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दानशासनमें
अर्थ-जब एक जीवको एक दफे रक्षण करनेवाला व्यक्ति विद्वानोंके द्वारा आदर करने योग्य होता है तब सदा सभी जीवोंको रक्षण करनेवाला आदर करने के लिये क्यों योग्य नहीं होगा ? अपितु अवश्य होगा ॥ ४ ॥
. अभयदान परंपरासे मोक्षदायक है. । यः स्थानत्रयवर्तिनस्तनुमतो योगन रक्षत्यसौ ।
राजासौ सुकृती दयालुरनघः सोऽभीतिदानी गुणी ॥ तेनाधीतमिदं श्रुतं बहुकृतं दानं च तप्तं तपः । सर्व सत्क्रमतो निजेष्टफलदं निश्रेयस लभ्यते ॥ ५ ॥ अर्थ-जो राजा अपने महल, नगर और देशवासी आश्रितजनोंको मन वचन कायसे रक्षा करता है वह राजा पुण्यवान है, दयालु है, पापरहित है, गुणवान है एवं वही सच्चा अभयदानी है। सचमुचमें उसीने सर्वशास्त्रोंको अध्ययन किया है, बहुत दान किया है, बहुत तप तपा है, वह इस प्रकारके नीतिमार्गसे चलनेवाले राजाके लिये सभी ऐहिक इष्टसिद्धि होने के साथ २ मोक्षकी भी प्राप्ति होती है ॥५॥
- देवाद्याभयदानतोऽरिनृपरोगावृष्टिभौतिक्षयो। ..... जायते कुलदीपकास्सुकृतिनस्त्यक्त्वामृतात्यामयाः ।
वर्द्धताल्पमयं भवेदिह सुखी निष्कंटकोऽग्रे भवे ।। । देवो वा सकलावनीशविनुतः श्रीसार्वभौमो विभुः ॥६॥ ' अर्थ-जो राजा देव गुरु शास्त्रोंके प्रति आये हुए संकटोंको दूर करता है, धर्मप्रभावनाके मार्ग में आये हुए विघ्नोंको दूर करता है वह राजा इस अभयदानके फलसे, शत्रुराजावोंकी बाधा, रोग, अतिवृष्टि, अनावृष्टिं, इत्यादिके भयसे पीडित नहीं होता है, वह सचमुचमें कुलदीपक है। पुण्यवान् है । कोई भी रोग उनके पास नहीं आने पाते हैं। उसका सुख दिन प्रतिदिन निराबाधरूपसे बढता है