Book Title: Dan Shasanam
Author(s): Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govindji Ravji Doshi

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Page 318
________________ औषधदानविचार २७९ प्रसन्न हों, लेकिन वचन व मनमें शिथिलता आगई हो, पेट भी श्रम (भूक ) से व्याकुलित हो, तथा भोजन करने की इच्छा भी हो, तो वही भोजन का योग्य समय जानना चाहिये । उपर्युक्त लक्षण की उपस्थिति को ज्ञात कर उसी समय आयुर्वेदशास्त्रोक्तभोजनविधिक अनुसार भोजन करें । आगे भोजनक्रमको कहेंगे ॥ १० ॥ भोजनविधि. स्निग्धं यन्मधुरं च पूर्वमशनं भुजीत भुक्तिक्रमे । मध्ये यल्लवणाम्लभक्षणयुतं पश्चात्तु शेषानसान् ॥ ज्ञात्वा सात्म्यबलं सुखासनतले स्वच्छे स्थिरस्तत्परः । क्षिप्रं कोष्णमयं द्रवोत्तरतरं सर्वर्तुसाधारणम् ॥ ११ ॥ अर्थ- भोजन करने के लिये जिसपर सुखपूर्वक बैठ सके ऐसे साफ आप्तनपर स्थिरचित्त होकर अथवा स्थिरतापूर्वक बैठे । पश्चात् अपनी प्रकृति व बलको विचार कर उसके अनुकूल थोडा गरम [ अधिक गरम भी नहो न ठण्डा ही हो ] सर्व ऋतु के अनुकूल ऐसे आहार को, शीघ्र ही [ अधिक विलंब न भी हो व अत्यधिक जल्दी भी न हो ] उस पर मन लगाकर खावें । भोजन करते समय सबसे पहिले चिकना, व मधुर अर्थात् हलुआ, खीर, बर्फी, लड्डू आदि पदार्थों को खाना चाहिए । तथा भोजन के बीचमें नमकीन, खट्टा आदि अर्थात् चटपटा मसालेदार चीजोंको व भोजनान्त में दूध आदि द्रवप्राय आहार खाना चाहिये ॥ ११ ॥ भुक्त्वा वैदलसुप्रभूतमशनं सौवीरपायीभवे- । न्मय॑स्त्वोदनमेवचाभ्यवहरंस्तकानुपानान्वितः ॥ स्नेहानामपि चोष्णतो यदमलं पिष्टस्य शीतं जलं । पीत्वा नित्यसुखी भवत्यनुगत पानं हितं प्राणिनाम्॥१२॥ अर्थ-भोजनमें दालसे बनी हुई चीजोंका ही, मुख्यतया उपयोग करना

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