्ट भावूAbu
आरा Arrah आरा बैलगाड़ी वा ... तांगा
उदयगिरी (जिला उदयगिरी पिन
जान गजाम)Udayagin
-
।
..
.
. . . . . .
बैलगाड़ी मजदूर बैलगाडी
माघ वा फागुनमें कारकल Karkal| मगलोर
| (South Kanara)/ Mangalore
कारंजा Karanja
कारंजा
।
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________________
१५ कुंडलपुर कुंडलपुर (दमोह)
१६ कुंडलपुर ( विहार )
१७ कुंडल क्षेत्र
१८
कुंभोज
१९ कुंथलगिरी
२०
कौशवी
२५ | खडगिरी
२६ गजपंथा*
?
२७ ग्वालियर ( लकर ) गिरनार
२८
( २० )
पर्वतपर ५२ मंदिर बुंदेलखंड दमोह ( अर्ध चंद्राकार ) महावीर स्वामीका
बिहार
दक्षिण
दक्षिण
२१
कंपिला
२२ केशरियाजी ऋषभदेवजी
२३
कैलास
२४ खजराहा
जन्म स्थान
अतिशयक्षेत्र श्री कलिकुंड पार्श्वनाथका
चंद्रनाथस्वामीका मंदिर
कुलभूषण, देश भूषण दक्षिण मुनियोंका मोक्ष
स्थान
पद्मप्रभुके चार कल्याणक
विमलनाथके
चार कल्याणक
का अतिशय क्षेत्र आदिनाथ स्वामी
की निर्वाण भूमि २१ प्राचीन मंदिर
प्राचीन मंदिर वा गुफाएं
सात बलभद्र वा आठ कोमुनि योंका मोक्षस्थान २० पुराने मंदिर
नेमनाथ स्वामी वा ७२ क्रोडमुनि योंका मोक्षस्थान
"
बड़गांव । B. B. L.
रोड
33
Ry.
कुंडल रोड S. M. Ry.
हाथ | S. M. JRy.
लंगडे
वारसी 1 G. I. P.
टाऊन
उत्तर हिन्दु- भरवारी | G. IP.
स्थान
Ry.
Ry.
कायमगंज
मेवाड़ उदयपुर B. B. C.
I. Ry.
33
हिमालय | रास्ता नहीं
है बुंदेलखंड | दमोह | G. I. P.
सतना
Ry.
उड़ीसा
भुवनेश्वर B. N. Ry.
बंबई नाशिक G. I. P.
Ry.
बुंदेलखंड | ग्वालियर | I. M. Ry.
काठिया - जूनागढ़ C. G. I.
वाड़
P. Ry.
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________________
२१
१
२
494
१८
३२
w
५०
६७
v
...
बैलगाड़ी वा तांगा बैलगाड़ी वा
400
मजर
बैलगाड़ी
"3
बैलगाड़ी
बैलगाड़ी तांगा
"
बैलगाड़ी चैत्र वदी ९ से
तांगा
में अगम्य
है.
बैलगाड़ी फागुण सुदी १२
"
...
:
चैत्र वदी ३० से
चैत्र सुदी १५ तक
...
( २१ )
.r
पौष वदी १५
मगसर सुदी १५ Via Pipalgaon
Post Bhom Dt-Sholapur पाचिम शरीरा Pachimsarira
Dt Allahabad
बैलगाड़ी माघ सुदी १३ तांगा
...
...
...
...
:
...
पटेरा
Patera
मीरचाई गज
बिहार
Mirchaiganj
Bihar
कुंडलरोड Kundal Raod
कुडल Kundal कुंभोज Kumbhoj Hat Kalnagle
हाथ कालगडा
...
ऋषभदेव Rakabdeo
राजनगर Rajnagar
Dt. Chhatarpur भुवनेश्वर
मु० मशरुल नाशिक (Nasik)
ग्वालियर Gwalior
जूनागढ़ Junagarh
...
0.0
खेरवाडा Kherwara
...
..
...
...
...
..
नाशिक
Nasik
ग्वालियर
जूनागढ़
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________________
स्थान
(२२) गुणावा* गौतमस्वामीकी विहार | नवादा G.I.P.Ry.
| निर्वाण भूमि ३० गोमहस्वामी वाहुबल स्वामीकी । मैसूर आरसी केरी S. M. By. उर्फ जैनवी मूर्ति ५२ गनऊंची टीपटुरवा
मेहेसूर ३१/ चन्द्रपुरी चंद्रप्रभुका जन्म पूर्व हिन्दु- बनारस |0. R. Ry.
। स्थान १ चम्पापुरी* बांसपूज्य स्वामीके | बिहार | नाथनगर | E.I. By.
। पांचो कल्याणक । ३ चमत्कारजी | आदिनाथ स्वामीकी राजपूताना सवाई मा- B.B.&C.
| स्फटिकमणिकी च- | धोपुर । IRy.
मतकारिक प्रतिमा ३३ | चांदन गांव महावीर स्वामीका | मारवाड | पाटोडा | B.B.&C. अतिशय क्षेत्र
महावीररोड I. By. ३४ चूलेश्वर पार्श्वनाथ का अति- | मेवाड़ भीलवाडा R.M.Ry.
शय क्षेत्र जयपुर* २०० मंदिर ढूंढार | जयपुर | B.B.&C.
____ I. Ry. ३६ | तारंगा* बरदत्तादि ३३ कोड | गुजरात तारंगाहिल
मुनियोका मोक्ष
स्थान तालनपुर* मल्लनाथका अतिशय | मालवा | महू
क्षेत्र थोवनजी |२४ प्राचीन मंदिर बुंदेलखंड ललितपुर I. M. Ry. दहीमांव महावीर स्वामीका दक्षिण | दिक्षाल GI.P. , अतिशय क्षेत्र
| Ry. द्रोणागिर गुरुदत्तादि मुनियोंका बुंदेलखंड | सागर
मोक्ष स्थान
।
,
४१ | नैनामिर उर्फ | वरदत्तादि मुनियोंका बुंदेलखंड सागर वा G. I. P.
| रेसंदगिरी* | मोक्षस्थान गनेशगंज Ry.
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________________
(२३)
बैलगाडा
no
तांगा
नवादा
नवादा Nawadah तीथोकरोंके जन्म अषणषेलगुल | चनारया पहन दिवसपर चत्र वदा belgola
Chandaraya vetogoy 05 ( Dt Hussan ) Patna
बनारस Benares भादों सुदी ११से| चम्पानगर चम्पानगर भादोंसुदी१५तक/Ohampanagar चैत्र सुदी १५
Sawai Madhopur.
...
...
|
बनारस
पैदल घेलगाड़ी पैदल थैल-
गाड़ी
थैलगाड़ी | चैत्र सुदी १५ ।
-
बैलगाडी पुस सुदीसे१० ऊंटगाड़ी
तक
भीलवाड़ा Bhilvara
जयपुर
जयपुर Jaipur
-
-
बैलगाड़ी
कुकसी
मजूर घोड़ा कार्तिक सुदी १५ सतलासना Sat- तारंगाहील | चैत्र सुदी १५ lasna,Dt.Mar
bukantha
फुकसी तांगा
Kuksi बैलगाड़ी
चदेरी (जिला
धार) नाते पुते बारामती
Natepute | Baramati , चैत्र सुदीटसे १४ मु० सैदप्पा । सागर
Pt. Gulganj, Saugor । (गुलगंज)
Dt. Bijawar अगहन सुदी१०से पा० फंडा जिला सागर । १५ तक सागर
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________________
-
(२४) पटना*
सुदर्शन सेठकी नि- विहार पटणावागु- E. I. Ry. । णि भूमि
लजारवाग पावापुरी* | महावीर स्वामीकी
विहार वा B. B.L. ! निर्वाण भूमि
नवादा
Ry. पपोराजी ७० मंदिर बुदेलखंड ललितपुरसे I. M. Ry.
महरौनी होफर जाना
चाहिए लव कुश और पांच | गुजरात पावागढ़ B. B.C. कोड़ मुनियोंकामोक्ष
हिल I.Ry. स्थान ४६ | फीरोजावाद होरेकी प्रतिमा उत्तर हिंदु-फीरोजाबाद G. I. P.
स्थान
Ry. घरेश्वर । नेमनाथ स्वामीका | हसिकोहाबाद .. जन्म स्थान
फीरोजावाद बनारस* सुपार्श्वनाथ वा पार्श्व
बनारस 10.R. By. | नाथकी जन्मभूमि (काशी) ४९/ बनेड़ा* मनोज्ञ मंदिर - मालवा इंदोर R.M.Ry.
| अजमोह भदिलपुर उर्फ शीतलनाथकी जन्म | विहार , गयाजी E. I. By.
कुलहापहाड़ भूमि ५१) भातकुली अतिशय क्षेत्र वराड़ अमरावती G. I. P.
आदिनाथका
-
५२ मधुरा(चौराशी) आतिम केवली जंबू उत्तरहिन्दु- मथुरा B.B.&C. स्वामीकी निर्वाणभूमि स्थान ।
I Ry. ५३ महुआ (विनहर पार्श्वनाथका अतिशय गुजरात वारडोली ,
पार्श्वनाथ) क्षेत्र ५४ मकसी पार्श्व
| मालवा | मकसी G. I. P. नाथ* ५५ मिथिलापुरी सुमति व मल्लि वा न- विहार | सीतामढ़ी B. N. W.
| मिनाथकी जन्मभूमि मुकागिरी |८ कोड मुनियोंका | बरार अमरावती G.I.
मोक्ष स्थान
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________________
(२५)
-
पूस मासमें
पटना
वैलगाड़ी तागा बैलगाड़ी
। पटणा
Patna City | दिवाली पर गिरीयेक Gunak | महावीर निर्वाण Dt Patna । चैत्रवदीमें टीकमगढ़
Bihar बिहार
माघ सुदी १३ । चापानेर सिटी | चापानेर सिटी
Champaner
City फीरोजाबाद फीरोजाबाद
Fırojabad | बैलगाड़ी . .
वटेसर
सिकोहाबाद इक्का गाड़ी
Batesar
बनारस बनारस
Benares बैलगाड़ी चैत्र सुदी ११ से पो. देपालपुर Ajnod
चैत्र सुदी१५तक | Dt Indore | बैलगाड़ी
पोष्ट जोरी (Jori)
जि. हजारीबाग बैलगाडी । मगसर वदी ५/ पो. भातकुली | भमरावती तागा
P Bhatkuli
जिला-अमरावती इक्का तांगा
मथुरा
Muttra | बैलगाड़ी
महुवा वारडोली
Mahuya बैलगाड़ी फागुन सुदी १५
मकसी
मकसी Maksi
मथुरा
बैलगाड़ी | यहकिशरकी वर्षा कारजगांव वा तांगा आधिकतर है का.सु १४ karajgaon
इलिचपुर Elichapur
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________________
-
(२६) ५७ माणिक खामी आदिनाथका अति हैदराबाद अलवल |N.S Ry.
शय क्षेत्र दक्षिण ५८ मूड़वद्री सिद्धांत दर्शन वा हीरे दक्षिण सा. मगलोर |S M. Ry.
| पन्नकी प्रतिमा उथ कनेडा ५९ मंदारगिर* वासपूज्य स्वामी - विहार | मदारहिल E. I. Ry.
निर्वाण स्थान ६०] मागीतुंगी* राम, हनु, सुप्रीव | बबई लासनगाव GI.P
वा ९९ करोड़ मुनि- | चिंचपाडा Ry. | योंका मोक्षस्थान | धर्मनाथके दो कल्या- उत्तर हिं- सोहवल 10. R. Ry. । णक
दुस्थान राजगृही* मुनिसुव्रत स्वामीका विहार राजगिरी B BL .
जन्मस्थान वा महावीर स्वामीका समोशरण
आया रामटेक* शातिनाथका अति. मध्य हिन्दु. रामटेक B.N By.
शय क्षेत्र वरांग | नेमनाथका अति । दक्षिण | शिमोगा | S. M Ry. शय क्षेत्र
कारकल
रत्नपुरी
By.
R M Ry.
६५ वड़वानी उर्फ इंद्रजीत व कुंभकरणका माल्वा
चूलगिरि मोक्षस्थान (बावनगजा) ६६) संजोद | शीतलनाथका अति- गुजरात | अंकलेश्वर B.B.&C. शय क्षेत्र
so I Ry. ६५ स्तवनिधि* भैरवका अति० क्षेत्र दक्षिण | कोल्हापुर | S. M. Ry.
वा चिकोड़ी ६सम्मेदशिखर*वीस तीर्थकरोंका मोक्ष- विहार | गिरीडी | B.I. Ry. | स्थान व अनंतानंत
इसरी मुनियोंका मोक्षस्थान ६९ श्रावस्तीनगरी संभवनाथकी जन्म | उ.हिदु० बलरामपुर| B.N. Ry.
भमि ___७० | सिद्धवरकूट* दो चक्री वा दश काम मालवा | मोरटक्का R M. By.
कुमारका निर्वाणस्थान
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________________
(२७)
...
बैलगाड़ी चैत्रसुदी १ से| मूड़वद्री
चैत्रसुदी १५तक Moodbadri पैदल
बौसी मजदूर ।
Baunsi बैलगाड़ी कार्तिकसुदी १५ मुलेर तांगा
Mulher जिला नाशक
मगलोर Manglor मदारहिल जायखेड़ा
राजागिर Rajgir
सिलाव Silao
रामटेक
उड़ीपो
Udipo
वड़वानी
कार्तिकसुदी १५ रामटेक
Ramtek पूसमें हेरी आडका
Heriadka
(जि सा. कानरा) घोडागाड़ी | पूस सुदी ८ से । बड़वानी वा बैलगाड़ी पूस सुदी १५ तक| Barwani | वैलगाड़ी फागुन वदी १४ सजोद घोडागाडी
Sajod | बैलगाड़ी पूस सुदी १४ निपानी
Nipani (बैलगाड़ी वा माघ सुदी ५ मु० मधुवन ठेला गाड़ी
पारसनाथ
Parasnath बैलगाड़ी
अकलेश्वर
निपानी
गिरीडी Giridih
७ | बैलगाड़ी
माहु सुदी ५ से | मांधाता ओंकारजी
Mandhata
वड़वाहा Barwaha
१५ तक
onkarm
]
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________________
(२८)
७१/
0. R. By.
सिंहपुरी* श्रीयांसनाथकी जन्म- पूर्व हिन्दु. बनारस
भूमि शवजय* पाडवादि भाठ करोड काठिया- पालीताना B.J. P. मुनियोंकी जन्मभूमि वाड़
Ry. ७३ सुदर्शन सेठके पटना, देखो
चरण* ७४ | सोनागिरि* नगानंगादि ३१ बुंदेलखंड | सोनागिर | G. I. P.
करोड़ मुनियोंकी
मोक्षभूमि ७५/ शौरीपुर उर्फ नेमनाथ स्वामीकी , देखो | बटेश्वर
बटेश्वर । जन्मभूमि शोलापुर । १३ मंदिर दक्षिण | शोलापुर
By.
Ry.
७७ हस्तिनापुर शातिनाथ, व कुन्थनाथ उ. हिन्दु., मेरठ
G.L.P. व अरह नाथकी
जन्मभूमि ७८ हुँमस पद्मावती पद्मावतीका अति- दक्षिण कारकल-N.W शय क्षेत्र | साउथ | ग्राम
Rv. | कानेडा
नोट-कई एक अतिशय क्षेत्रोंका पोस्ट नहीं लिखा गया है । जिस भाईको
* द्रोणागिर-पर्वत दूसरा कोल्हा
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________________
६
..
...
२
:
...
२२
७३
तांगा बैलगाड़ी
...
...
...
...
बैलगाड़ी वा तांगा
बैलगाड़ी
( २९ )
माघ सुदी ५
बैलगाड़ी फागुन सुदी २ से
१५ तक
...
...
...
कार्तिक सुदी ८ से १५ तक
...
बनारस
Benares
पालीताना Palitana
..
...
सोनागिर Sonagir
..
Sholapur शोलापुर
बहसूमा
Bahsuma Dt. Meerut हुमचाडा काठे
Humchadokatte
आफिस वा तार घर का पूरा पता नहीं मिलनेसे इसमें मालूम हो कृपा करके हमको सूचित करें पुरसे १२ मील उत्तर में भी है.
बनारस
पालीताना
...
1
सोनागिर . '
Datia state
शोलापुर
..
...
...
तीर्थ हाली
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________________
श्री सम्मेद शिखर व उसके आस पासके
तीर्थोंका परिचय । ___ पश्चिमसे आनेवाले जो भाई काशी (वनारस) आवें वे यदि सीधे
बनारससे सम्मेदशिखर आना चाहते है तो ईशरी स्टेशनका टिकट लेवें और यदि वीचमें तीर्थ करते हुए आना चाहें तो इस प्रकार चलें । वनारससे आरा का टिकिट लेवें, आरामें चौकपर बाबू हरप्रसादनीकी धर्मशाला स्टेशनसे करीव १ मीलकी दूरीपर है वहां जाकर ठहरें। यहां वहत मनोज्ञ मंदिर और चैत्यालय है, यहांपर स्वर्गीय दानवीर बाबू देवकुमारजी एक सरस्वती भवन खोल गये हैं, जिसमें इस समय हजारों जैन ग्रन्थ मौजूद है। इस सरस्वतीभवनकी बरावरकी शानी रखनेवाला समाजमें एकभी दूसरा सरस्वती भवन नहीं है, इसको प्रत्येक यात्री देखें और जिनवाणी माताके लिये चार
आंसू वहा आवे । आरासे गुलजार बाग (पटना) का टिकट लेवें । स्टेशनके पास जैनियोंकी धर्मशाला है वहां ठहरें, अथवा पटना शहरमें ठहरना चाहें तो जिया तमोली (वरई) की गलीमें पञ्चायती मंदिरके पास भी यात्रियोंको ठहरनेके लियेभी धर्मशाला है. इसी जगह श्रीमद्रबाहु स्वामी के शिष्य सम्राट श्री चन्द्रगुप्तकी राजधानी थी तथा यहींपर बौद्ध धर्मको राष्ट्रधर्म बनानेवाले देवोंके प्रिय सम्राट अशोककी भी राजधानी थी इसका प्राचीन नाम पाटलिपुत्र है। शहरमें कई एक मनोज्ञ मंदिर है वहाके दर्शन करके गुलनार बागमें सुदर्शन सेठ की निर्वाण भूमिके दर्शन करके गुलजार वागकी धर्म
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________________
( ३१ )
शालाके पास वाले नेमनाथ स्वामीके मदिरके दर्शन कर पटना से रवाना होवें और सीधी राजगृहीकी टिकट लेवें. वीचमें बकती आरेपुर स्टेशनपर गाड़ी बदलकर छोटी गाड़ीमें बैठकर राजगृही आवें यह जगह आजसे अढ़ाई हजार वर्ष पेस्तर मगधाधिपति राजा - णिककी राजधानी थी जिसके चिन्ह अव भी है। स्टेशनके साम्हने अपनी धर्मशाला तथा बंगला है यहा की आव हवा बहुत अच्छी है, यह स्थान वैष्णवोंका भी तीर्थ है, यहांपर हर तीसरी साल लौद के महीनेमें बड़ा भारी मेला लगता है जिसमें लाखों आदमी बाहरसे यहा पर आते है, यहापर पंच पहाड़ीके दर्शन करें प्रथम विपुला - चल पर्वतके जहापर भगवान महावीर स्वामीका समोशरण आया था, पीछे रत्नागिरी, उदयागिरी आदि पहाडियोंके दर्शन करें जो भाई एक दम पाचों पहाड़ियोंके दर्शन करने में असमर्थ है वे पहलेकी ३ पहाड़ियोंकी वन्दना करें । दूसरे दिन २ पहाडियोंकी करे | यहांपर डोली तथा गोढ़ी वाले भी आदमी मिलते है । धर्मशालासे १ मील की दूरी पर पहाड़की तलहटी में गरम पानीके कई एक कुड है, यात्री चाहें तो कुन्डमें स्नानकर पीछे वदनाके लिये जावें । ब्रह्मकुन्डका पानी बहुत गरम है, सूरजकुन्डमें यात्री नहाते है, सप्तधाराका पानी वहुत ही उत्तम है, यहासे दर्शनकर बैल गाड़ी द्वारा कुन्डलपुर जावें । यह महावीर स्वामीकी जन्म भूमि है. यहापर पुराने शहर के चिन्ह बहुत दृष्टि गोचर होते है, इसका भी कभी न कभी भाग्य चमकेगा जब कि इतिहासके पत्रे इसके विवरणोंसे सुशोभित होंगे क्योंकि “ कालो ह्ययं निरवधिर्विपुला च
1
।
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________________
(३२) पृथ्वी " बौद्धमत की बहुत सी मूर्तियां खन्डित तथा अखंडित दोनों तरहकी यहा पर डरी हुई है, एक समय इस जगह पर बौद्ध मातड अपनी प्रखर रश्मियोंसे ऐसा मौजूद था कि जगत भरमें कोई भी उसके विरुद्ध आंखभी नहीं उठा सकता था, आज वही अस्त होकर कालके गभीर गर्भ में ऐसा समाया कि उस जगहपर उसका एक भी अनुयायी दृष्टि गोचर नहीं होता है, अस्तु यहांके दर्शनकर विहार आवें। यहांपर दर्शनकर भगवान महावीरस्वामीकी निर्वाणभूमि पावापुरीमें आवें । धर्मशाला मंदिरके पास ही है, यहांपर तालाव के वीचमें पुराने समयका बना हुआ मंदिर है, इस मंदिरको तथा यहां के प्राकृतिक दृश्यको देखकर अपूर्व आनन्द होता है, ऐसा विलक्षण मंदिर भारतवर्ष भरमें कहीं नहीं है। दीपमालिका (दिवाली) के दिन यहां पर मेला लगता है। पावापुरीसे चलकर गुणावानी में ठहरें यहा पर भी तालावके बीचमें मंदिर है यह गौतमस्वामीकी निर्वाणभूमि है यहांसे १ मीलकी दूरीपर नवादा स्टेशन है, नवादासे रेलवे में बैठकर, नाथनगर उतरें। स्टेशनसे आधी मील की दूरीपर चम्पापुरी है। यहाके दर्शन कर यहांपर छपरावाले तथा कलकत्तेवालोंके मिलकर दो मंदिर है, दोनों जगह ठहरनेके लिये स्थान है। यहासे वासुपूज्य स्वामीका निर्वाण हुआ. है। यहांसे रेल तथा वैलगाड़ी द्वारा भागलपुर होते हुए मंदारगिरजी जाना चाहिये । भागलपुरमें ठहरें तथा साथमें कुछ आवश्यक सामान लेकर मंदारहिलका टिकट लेवें तथा सवेरे वहां पहुंचे और दर्शन करके शामको लौट आवें । उत्तर पुराणके अनुसार मंदारगिरी बांसुपूज्य
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________________
( ३३ )
यहांसे ईसरी
स्वामीकी निर्वाण भूमि है, अथवा गिरीडी की टिकट लेवें । दोनों स्थानोंपर धर्मशालायें हैं । गिरीडी लगभग ४० वर्ष पहले एक सघन वन था पर अत्र एक जनपूर्ण नगर बन गया है । ईसरी तथा गिरीडी दोनों जगहसे सम्मेद शिखर पार्श्वनाथ हिलके लिये बैलगाड़ी मिलती है । गाड़ी किराया १ ) से ३) रु. तक लगता है । ईसरी से मधुवन गांव सड़कके रास्ते से ७ सात कोस है । परन्तु जंगलके रास्ते से ३ कोस है । जंगलके रास्तेसे वैलगाड़ी नहीं जाती । गिरीडीसे मधुवन ९ कोस दूर है यात्रियोंके समयमें (दिवालीसे चैत्र तक ) दुकानदार मधुवनमें रहते है जिनके पाससे यात्री लोग खाने पीनेका सामान लेते है | मधुवनमें ठहरनेके लिये ३ कोठियां है. जिनमें २ दिगम्बरियोंकी तथा एक श्वेताम्बरियोंकी है । सर्वसे ऊपर जो कोठी बनी है वह बीसपंथी ( दि० जैन ) कोठी है. उसके बाद श्वेताम्बरी कोठी है तथा सर्वसे नीचे तेरापथी ( दि० जैन ) कोठी है. यात्रीका जहां दिल चाहे वहां ठहरे, किसी बातकी रुकावट नहीं है, तीनों कोठियोंकी धर्मशालायें लाखों रुपयोंकी लागत की बनी हुई हैं । जिनमें एक साथ हज़ारों यात्री ठहर सकते है, हर एक कोठीमें अपना २ मंदिर भी है, जैनशास्त्रोंके देखनेसे मालूम होता है कि इस सम्मेदशिखरसे अनन्तानन्त चौवीसी मोक्षको गई हैं और अनन्तानन्त चौवीसी जायँगी तथा वर्तमानकालकी चौबीसी - मेंसे श्रीऋपमदेवजी, बांसुपूज्यस्वामी, नेमनाथजी तथा महावीर स्वामीको छोड़कर बाकी के २० तीर्थकर इसी पर्वतसे मोक्षको गये है, इससे इस पर्वतका कंकड २ पवित्र है, इस लिये पहाड़पर मल
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(३४)
मूत्रको डालना थूकना तथा जूता पहिनकर जाना भी एक तरहका पाप है, उससे यात्रीको वचना चाहिये । __ यात्रीको चाहिये कि वह स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहिन ४ बने रात्रिके लगभग पर्वतबंदनाके लिये चले और वन्दना करके डेरापर लौट आवे । पर्वतपर जानेके लिये सरकारी रास्ता ऐसा बना है कि अन्धेरी रातममी यात्री अकेला चला जा सकता है। मधुवनसे अढाई मील ऊपर चढनेसे गंधर्वनाला आता है-वहांसे डेढ मील ऊपर जानेसे सीतानाला आता है, इस नालेका पानी वरफ जैसा ठंडा रहता है, यहांपर यात्री लोग अपनी २ पूजनकी सामग्री व पुन धो लेते हैं, यहासे १ मील तक पत्थरकी सीढ़ियां भी बनी है। बड़ा विलक्षण आनंद मालूम होता है, एक तरफ नालेका कलकल शब्द सुनाई पड़ता है, दूसरी ओर प्रकृति देवीका रमणीक उपवन (बगीचा ) लह लहाता दिखाई पड़ता है । साम्हने सीढ़ियोंकी पंक्ति अत्यंत मनोहर दीख पड़ती है, उन गगनचुम्बी शैल शिखरोंको देखतेही चपल मन उनके पास उड़ जाता है। उन महात्माओंको धन्य है कि जिन्होंने अपने तथा जगतके उपकारके लिये ऐसा निर्जन स्थान दंदा । आज तक भी उस जंगलमें उन ऋषियोंके पवित्र उपदेश की झनक कानोंमें पड़ती है। उनका उपदेश भी कैसा था जिसकी शान्त, उदार तथा पवित्र छायामें सारे संसारके प्राणियोंको सच्ची शांति मिलती थी ( सत्वेषु मैत्री गुणिषुप्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरित्वम्, माध्यस्थमावे विपरीतवृत्ती, सदा ममात्मा विदधातु देवः)।
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(३५) अस्तु यात्री सूर्योदयके करीब २ गौतमस्वामीकी गुमठीके पास पहुँच जाते है, फिर कुंथुनाथकी टोंक आती है इसके बाद क्रमसे, नमिनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, श्रेयान्सनाथ, पुष्पदन्त, पद्मप्रभु तथा मुनिसुव्रत स्वामीकी टोंकके दर्शन करते हुए चन्द्रप्रमुकी टोंकपर जाते है फिर दक्षिणकी ओर क्रमसे आदिनाथ अनन्तनाथ, सम्भवनाथ, वांसपूज्य और और अमिनंदननाथकी टोंकपर जाते हुए जलमंदिरमें जाते है वहांके दर्शन करके फिर ऊंचे चढ़कर गौतमस्वामीकी टौकपर जाते है वहांसे चलकर क्रमसे धर्मनाथ, सुमतिनाथ,
शान्तिनाथ, विमलनाथ, सुपार्श्वनाथ, महावीरस्वामी, अजितनाथ __ और नेमिनाथकी टोकपर जाकर अन्तमें पार्श्वनाथ स्वामीकी टोकपर
नाना चाहिये । यह टौंक सबसे ऊंची होनेके कारण चारों तरफसे कई कोसकी दूरीपरसे दिखाई देती है। यहांसे पार्श्वनाथ स्वामीने मोक्ष लाम किया था। जैनशास्त्रों में इसका नाम सुवर्णमद्र लिखा है, इस जगहसे बहुत दूरकी चीजें दिखाई पड़ती है, दूसरी ओरको नीमयाघाट व गोमोह स्टेशन नजर आता है। इस टोंकसे दो फोग नीचे सरकारी बंगला है, बंगलासे थोड़ी दूर आनेपर दो मार्ग मिलते है, जिनमें से बायें हाथवाले रास्तेको छोड़ देना चाहिये, क्योंकि वह नीमयाघाटको जाता है, दूसरे रास्तेसे ४ मील उतरनेपर गन्धर्वनाला मिलता है यहापर जलपानके लिये लड्ड वगैरह मिलते हैं। यहांसे चलकर यात्री चायका वगीचा पार करता हुआ ठीक मधुवनमें आ जाता है । प्रायः १२ बजे तक यात्री लौटकर आजाता है । ३ री बन्दनाके वाद यात्री लोग पर्वतकी परिक्रमा देते
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(३६) है-परिक्रमाका रास्ता प्रायः १३ कोसके लाभग है. जो भाई पैदल जानेसे अशक्त हैं वे डोलीकरके भी जा सकते है । डोलीका माड़ा २॥ ) रुपयाके करीब लगता है । डोलीकी जरूरतवालोंको चाहिये कि वे वन्दनाके एक दिन पहले ही कोठीके मुनीमको डोलीके लिये सूचना दे देवें । बालकोंके लिये गोदीवाले भी मिलते है । यात्री लोग आरामके लिये, वर्तन वगैरह भी कोठीसे रसीद लेकर ले सकते है शिखरजीसे यात्री कलकत्ता इत्यादि छोड़ कर चम्पापुरी जाना चाहें तो वे गिरीडी नाकर नाथनगरका टिकट लेवें, और जो कलकत्ता जावें वे ईसरी व गिरीडी जहां चाहें वहां जावें हावडाका टिकट लेवें, गिरीडीसे कलकत्ताका किराया २%) लगता है व ईसरासे २) लगता है। कलकत्तेमें हरीसनरोड बड़े बाजारमें ३,४ धर्मशालायें हैं १ सेठ रामकृष्णदासनीकी तथा दूसरी बाबू सूर जमलकी हैं दो और किसीकी है, कलकत्तेमें दिगम्बरियोंके ५,६ मंदिर हैं तथा श्वेताम्बरियोंके ३-४ हैं। वहांसे गुणावा, पावापुरी तथा राजगृही होते हुए पटनाकी टिकट लेवें वहांसे आरा जावें। जिसको शिखरजीसे काशी या कलकत्ता न जाना हो व सीधा दक्षिणकी तरफ जाना हो तो वे ईसरीसे गोमो या आसनपोल जाकर नागपुरका टिकट लेवें । या जो खंडगिरी जाना चाहें वे गोमोसे सीधा मुवनेश्वरका टिकट लेवें।
शिखरजीसे जो आदमी कलकत्ता व खंडगिरी जाना चाहें उनको प्रथम खंडगिरी जाना चाहिये । खंडगिरी जानेवालोंको
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·
( ३७ )
1
ईसरी जाना होगा, वहांसे तीसरा स्टेशन गोमोह ( Gomoh ) वहांका टिकट लेवें बाद वहासे सीधा भुवनेश्वर स्टेशनका टिकट लेवें भाड़ा करीब ४ ) चार रुपया लगता है, गोमोहसे गाड़ी बदलना होगी तथा खरगपुर भी गाड़ी बदली जायगी फिर सीधे भुवनेश्वर पहुँच जायगे । वहासे बैलगाड़ी या तांगामें जाकर अपूर्व प्राचीन तीर्थ दर्शन करें । इस जगहपर ऐसी २ कई एक गुफायें पहाड़ में उकेरी हुई है कि जिनको देखकर हमारे प्राचीन कला कौशल्य की याद आ जाती है । स्थान ऐसा रमणीक तथा मनोहर है कि छोड़नेको जी नहीं चाहता । ठहरनेके लिये धर्मशालाका प्रबन्ध भी हो रहा है ।
वहाके दर्शनकर पीछे कलकत्ता आवें जिसे खंडगिरी उदयागिरी नहीं जाना है वह सीधा कलकत्ता जावे । वहासे चंपापुरी, ( नाथनगर ) नवादा, पावापुरी, राजगृही, कुण्डलपुर, विहार होता हुआ पटनाको चला जाय ।
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(३८)' (सम्मेदशिखर माहात्म्यादि यंत्र ) ट्रंकोंक तीर्थंकरोंके कितने मुनि दर्शन करनेका नाम. नाम. मोक्ष गये. ___ फल.
नंबर.
-
सिद्धवर- अजित । एक अरव अस्सी कूट । नाथ कोड चौवन लाख
बत्तीसकोटिप्रोषध व्रत करनेसे फल प्राप्त होता है सो एकहीवार
नव कोडा कोड़ि वहत्तर बियालीस लाख
संभव
२ | धवलदत्त
ट्रंकका दर्शन करनेसे लाख वियालीस हजार |
प्रोषधोपवासका सातसो
फल होता है
नाथ
आनंद
अभिनंद-सत्तर कोड़ा कोड़ी सत्तर
कोडिसत्तर लाख विद्या. एक लक्ष प्रोषधोलीस हजार नवसो नवाण पवासका फल
ननाथ
। ४ / अविचल
सुमति
एक कोड़ा कोड़ी चोरासी कोड़, बहत्तर लाख, इक्यासी हजार सातसो
एक कोड़ि प्रोषधोप
वासका फल
नाथ
निन्यानवे कोडि, सत्यासी । मोहन । पद्मप्रभु | लाख, तियालीस हजार
__सातसोसत्तावीस
एक कोड़ि पोषधोप
पासका फल
प्रभास
उनचास कोड़ा कोड़ि सुपार्थ | चोरासी क्रोड, बहत्तर | बत्तीस कोड़ि प्रोषधो नाथ लाख सातहजार सात
पवासका फल सो बियालिस
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(३९)
एंकोंके तीर्थकरोंके नाम, नाम.
कितने मुनि मोक्षगये.
दर्शन करनेका
फल.
ललित
भजी
चोरासी अरव, बीस कोड़ि, बहत्तरलाख, चोरासी हजार, पां
चसो पञ्चावन
| सोला लाख अस्सी हजारप्रोषधोपवासका फल
सुप्रभ | पुष्पदंत
निन्यानवे कोड़, नव__ लाख, सात हजार
सातसो अस्सी
एककोड़ प्रोषधोपवासका फल
९
विद्यत | शीतल
अठारा कोड़ा कोड़ि, वि. शीतल ] यालीस कोडि, बत्तीस नाथ लाख, बियालीस ह
जार नवसो पांच
एककोड़ प्रोषधो पवासका फल
श्रेयांस । छयानव
संकुल
छयानवे कोड़ा कोड़ि, | छयानवे कोड़ि, छया- | वत्तीसकोड़ प्रोष
नवे लाख, नवहजार धोपवासका फल पचिसो बियालीस
नाथ
-
पार | विमल
| सत्तर कोडि साठलाख
छ हजार सातसो, बियालीस
एककोड़ प्रोषधोपवासका फल.
नाथ
स्वयंभू
अनंत
नाथ
छयानवे कोड़ा कोड़िसत्तर कोड़ि सत्तर लाख सत्तर हजार सातसो
एककोड़ प्रोषधो पवासका फल
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________________
(४०)
-
नम्बर.
एंकोंके तीर्थंकरोंके नाम | नाम.
|
कितने मुनि मोक्ष गये
दर्शन करनेका
फल
| १३ | सुदत्तवर
उनतीस कोडाकोडि, धर्मनाथ |
| उन्नीस कोडि, नवलाख नवहजार सातसो. पंचाणवे
एककोड़ प्रोषधो पवासका फल.
नव कोडाकोडि, नवलाख, एककोड़ प्रोषधो१५ | प्रभास शांतिनाथ नवजार नवसो निन्यानवे पवासका फल.
।
छयानवे कोड़ाकोडि, छयाज्ञानघर | कुंथुनाथ नवे कोडि, बत्तीसलाख
छयानवे हजार, सातसो
बियालीस.
एककोड़ प्रोषधो .पवासका फल.
| १६
नाटक
निन्याणवेकोडि, निन्यानवे- छयानवे कोडिप्रोषधोअरनाथ |
| लाख निन्यानवे हजार पवास फल.
शवल, मल्लिनाथ
छयानवे कोड़ि
एककोड़ प्रोषधोपवासका फल.
मुनिसुन
निन्यानवे कोड़ा कोड़ि
निन्यानवेकोडिनवलाख, | तनाथ
नवसो निन्यानवे
एककोड़ प्रोषधोपवासका फल.
-
१९ | मित्रधर | नमिनाथ | नवसो कोड़ाकोड़ि एक
अरब, पेंतालीसलाख,सातहजार, नवसो बियालीस..
एककोड़ प्रोषधोपवासका फल.
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ट्रंकों के तीर्थकरों नाम के नाम
२० सुवर्णभद्र पार्श्वनाथ
नम्बर.
नोट- पर्वतोंकी चोटीको ड्रंक या कूट कहते हैं
दिल्ली से
हिंडौनरोड से चांदनपूर से
हिंडौन रोडसे
जयपुर से
अजमेर से
चित्तौड़ से
( ४१ )
कितने मुनि मोक्ष गये
चोरासीलाख
कोटिको कोटिसे गुणाकरने को फोड़ा कोड़िक
हते हैं कोड़ि तथा कोटि को ढ़ सख्यावाचक शब्द है
चादनपुर
हिंडौन रोड
जयपुर
अजमेर
चित्तौड़
उदयपुर
श्री ऋषभदेव तीर्थंकरसे अंत तक महावीर स्वामीपर्यंत वर्त्तमान
चोवीसी में इतने मुनि मोक्ष गये हैं.
श्री गिरनारजी तरफकी यात्रा । बड़ी ।
हिंडौन रोड ( रेलगाड़ी.) ११४ मील
३२
दर्शन करनेका
फल.
७६
८४
दोगतिका बंध छूट जाता है
११५
६९
सोलापहर वार प्रका
रके अहार तजनेको होता है. एक प्रोषध व्रत
मील ( बैलगाड़ी )
""
मील ( रेल )
मील ( रेल )
मील ( रेल )
मील ( रेल )
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उदयपुर से केशरिया से उदयपुर से
इन्दौर से
बनेड़ा से
इन्दौर से बड़वानी से
मऊकी छावनी से सनावद
सनावद से
सिद्धवरकूट से
बड़वाहा से
खंडवा से
अकोला से
अंतरीक्ष से
कारंजाजी से
भातकुली से
एलिचपुर से
मुक्तागिरी से
अमरावतीसे से
(४२)
केशरियाजी ३०
उदयपुर
इन्दौर
बडा
इन्दौर
बड़वानी
मऊकी छावनी
नागपुर से
कामठी से
रामटेक से
सिद्धवरकूट
बड़वाहा
एलचपुर
मुक्तागिरी
अमरावती
नागपुर
कामठी
रामटेक
कामठी
९०
२६०
१६ मील ( बैलगाड़ी )
७७
३९
११४
९
१९
33
मील (बैलगाड़ी )
39
"
मील ( रेल )
""
खंडवा
मील ( रेल )
अकोला
३४ ५६४ अंतरीक्ष पार्श्वनाथ १९ कोस ( बैलगाड़ी )
मील ( रेल )
कारंजा
२० कोस ( बैलगाडी )
भातकुली
१७
कोस ( बैलगाड़ी )
११
क्रोस ( बैलगाड़ी )
२
मील ( बैलगाड़ी )
३०
मील (बैलगाड़ी )
मील ( बैलगाड़ी )
मील ( बैलगाड़ी )
मील ( रेल ) मील बैलगाड़ी
मील ( रेल )
मील ( रेल ) मील (बैलगाड़ी )
35
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कामठी से मनमाड़ से
नासिक से
गजपंथा से
नाशिक से
से
पूना
बारसी से
कुंथलगिरी से
बारसी से
बम्बई से सूरत से
बड़ोदा से
पावागढ़ से
बड़ोदा से
अहमदावाद से
पालीताना से
भावनगर से
जूनागढ़ से
गिरनारजी से
जनागढ से
नटलसर से
महसाना से
मनमाड़
नासिक
गजपंथाजी
नाशिक
पूना
बारसी
१६८
११५
कुंथलगिरी २५
वारसी
बम्बई
( ४३ )
३६७
४६
२३४
१६७
८१
पावागढ़ हिल ३० बड़ोदा
सूरत
बड़ोदा
जूनागढ़ ""
जटलसर १६
मील ( रेल )
मील रेल
मील बैलगाड़ी
महसान २०२
तारंगा हिल ३६
"7
मील रेल
मील रेल
मील बैलगाड़ी
""
""
अहमदाबाद ६२ मील रेल
पालीताना १८०
मील रेल
भावनगर ३३
मील रेल
जूनागढ़ १२७ मील रेल गिरनारजी ४ मील तांगा
""
मील रेल
मील रेल
मील रेल
मील रेल
14
मील रेल
मील रेल
मील रेल
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तारंगा से आबूरोड से आबूजी से 'आबूरोड से
जयपुर से
अजमेर से
चित्तौड़ से
( ४४ )
१७
आबूरोड १०० आबूजी आबूरोड अपने घर |
उदयपुर से चित्तौड़ से
शिखरजीसे सीधे गिरनारजीको जानेवालेको ईसरी स्टेशनसे आगरा फोर्टका टिकिट लेना चाहिये. आगरेसे सोनागिरी हा आवे - बाद वहासे लोटकर आग्रा जावे. वहांसे एक टिकिट महसाणाका लेवे. उसीसे यात्री एक दिन जयपुर एक दिन अजमेर उतर सकता है चाद वहांसे जूनागढ़का टिकट लेकर गिरनारजी जावे, रास्तेमें टुंडला. आगरा- बांदीकुई महेसाणा, वीरमगाम - वढवाण-घोला व नेतलसर गाड़ी बदलनी पड़ती है.
39
अजमेर
चित्तौड़
मील रेल
मील तांगा
श्री गिरनारजीकी यात्रा । छोटी.
६९
१९१
""
८४ मील रेल
११६
मील रेल
उदयपुर
६९
मील रेल
उदयपुर से केशरियानाथ, ३०
मील ( बैलगाड़ी )
केशरिया से उदयपुर
चित्तौड़
इन्दौर
""
मील रेल
मील रेल
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(४५) इन्दौर से सनावद ५२ मील रेल सनावद से सिद्धवरकूट ६ मील बैलगाड़ी सिद्धवर कूट से बड़वाहा बड़वाहा से खंडवा ३४ मील रेल खंडवा से अकोला १६४ मील रेल अकोला से अंतरीक्ष १९ कोस बैलगाड़ी अंतरीक्ष से कारंजा " " कारंजा से मातकुली १७ कोस बैलगाड़ी मातकुली से एलिचपुर ११ कोस , एलिचपुर से मुक्तागिरी २ मील , मुक्तागिरी से अमरावती ३० मील , अमरावती से भुसावल १४३ मील रेल भुसावल से मनमाड ११४ मील रेल मनमाड से मांगीतुंगी २४ कोस बैलगाड़ी मांगीतुंगी से मनमाड़ २४ कोस बैलगाड़ी मनमाड़ से नासिक ४५ मील रेल नासिक से गजपंथा
मील तांगा गजपंथा से नाशिक नासिक से बम्बई ११७ मील रेल बम्बई से सूरत १६७ सूरत से बड़ौदा ८१. बड़ौदा से पावागढ़ हिल ३० मील
मील
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से बड़ौदा
पावागढ़
बड़ौदा से
अहमदावाद
अहमदाबाद से पालीताना
पालीताना से
जूनागढ़
से गिरनारजी
जूनागढ़
गिरनार से
जूनागढ़ से
वैरावल से
वैरावल से
जूनागढ़ से
तारंगा से
जूनागढ़
वैरावल
बम्बई
(४६)
३०
१२
१८२
१२४
४
आबू जी
आबूजी से आबू रोड से अपने घर
आबू रोड से आबू जी आबू रोड
जूनागढ़
५१
तारंगा हिल २९२
मील रेल
मील रेल
मील रेल
17
११ मील (सोमनाथ) रेल
१०८
१७
मील रेल
मील बैलगाड़ी
( जहाज से आ सकते हैं )
मील रेल
मील रेल
मील रेल
मील बैलगाड़ी
55
दिल्ली से गिरनारजी जानेवालेको एक टिकट दिल्लीसे महेसाणाका लेना चाहिये. रास्ते में वह एक दिन जयपुर में एक दिन अजमेर में दो दिन भबूरोडपर उतर सकता है.
महेसाणा से वारंगाहिलका टिकट लेकर तारंगाका दर्शन कर आवे. बाद लौटकर मेहसाणा आवे. वहासे जूनागढ़का टिकट लेवे वहां गिरनारजीकी यात्रा करके फिर पालीताणा ( शत्रुंजय ) का दर्शन करे. इसपर्वतको श्वेतांवरीलोग सिद्धाचल कहते हैं. उन लोगों के
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(४७)
यहां करोड़ों रुपयोंकी लागतके हजारों मंदिर पहाड़पर हैं. यहांसे भावनगर होकर फिर अमदाबाद जावे वहांसे बड़ोदा होकर पावागढ़हो आ. बाद अंकलेश्वरका टिकट लेकर सजोत हो आवे बाद अंकलेश्वर आकर सूरत जावे वहांसे वारडोलीका टिकट लेकर महुआ हो आवे. वहांसे लौटकर सूरत आवे बाद बंबई जावे.
जैनवद्री मूड बद्रीकी यात्रा ।
बम्बई से पूना, दौड, शोलापूर होकर आरसीकेरी स्टेशन का टिकट लेना चाहिये बम्बईसे शोलापुर का किराया 81 ) तथा वहासे आरसीकेरीका ४|)| लगता है
1
नैनवद्री जानेके लिये आरसीकेरीसे २ दिनके लिये खानेका सामान और एक नौकर जो उस देशकी तथा हमारी भाषा समझता हो साथमें ले नावे | यहांसे १० मील पर श्रवणबेलगुल स्थित है । धर्मशाला में ठहरकर पर्वत वंदना करे । पर्वत दो हैं १ - विन्ध्यागिरी २रा चन्द्रगिरी है । पर्वत पर जानेके लिये स्व० सेठ माणिकचंद 1 जी ने सीढ़ियां लगवा दी हैं जिससे बच्चा भी सुगमता से चला जा सकता है । रास्तेमें ३-४ जगह दर्शन मिलते है । ऊपर श्री गोमट्टस्वामी की मूर्ति शांति मुद्रा युक्त करीव ६३ फुटकी ऊँचाई की खड़ी है । भारतमें इसके समान कोई भी प्रतिबिंब नहीं है । इस पहाड़पुर ७ मंदिर हैं ।
चंद्रगिरी - ( श्री. भद्रबाहु श्रुत केवली ) इसपर भी चढ़नेके
1
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(४८)
लिये सीढ़ियां बनी हुई है । इस पर्वतपर ध्यान करने योग्य बढ़ी २ शिलायें और गुफाये है । चढ़नेवालोंको दाहिनी तरफसे जानेसे श्री भद्रवाहुश्रुत केवली की गुफा मिलती है । उसके भीतर श्रीपरमाचार्यके चरणारविन्द करीब २ वालिस्त लम्बे पाषाणमें अंकित है । इन चरणों पर छत्ररूप एक बड़ा भारी पर्वत है । इससे अपूर्व अनुभवका लाभ होता है। पहाड़पर और भी कई जगह मूर्तिये है । जैन वद्रीसे ८० मील पैदल मूडबद्री है सो बैलगाड़ीद्वारा जावे. मद्रास से बेंगलोर होकर आरसीकेरी का टिकट लेना चाहिये.
श्री क्षेत्र सितामृर ।
1
यह प्राचीन क्षेत्र है । यहांपर एक मंदिर करीब १५०० वर्षका प्राचीन है । चैत्रमासमें बड़ा भारी उत्सव होता है स्टेशन तिण्डिवनम् [SIR. ] है । यहांसे करीब १० मीलपर यह क्षेत्र स्थित है ।
प्रसिद्धता ।
दिल्ली -- यह शहर बहुत पुराना है। यह प्राचीन समयसे हर एक राजाओंकी राजधानी होती आई है। हिंदुस्थानमें महान ब्रिटिश राज्यकी राजधानी भी यही है । देखने योग्य स्थान निम्न प्रकार हैं ।
लाल किला, सुनहरी मसजिद, जुम्मासजिद, अजायबघर, घंटाघर पृथ्वीराजका किला, कुतुब सा. की लाठ, चांदनीचौक भरतखंडके
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( ४९ )
अत्युत्तम बजारोंमें से है, अशोक स्तंभ, यहां गोटा किनारी, कपड़े आदिका बहुत व्यापार होता है । जैनमंदिर १५ शिखरबन्द लाखों रुपयोंकी लागतके है । चैत्यालय ७ तथा धर्मशास्त्र २००० है ।
जयपुर - हिंदुस्थानमें यह शहर भी प्रसिद्ध शहरोंमें से है ' जैनमंदिर शिखरवन्द १२ चैत्यालय ६८ और नशियाजी १८ है शास्त्रसंख्या ४००० है|
देखने योग्य स्थान --- महाराजासा० का महल, राम निवास बाग, हवामहल, नयाघाट, पुरानाघाट, । आम लोगों के वास्ते मेओ हास्पिटिल, अजायबघर, पुरानी राजधानी अंबर यहां स्टेशन से आव मील पर एक धर्मशाला है इसके पास ही दो मंदिर है ।
अजमेर -- यहां मंदिर १० है सेठ नेमीचंदजीकी नशिया वहुत ही मनोज्ञ है ।
चित्तौड़ - यहां का किला दर्शनीय है ।
उदयपुर – यह मेवाड़ की राजधानी है । एक बड़ा तालाक अथाह पानीसे भरा हुआ है । यहां कई जैन मंदिर है ।
इन्दौर - यहां ९ बड़े मंदिर है एक चैत्यालय में ७२ प्रतिमा स्फटिक मणि की है । विद्यालय, बोर्डिङ्ग आदि जैन संस्थाओंको । देखना चाहिये । ठहरनेके लिये नशियांजीमें जैन धर्मशाला है । बड़वानीजी — यहां २ धर्मशाला हैं इनमें ठहरें । बड़े सुबह उठकर बंदनाको जाना चाहिये । ४ मील ऊपर जानेसे १६ मंदिर
४
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(५०)
मिलते हैं जो कि नये बने हैं। यहां से १ मील आगे चलगिरी पर्वत है रास्तेमे २० हाथ ऊंची इन्द्रनीत और कुंभकरणकी प्रतिमा हैं। ऊपर पहाड़ पर भी १ धर्मशाला है।
सिद्धवरकूट-यह स्थान चारों तरफ पहाड़ियोंसे घिरा हुआ रेवा नदीके तट पर स्थित है। यहां १ मंदिर हैं। धर्मशालामी है। यहां पर हर वर्ष मेला भरता है । इस पर्वतसे साडेतीन करोड़ मुनि और दो चक्री तथा १० कामदेव मोक्ष गये हैं।
नासिक-टेशनसे शहर ५ मील है । यह शहर गोदावरीके किनारे पर है। वर्तन अच्छे बनते हैं।
पूना-यहांपर दो मन्दिरजी दि. आम्नायके है और ठहरनेके लिये स्टेशनके पास धर्मशाला है। यहांपर चित्रशालाप्रेस देखने योग्य है।
बम्बई-जी. आई. पी. रेलवे से आनेवाले यात्रियोंको बोरीचंदर और बी. बी. एन्ड सी. आई. से आने वालोंको ग्रान्टरोड स्टेशन पर उतरना चाहिये यहांले ।) आनामें घोड़ा गाड़ी भाड़े करके हीरावाग धर्मशालामें आना चाहिये। __ मंदिर ५ हैं । समुद्रके किनारे स्व० सेठ माणिकचंदनांके मंदिरमें स्फटिकमणिकी प्रतिमा तथा सारा चैत्यालय चारों ओर कांचसे जड़ाया गया है। देखने वालोंको कई समोसरण दीखते हैं । यहां विक्टोरिया गार्डन, हेगिंन गार्डन, जनरल पोष्ट आफिस, अपोलो वंदर रेसमकी मिल, टौन हाल, कुलाबा, आदि देखने योग्य स्थान है ।
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(५१) सूरत-यह शहर भी बड़ा हैं। यहां पर ६ जैन मदिर है। टेशनसे) में चंदावाडी नामकी धर्मशाला स्व० सेठ माणिकचंदजी की बनाई हुई है वहां ठहरें । दिगम्बर जैन का आफिस भी देखने योन्य है।
बड़ौदा-जैन मदिर २ है । एक कन्याशाला भी है । देखने योन्य स्थान-जलकल, देवमन्दिर, वड़ावाग, चिडियाखाना राजमहल, राममहल, सोने और चांदी की तोपें, तालाव आदि हैं। ___ अहमदावाद-यात्रियोंके टहरनेकास्थान तीन दरवाजाके ननदीक प्रेमचन्द मोतीनंद बोर्डिंगमें धर्मशाला है यहापर दिगम्बर अनियों के मदिर २ हैं। एक बोकि है । देखने योग्य स्थान-स्वामी नारायण का मंदिर, पिंजरापोल, चिन्तामणिका श्वेताम्बर मंदिर, सांवर मतीनदी आदि हैं यहां कपटे बुननेकी बहुतसी मिलें है.
कलकत्ता-ई. आई रेलवे बंगाल नागपुर रेलसे आनेवालीको हायडा स्टेशनका व भासाम तरफसे ईस्टर्ने बेंगॉल रेलसे आनेवालेको सालदाह स्टेशनका टिकट लेना चाहिये. यह शहर हुगली नदी के किनारेपर है. स्टेशनसे आठ आनेमें घोड़ागाड़ी किराया करके करीव १ मील दूर हेरीसन रोडपर सेठ. रामकिसनदास हरकिसनदास व वा. सरजमल नीकी व एक दो अन्य धर्मशाला उस जगहपर है. जहां सुभीता होवे वहा ठहरना चाहिये. ___घ एक धर्मशाला शामाबाई गलीमें सेठ. मोतीचंद लाभ चदनीकी बनवाई है उसमें भी ठहर सकते है.
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(५२) यहा दिगंवरी आम्नायके ६ मंदिर है. हालमें जो नया मंदिर बना है वह रामकीसनदासकी धर्मशालाके नजदीक अपर चितपुररोड नं. ८२ में बहुतही मनोज्ञ वना है. अलावे इसके पुरानामंदिर, अमृतलागलीमें १ हरिपदोबाबूकी गलीमें पुराणीवाडीका मंदिर व कोलूटोलामें एक एक मंदिर है. एक मंदिर वेलगछियामें धर्मशालासे करीब दो माईलकी दूरीपर वीमें है. ट्रामगाड़ी द्वारामी इस वीचेमें शामबजार होकर जा सकते हैं. ___ मंदिरोंके दर्शनके अलावे यहा अजायबघर, चिडियाखाना-दुलीचंदनीका बगीचा, राय वद्रिदासजीका मंदिर (श्वेतांवरी) (जो माणिकटोलामें है ) किल्ला फोर्ट विलियमका हायकोर्ट-डेलहाउसी स्क्वेयर-इम्पीरीयल लायब्रेरी-कालीजीका मंदिर आदि स्थान देखने योग्य है.
बनारस-गंगाजीके किनारे पर यह शहर है. मुगलसराय स्टेशनसे आते समय गंगाजीके पुलपरसे इस शहरका दृश्य बहुतही सुंदर मालूम पड़ता है. ___ यह बहुत प्राचीन शहर है । राजघाट उर्फ काशी स्टेशन या बनारस छावणी स्टेशनसे करीव १ मील दूरपर मैंदागिनीमें विहारीलालकी धर्मशाला चोकपर टाउनहॉलके नजदीक है वहां या भीलपुरमें भी धर्मशाला है वहां ठहरें. मेंदगिनीमें धर्मशालावा मंदिर है। वहांसे दर्शनकरके भीलपुराका दर्शन करके शहरमें दो मंदिर और चैत्यालय भी है उनका दर्शन करें।
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( ५३ ) यहा ताचे पीतलके बरतन बहुत उमदा बनते है. रेशमी कपड़ा व कसबी कामका कपड़ा बहुत बढ़ीया तैयार होता है. ___ गंगाकिनारे मदेनीघाटपर स्याद्वाद महाविद्यालय तथा बोर्डिग हाउस है. यात्रियोकों उसका निरीक्षण करके उसमें यथाशक्ति मदद भी देना चाहिये. ___ श्री पार्श्वप्रभू श्री सुपार्श्वनाथ स्वामीको मदिर किनारेपर देखने योग्य है.
यह शहर वैश्णवसप्रदायका बहुत पवित्रस्थान गिना जाता है. विश्वनाथ महादेव के अलावे हजारों शिवालय यहां नजर आते है गंगाकिनारे मणिकर्णिका घाट तथा अन्यघाट देखने योग्य हैं. यात्रियोंको नावमें बैठकर नदी किनारेका दृश्य देखना चाहिये. चार आनेमें तीन आदमी नावमें जा सकते हैं. ___ यात्रियोंको यहासे घोड़ा गाड़ी या बैलगाड़ी किराये करके चंद्रपुरी सिंहपुरीका दर्शन कर आना चाहिये.
कानपुर-यह शहर दिल्लीसे २७० मील ( पूर्व यमुना नदीके) किनारे ईस्टइन्डिया रेलवेका स्टेशन है. यहां पाच रेले इकट्टी होती हैं. अनाजके व्यापारमें हिंदुस्थानमें दूसरा शहर है.
चमड़ेका जूता-तथा अन्य सामान भी यहां वाहुल्यतासे बनता है.
यहां लालइमली मील मूरमिल-येलनिन मील अन्य स्थान देखने योग्य हैं.
यहां शहरमें तीन मंदिर है. बड़े मदिरमें वेदीके - अरेरी काम देखने योग्य है.
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(५४) स्टेशनके पास धर्मशाला है. एक छोटी धर्मशाला शहरमें मंदिरके रास्ते भी है. __ अलाहावाद-स्टेशनके पास धर्मशाला है. यहां जैन अजैन सब लोग ठहरते है. शहरमें भी पंचायती मंदिरमें ठहरनेको भी छोटी धर्मशाला है. यहां तीन मंदिर है. एक वोर्डिंगहाउस कर्नल गंजमें वा० सुमेरचंदकी धर्म पत्नीका स्थापित किया हुआ भी है.
देखने योग्य स्थान-किला-यमुना गंगाका संगम-पबलिक पार्क वगैरह।
श्री सम्मेद शिखरजीसे भारतवर्षके बड़े बड़े " शहरोंतक जानेकेलिये रेल किरायेकी सूची.
नोट-१. श्री सम्मेद शिखरजी इस्टईन्डिआ रलेवेकी गिरीडी स्टेशनसे १८ मील ईसरी स्टेशनसे १४ मील दूर पड़ता है. पक्की सड़कका रस्ता है.
दोनो स्टेशनपर गाड़ी मिलती है. मगर जबसे ईसरी स्टेशन खला है तवसे प्रायः गिरीडीका रास्ता बंद हो गया है.
अब तो ईसरीमें स्टेशनपर दिगंबरी कोठीकी तरफसे धर्मशालाका कुआ बनकर तैयार हो गया है।
२. ईस्ट इन्डिया रेलवेसे दूसरी दूसरी रेलवेलाईनोंके स्टेशनोंका जो भाड़ा लगता है. वह भी जहांतक मिला है इस सूचीमें लिखा गया है ।
३ ईसरीको गिरीडीसे ईस्ट इन्डिया रेलवेके जंकशनोंका माडा लिया है. जिन भाईयोंको जिस जंकशन द्वारा जाना हो वह उस
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( ५५ )
जंक्शनसे अपने ग्रामके बड़ी स्टेशनसे क्या किराया लगेगा उसका
हिसाब उसपर से निकाल लेवें.
किस स्टेशन से
कलकत्ता (हावरा )
भागलपुर ( मंदारगिरि )
नाथनगर (चंपापुरी)
आसनसोल
मोकामाघाट
बक्ख्तारपुर (पावापुरी)
दीघाघाट via बांकीपुर
आरा
मोगलसराय (काशी)
मिरजापुर
मानिकपुर
कटनी
जबलपुर
अलाहाबाद (प्रयाग)
कानपुर
फरुक्खाबाद
गिरीडीतक
कामाड़ा
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(५६)
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आगराफोर्ट अलीगढ़ हाथरस गाजियावाद दिल्ही
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किस स्टेशन से
आसनसोल से गोमोहसे
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आसनसोल
कलकत्ता
आसनसोल
गोमोह
कलकत्ता से
दीघाघाट -मोगलसराय
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अलाहाबाद
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(५७)
अन्य रेलवे लाईनका भाड़ा.
कहांतक
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रांची
भुवनेश्वर ( खडगिरि)
जगन्नाथपुरी
भुवनेश्वर
भुवनेश्वर
नागपुर
39
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छपरा
काशी
बनारस
लखनौ
अयोध्या
सहारानपुर
मुरादाबाद लखनौ
29
जैपुर
बड़ोदा ( नागदा उज्जैन ) अहमदाबाद (Via बांदीकुई) अजमेर
कोटा (Via नागडा )
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कानपुर
97
जवलपुर जबलपुर
33
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कटनी
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37
मानिकपुर
33
(५८)
कहांतक
घड़ोदा Via बांदीकुई
अहमदाबाद
अहमदावाद V18
मथुरा आनद Via बांदीकुई बंबई Via नागडा वड़ोदा या अहमदाबाद पांदीकुई चित्तौड़गढ़ V18 अजमेर अजमेर
इन्दोर Via नागडा उज्जैन वा मथुरा
मथुरा
मथुरा
बंबई
आमलनेर
नरसिंहपुर
खंडवा
ग्वालियर
झासी
झासी
नागदा
ग्वालियर Via झासी सोलापुर Via धौड व मनमाड़
पुना Via धौंड
नाशिक
धूलिया
वीना
सागर
दमोह
झासी
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जबलपुर
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मनमाड़
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दिल्ली
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(५९)
बंबई
आमलनेर नाशिक
वरधा अमरावती
कहांतक
खडवा अकोला
सोलापुर
पूना
मनमाड़
मनमाड़
हैदराबाद
जालना
सिकदराबाद फीरोजपुर
लाहोर
मुलतान
मेरठ
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( ६० )
श्रीजैनग्रन्थ उद्धारक कार्यालय चंदावाड़ी बम्बईका
सूचीपत्र |
खासकी छपाई हुई पुस्तकें ५ के मूल्यमें ६ भेजी जा सकती हैं।
समयसार नाटक - स्वर्गीय कविवर वनारसीदासर्जाका नाम किसने न सुना होगा, उनकी कविता कैसी है इसका निर्णय करना हम पाठकोके ऊपरही छोड़ते हैं. यह ग्रंथ १३६ पृष्टका चिकने कागजपर छपकर हालहीमे तैयार हुआ है | अध्यात्म प्रेमियोंको इसकी एक प्रति अवश्य मंगाकर देखना चाहिये । पाठशालाओंके संचालकोंसे निवेदन है, कि, वे विद्यार्थियोंको इसे कठ करावें । मूल्य आठ आना ।
जैनगीतावली - यह पुस्तक स्त्रीयोपयोगी है सो भी बुन्देलखण्ड प्रान्तके लिये अधिक उपयोगी होगी कारण इसके लेखक महाशय उसी प्रान्तके हैं । पुत्रोत्पत्ति, ज्योंनार, विवाह, मुण्डन, वन्दनादि सुअवसरोंपर गाने योग्य उत्तम २ धार्मिक गीतोका संग्रह है । थोड़ीसी प्रतियॉ शिलकमे हैं जल्दी मगाइये । दाम पाच आना ।
स्वर्गीय जीवन -- एक अग्रेजी पुस्तकका हिन्द के सम्राट पं. महावीरप्रशादजी द्विवेदीने निम्नप्रकार विषय हैं ।
अनुवाद है इसकी सरस्वतीमें मुक्तकठसे प्रशंसा की है । इसमे
( १ ) विश्वका उत्कृष्ट तत्त्व, (२) मनुष्य जीवनका परमतत्व (३) जीव-नकी पूर्णता शारीरिक आरोग्य और शक्ति ( ४ ) प्रेमका परिणाम ( ५ ) पूर्ण शातिकी सिद्धि (६) पूर्ण शक्तिकी प्राप्ति ( ७ ) सब पदार्थोंकी विपुलता - समृद्धिशाली होनेका नियम । ( ८ ) महात्मा सत और दूरदर्शी होनेके नियम । ( ९ ) सब धर्मोका असली तत्व - विश्वधर्म (१०) सर्व श्रेष्ठ धन प्राप्त करनेकी रीति । पृष्टसख्या १६२ | मूल्य ग्यारह आना | सजिल्द ||
।
लघुअभिषेक - - इसमे निम्नप्रकार विषय हैं । अधिकतर वीसपंथी भाइयोंके कामकी है भापा कुछ गुजराती तथा हिन्दी है ।
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(६)
१ चैत्यालय पठन २ दर्शनविधि : नकार विनती ४ पूजनगामग्री लघुभाभिषेक ६ क्षेत्रपाटपूजा अभिषेर ८ मंगल ९ देवपूजा १० अष्टक ११ जयमाला १० ग्राम १३ नोस नीर्थकरनी आरती १४ शान्तिपाठ १५ विसर्जन आदि विषय है । पृटसरया ४० । मूल्न भई भाना...
आलोचना पाठ-नया ही घर नयार हुआ है। पहले मूल पाठ, फिर शहार्य उनके चार अर्थ और नीचे टिप्पणी भी लगाई गई है । इस प्रकार समान गुन्दर घरा है। विद्यार्थियों के लिये गस उपयोगी पुन्नर है । मूल्य मवा आना।
जैन तीर्थयात्रा विवरण--नया ही छपस गार हुआ है । ऐना महामन्ने प्रमण करके दगमे गा माल दिया है । यम इनफा पागम रग
ज्यि भार माना मग्न वन टानिये वही भी पटिनाई अभया नफलीफ न न होगी। रािया, टहग्नेश म्यान, मार्ग, दूरी, पोर आफिन, सा गार्ग पहलना चाग्यि ? आदि ३ आषयक बानोमा पूर्ण रालामा दिया है । माघमें १ वा नरमा नारे भाग्नपरामर सनिय रसान, कमन नान महित दिया गया है मम्मे मिरर फोटो भी गम्मरित है। मल्य घर भागा।
शीघ्र ही प्रकाशित होगा। ऋपि मंडल पूजन विधान ।
(मत्र यंत्र सहित) __ यह ध मिर्फ पढने लिय ही नही है। भान पल दम प्रयके यत्रोंकी मनोद्वारा याहुन महाशयोंने साधना की है जिसने उनको यगयर यथेष्ट (जगी उनका ई मनोरामना यी) सिनि हुई । इस ग्रंथकामगार अलश्य लाभ उठाना चाहिये । मूल्य अनुमान Injक परीय होगा। दिवालीपाट प्रालित होगा ।
दूसरोंकी छपाई हुई पुस्तकें और ग्रंथ । श्रावक धर्म सग्रह-मास्टर दरयावसिंह माधियाने इमरी फितनेही
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( ६२ )
शास्त्रोके आधारसे लिखा है प्रत्येक धावकको इसे अपनेपास खरीद कर रखना चाहिये । मूल्य २1) रक्खा है । सुन्दर जिल्द वैधी है ।
गोमट्टसार - यह भाषा टीका सहित छपा है इस ग्रंथकी प्रशंसा करनेकी जरूरत नहीं है। कीमत दो रुपया ।
भगवती आराधना - यह ग्रथ खुले पत्रोंमे छपा है । पं सदासुखदासजीकृत वचनिका सहित । इसमे शुद्ध निश्चय नयका वर्णन है । मूल्य चार रुपया ।
जिनेन्द्र गुण गायन -गजल, कव्वाली, दादरा रेखता, ठुमरी, टप्पा, केहरवा, होली इत्यादि के ८० भजन इसमे सग्रह किये हैं, सर्व ही नई तर्जके हैं । मूल्य दो आना ।
जैन उपदेशी गायन -इसमें भी ऊपर की भाति ५३ भजनोंका संग्रह किया है। मूल्य अढ़ाई आना ।
जैनार्णव- १०० पुस्तकोंका सग्रह | सफरमे इसे साथ रख लीजिये और - अच्छे २ स्नात्रोका स्वाध्याय करते जाइये । मूल्य सादी १) सजिल्द ११ )
श्रेणिक चरित्र - महाराज श्रेणिक राजा की कथा बड़ीही सुन्दर है । आज कलकी भाषामे संस्कृत परसे अनुवाद किया है । जिल्द बहुत बढ़िया बॅधवाई गई है | मूल्य १ || | )
नाटक समयसार - भाषा टीका वचनिका खुले पत्रोंमे । मूल्य २ || ) भक्तामर कथा -- यंत्र जत्र और साधनविधि सहित मूल्य सादी १ ) -सजिल्द १1)
अष्टसहस्त्री -- यह संस्कृत भाषामें है, अभी हालही में छप कर तैयार हुआ - हैं । प्रत्येक मंदिरोंमें इसकी प्रति अवश्य रहना चाहिये | मूल्य २ ॥ )
जैन सम्प्रदाय शिक्षा -- यह ग्रंथ भी हिन्दी भाषा है । प्रत्येक जैनीभाईको मगाना चाहिये । सजिल्दका मूल्य ३॥ )
- न्यायदीपका --- हिन्दी भाषा टीका सहित सर्वके समझने योग्य । मूल्य ॥) चर्चाशतक -द्यानतरायजीका बनाया हुआ है सरल हिन्दी भाषा टीका सहित | मूल्य ॥]
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(६३) धर्मसंग्रह श्रावकाचार-आचारका प्रथ है इसे अवश्य देखना चाहिये । मूल्य २)
पद्मनन्द पच्चीसी यह बड़ा सुन्दर प्रथ है । मूल्य चार रुपया ।
स्याद्वादमजरी--इस प्रथमे स्याद्वादविषयके ऊपर बहुत विवेचना की है । हिन्दी भाषा टीका सहित छपकर तयार है । न्योछावर ४)
भाषा पूजा-इसमे सव पूजा तथा विसर्जन शांति पाठ आदि जो कुछ है सव भाषाहीमें है ।न्यो०४
पंच भंगल--नया छपफर तयार हुआ है। विद्यार्धियोके बड़े कामकी चीज है । मूल्य तीन आने।
महेन्द्र कुमार नाटक- के सपादक माननीय पं. अर्जुनलालजी सेठी घी, ए हैं आजतक जनसमाजमें ऐसा सुन्दर नाटक तयार नहीं हुआ था। नमाज सेठीजीके उच्च विचारोंसे तथा उनकी कार्यप्रणाली और नि स्वार्थ जाति सेवासे भलीभांति परिचित है । इसे मगाकर पढ़ना चाहिये और खेलना भी चाहिये । मूल्य आठ आना।
प्रद्यनचरित्र भाषा वचनिका- इस प्रयमे श्रीकृष्ण नारायणके पुत्र प्रद्युम्नकुमारकी कथा यहुतही भावपूर्ण लिखी गई है । एकवार पढना शुरू कर दीजिये छोड़नेको जी नहीं चाहेगा । मूल्म Rin)
नित्यनियम पूजा-(संस्कृत तथा भापा)-तीसरीवार शुद्धता पूर्ण छपी है मूल्य चार आना।
तत्त्वार्थ सूत्रकी वालबोधनी टीका-यह जैनियोंका प्रिय प्रय है। छपाई बहुतही उत्तम है । मूल्य II पारा आना ।
जैनपद संग्रह-१ ला भाग ( दौलतरामजी कृत) छह आना। जैनपद संग्रह-२ रा भाग ( कविवर भागचंद्र कृत) मूल्य चार आना। जैनपद संग्रह-५ वा भाग ( कविवर वुधजनजी कृत ) छह आना।
सागरधर्मामृत-पंडित आशाधरजी कृत का प० लालारामजीने हिन्दी अनुवाद किया है । श्रावकाचार सम्बन्धी सर्व चातें भरी हुई हैं। मूल्य १॥
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स्वाध्यायोपयोगी जैनमन्थ ।
भाषा
सर्वार्थसिद्धि वचनिका 'आत्मख्यातिसमयसार पद्मनन्दीपच्चीसी
गाम्मटसार कर्मकाड
पुरुषार्थसिद्धयुपाय
प्रवचनसार ३] षट्पाहुड़ ज्ञानार्णव ४] धर्मविलास
पाडवपुराण
यशोधरचरित्र वड़ा
सप्तव्यसनचरित्र
धन्यकुमार चरित्र
चारुदत्तचरित्र
श्रेणिकचरित्र १॥] महावीरचरित्र
धर्मरत्नो द्योतक
सम्यक्त कौमुदी
प्रवचनसार
बनारसीविलास
द्यातनविलास
विश्वलोचनकोष
भगवती आराधना
स्याद्वादमज
नाटकसमयसार
४]
४] वृहद्रव्यसंग्रह मोक्षमार्गप्रकाश द्रव्यसंग्रह चर्चाशतक २) न्यायदीपिका १] | प्रद्युम्नचरित्र बढ़ा
४]
""
१] | प्रद्युम्नचरितसार १] | जम्बूस्वामीचरित्र
२] | भद्रबाहुचरित्र
२]
|| अष्टसहस्री
1] | प्रेमयकमलमार्तड १] शाकटायन प्रक्रिया 1 सुभाषित रत्न सदेह १] | प्रमेय रत्नमाला १] | जीवधर चरित्र
9173 | नेम निर्वाण काव्य १] | चन्द्रप्रभु चरित्र
१]
धर्मशर्माभ्युदय
917 ] | द्विसधान काव्य ४] | यशस्तिलक चम्पू पूर्वार्ध
४]
उत्तरार्ध
59
संस्कृत
2077977070.27227♚♚72
Riy
शु
२]
सर्व तरहके ग्रथ मानेका पता -
-
म्यानेजर - जैनग्रंथ उद्धारक कार्यालय, चदावाडी - गिरगाव बम्बई.
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का न बना और सरल भाषा टीकासहित खुले जाने पर भी काम शुरूने ही अपकर तयार हो।
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