Book Title: Dan Shasanam
Author(s): Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govindji Ravji Doshi

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Page 365
________________ ३२६ दानशासनम् अर्थ-घर पर जिस समय चोर आयें उस समय घरवाले जगते हों तो वे चोर भाग जाते हैं, चोरी नहीं करते, इसी प्रकार विवेकसे जो मनुष्य जागृत है उसे पापरूपी चोर स्पर्श नहीं करता है ॥७४॥ ये कुर्वन्ति बाल सुताय सततं तैराश्रयन्ति ग्रहास्तं मत्कोटकमक्षिकाच चटका देशं च काका इव ॥ ते गौडं मकदान्यवामनिशं दातृनिमे याचकाः । निःशंकं मुदृशं च दीनमिति तं मत्वा विमुश्चंति ते ॥ ७५ ॥ अर्थ-जो पुत्रप्राप्ति के लिए बलि देते हैं । तथा प्रहोंका जप पूजनादिक कार्य करते हैं। ऐसे लोगोंका याचकजन आश्रय करते हैं। जैसे गुडका मत्कोटक, मक्षिका वगैरह प्राणी आश्रय करते हैं। परंतु जो पुत्रप्राप्ति के लिए बलि देना, प्रहपूजन इत्यादिक कार्य नहीं करते हैं जो निःशंक और सम्यग्दृष्टि हैं, उनका याचक लोग आश्रय नहीं करते हैं । ऐसे पुरुषोंको दीन समझकर याचक त्याग करते हैं ॥७५॥ येऽन्यद्विषः सुतप्रीता जीवन्ति स्वपरिग्रहे । तेषां न भूतिर्न मनास्वास्थ्यं रोगादिभिथा ॥ ७६ ।। अर्थ-जो अपने पुत्रोंके प्रति प्रीति करते हुए, दूसरोंसे द्वेष करते हैं, सदा अपने परिग्रहोंको ही संरक्षण करना चाहते हैं, उन की संपत्ति व्यर्थ है, उनका मन भी मलिन है । स्वास्थ्य भी रोगादि से संयुक्त होता है अर्थात् वे सदा अस्वस्थ रहते हैं ।। ७६ ॥ दत्तयमुक्तवचनं निशाम्य तद्वारमाश्रित्य चिरं वसंति । दैन्यं कृतं भूरि यथेतदर्थो लब्धो न मोचाश्रितकीरवाराः ॥७७॥ ___ अर्थ-अमुक दाता दान देता है ऐसा वचन सुनने पर याचक उस के द्वारका आश्रय लेकर दीर्घ कालतक याचना करते रहते हैं। और जिस वस्तु की प्राप्ति के लिए याचना करते हैं वह वस्तु नहीं

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