Book Title: Dan Shasanam
Author(s): Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govindji Ravji Doshi

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ भावलक्षणविधानम् द्वेषविकार से दुःख होता है तथा परलोकमें भी पापोदय से दुःख ही मोगना पडता है । अतः आपसमें द्वेष ईर्ष्या वगैरह छोडने चाहिये जिससे उभय लोकमें सुख होता है ॥ १९ ॥ ये स्वस्वानाश्रितास्तेषां मनोऽनुगुणवर्तिनः । - अभेदविषयासक्ताः केचिद्वेश्याजना इव ॥२०॥ अर्थ:-जिस प्रकार वेश्या जो धन देते हैं उनके मनके अनुकूल वर्ताव करती हैं एवं अभेदरूपमें विषयासक्त होती हैं उसी प्रकार इस संसारमें कोई २ सज्जन होते हैं ॥२०॥ वृथा मृत्युं गता मीनाः पललेशाशया यथा । विवेकरहिताः केचिद्विनष्टा ईषदाशयाः ॥ २१ ॥ अर्थ-जरासे मांसके टुकडेके लोभसे मछलियां अपने प्राणको खो लेती हैं, इसी प्रकार इस संसारमें कई विवेकरहित सज्जन क्षुद्र अभिप्रायके वशीभूत होकर नष्ट होते हैं ॥ २१ ॥ काहारा भारपिच्छन्ति किञ्चिन्नान्दोलनस्थितिम् । कृतांहसो यथा केचित्कर्मभारान्वहन्त्यलम् ॥२२॥ अर्थः-कहार लोग केवल भारको चाहते हैं या भारको जानते हैं, कंपकपीमें [ झूले ] रहे हुए कोई पदार्थकी अपेक्षा व परिज्ञान उनको नहीं है । इसी प्रकार इस संसारमें कई सज्जन कर्मार्जन करते हुए कर्मभारको ही वहन करते हैं ॥ २२ ॥ विशंन्त्यहन्यवटं नक्तं यान्ति लांभनका यथा। पुण्यकालेऽतिविमुखाः पापे केचित्सुखच्छवः ॥२३॥ __ अर्थ-जमीन खोदने वाले मनुष्य दिनमें गड्ढा खोदते हुए नीचे जाते हैं परंतु जब रात हो जाती है तब ऊपर आते हैं उसी तरह कितनेक पुरुष पुण्य करने के समय में पुण्य कृत्य से विमुख होकर

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380