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३. जिस महाशयको तीर्थ वन्दना करनेकी शुभेच्छा उत्पन्न हो उसको चाहिये कि वह निज शक्त्यानुसार उन गरीव आदमियोंको भी निनको तीर्थयात्रा करनेकी उत्कण्ठा हो साथ ले आकर अथवा भूखे प्यासेको भोजन वस्त्रादि देकर अपने द्रव्यका सदुपयोग करे.
४. जिस तीर्थपर जाना हो वहांका इतिहास तथा उसके महात्म्यका परिचय प्राप्त करना चाहिये; वह तीर्थस्थान क्योंकर पूज्य हुआ है. उसके द्वारा मानवजातिके क्या २ उपकार हुए है। इत्यादि वाते. जरा परिश्रमसे ढूंढना चाहिये, नहीं तो तीर्थ करनेका पूरा २ फल नहीं मिलता है.
५. जिस तीर्थमें जिस समय जाना हो उस समय वहांपर निन २ महात्माओंने अचल पद प्राप्त किया हो उन सबका जीवन चरित्र पढ़ना चाहिये, उनके गुणोंका चितवन करना चाहिये. उनकी आत्मासे तथा अपनी आत्मासे तुलना करना चाहिये. तथा हमारे वह क्योंकर पूज्य हुए है और अन्य लोगोंसे उनमें क्या क्या विलक्षणता थी इत्यादि बातोंका खूब छानबीन करे. सवेरे और शामको शास्त्रश्रवण या स्वाध्याय करे जिससे ज्ञानवृद्धि हो क्योंकि ज्ञान विना न किसीको सुख मिला है. जिनको उपयुक्त ज्ञान नहीं है वे पृथ्वीकेलिये भार है.
६, जिस तीर्थपर तुम गये हो वहां के यात्रियोंको आराम मिल