Book Title: Dan Shasanam
Author(s): Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govindji Ravji Doshi

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Page 336
________________ शास्त्रदानविचार २९७ है, नमस्कार करता है, एवं पीछेसे उन रत्नत्रयधारियोंकी निंदा करता है, वह अज्ञानी जीव है । उसकी दीनता, भक्ति आदि ठीक उसी प्रकारकी है जैसे कोई सूने प्राममें बंधनकाष्ठमें किसीके पैरको फसाने पर रास्ते चलनेवालोंको देखकर वह दीनताको धारण करता है, स्तुति करता है, प्रशंसा करता है, हाथ जोडता है, आदि अनेक मायाचार पूर्ण क्रिया करता है। इसी प्रकार साधुवोंकी प्रशंसा सामने कर पीछेसे निंदा करनेवाले की दशा है ॥ ४२ ॥ ___ गुरुके प्रति क्रोधका निषेध सदृष्टिं विबुधं दयालुममलं चारित्रवंतं गुरुं । ये कुप्यंति शपंति चेतसि सदा प्रद्वेषमाकुर्वते ॥ तेषां सर्वधनं हरंति यद, सज्ज्ञानमाहंति तद् प्रस्तेऽर्के तमसा यथा जगदिदं तद्वत्सचित्तो भवेत् ॥४३॥ अर्थ- जो सम्यग्दृष्टि, विद्वान्, दयालु, निर्मल, व चारित्रधारी अपने गुरुवोंके प्रति क्रोधित होते हैं, उनको गाली देते हैं, एवं चित्तमें सदा द्वेष करते हैं, उनके सर्व धनको चोर आदि अपहरण करते हैं, एवं उसके ज्ञानको पापचोर नष्ट करता है। जिस प्रकार सूर्यके राहुप्रस्त होनेपर यह लोक अंधकारसे आवृत होता है, उसी प्रकार उसके चित्तकी दशा होती है, अर्थात् अज्ञानांधकारसे आवृत होता है ॥४३॥ अन्यनिंदाफल ज्ञानं पुण्यमयं श्रियं शुभधियं तेजोऽभिमानं गुणं । बंधुत्वं शपनं निहंति सुगति स्नेहं चरित्रं दृशम् ॥ कुर्यानीचगतिं परिग्रहरुजां दैन्यं विषाद सतां । मृत्युं बंधनवैरताडनमिइकद्वित्रिबंधादिकं ॥ १४ ॥ अर्थ--दूसरोंको एवं साधुवोंको गाली देनेसे ज्ञान व पुण्यका नाश होता है, पुण्यकारक परिणामोंको नाश करता है। संपत्ति, शुभबुद्धि, तेज,

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