Book Title: Jain Tirth Yatra Vivaran
Author(s): Dahyabhai Shivlal
Publisher: Dahyabhai Shivlal

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Page 37
________________ ( ३१ ) शालाके पास वाले नेमनाथ स्वामीके मदिरके दर्शन कर पटना से रवाना होवें और सीधी राजगृहीकी टिकट लेवें. वीचमें बकती आरेपुर स्टेशनपर गाड़ी बदलकर छोटी गाड़ीमें बैठकर राजगृही आवें यह जगह आजसे अढ़ाई हजार वर्ष पेस्तर मगधाधिपति राजा - णिककी राजधानी थी जिसके चिन्ह अव भी है। स्टेशनके साम्हने अपनी धर्मशाला तथा बंगला है यहा की आव हवा बहुत अच्छी है, यह स्थान वैष्णवोंका भी तीर्थ है, यहांपर हर तीसरी साल लौद के महीनेमें बड़ा भारी मेला लगता है जिसमें लाखों आदमी बाहरसे यहा पर आते है, यहापर पंच पहाड़ीके दर्शन करें प्रथम विपुला - चल पर्वतके जहापर भगवान महावीर स्वामीका समोशरण आया था, पीछे रत्नागिरी, उदयागिरी आदि पहाडियोंके दर्शन करें जो भाई एक दम पाचों पहाड़ियोंके दर्शन करने में असमर्थ है वे पहलेकी ३ पहाड़ियोंकी वन्दना करें । दूसरे दिन २ पहाडियोंकी करे | यहांपर डोली तथा गोढ़ी वाले भी आदमी मिलते है । धर्मशालासे १ मील की दूरी पर पहाड़की तलहटी में गरम पानीके कई एक कुड है, यात्री चाहें तो कुन्डमें स्नानकर पीछे वदनाके लिये जावें । ब्रह्मकुन्डका पानी बहुत गरम है, सूरजकुन्डमें यात्री नहाते है, सप्तधाराका पानी वहुत ही उत्तम है, यहासे दर्शनकर बैल गाड़ी द्वारा कुन्डलपुर जावें । यह महावीर स्वामीकी जन्म भूमि है. यहापर पुराने शहर के चिन्ह बहुत दृष्टि गोचर होते है, इसका भी कभी न कभी भाग्य चमकेगा जब कि इतिहासके पत्रे इसके विवरणोंसे सुशोभित होंगे क्योंकि “ कालो ह्ययं निरवधिर्विपुला च 1 ।

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