Book Title: Ashtpahud Author(s): Jaychandra Chhavda Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti View full book textPage 6
________________ 1 कथाभी वैसीही सुनी जाती है जैसी कि गृद्धपिच्छके विषयमें कुन्दकुन्दाचार्य की है। और कुंदकुंदाचार्य सीमंधर स्वामीसे संबोधित हुए इस विषय में भी श्रीश्रुतसागरसूरिने लिखा है कि — सीमंधरस्वामिशानसंबोधितभव्यजनेन, इस से हम कुछ संदिग्ध होते हैं कि शायद दोनों व्यक्ति एकही हों परंतु जबतक कोई पुष्ट प्रमाण न मिलै तबतक हम संदिग्धावस्था में रहने के सिवाय और कर ही क्या सकते हैं । यदि कहीं कुंदकुंदके नामों में उमास्वामि नामभी होता तब तो फिर सन्देहको भी स्थान न मिलता फिरभी इतना जरूर है कि इनका कोइ न कोइ गुरु शिष्यपनेका सम्बध परस्पर में अवश्य होगा । गृद्धपृच्छ कुंदकुंद हों या उमास्वामि हों दोंनोंका ही यशोगान इस दि० जैन समाजमें पूर्ण रीति से बड़ी भक्ति तथा श्रद्धासे जुदे २ नाम द्वारा गाया जाता है। तथा गृद्धपृच्छ नामसे भी किसी किसी ग्रंथकर्ताने अपनी आन्तरिक भक्ति प्रदर्शित की है जैसे कि वादिराज सूरिने अपने पार्श्वचरित्र ग्रंथमें सब आचार्यों से प्रथम गृद्धपृच्छस्वामीका क्या ही अपूर्व शब्दोंमें गुणानुवाद पूर्वक नमस्कार किया है अतुच्छ गुणसंपातं गृद्धपिच्छं नतोऽस्मि तं । पक्षीकुर्वति यं भव्या निर्वाणायोत्पतिष्णवः ॥ १ ॥ जो प्रधान २ गुणों का आश्रय दाता है तथा मोक्ष जानेके इच्छुक उड़नेवाले पक्षियोंके पांखकी तरह जिसका आश्रय लेते हैं उस गृद्धपृच्छको मैं नमस्कार करता हूं । कुंदकुंदके विषयमें भाषाटीकाकार पंडित जयचंद्रजी छावड़ा तथा पं० वृंदावनदासजी वगैरः अनेक विद्वानोंने भी बहुत से अभ्यर्थनीय वाक्योंसे स्तुतिगान १ जासके मुखारविंदतें प्रकाश भासवृंद स्यादवादजैनवैन इंदु कुंदकुंदसे । तासके अभ्यासतें विकाश भेदज्ञान होत, मूढ सो लखे नहीं कुबुद्धि कुंदकुंदसे ॥ देत हैं अशीस शीसनाय इंदु चंद जाहि, मोह - मार-खंड मारतंड कुंदकुंदसे । विशुद्धिबुद्धिवृद्धिदा प्रसिद्ध ऋद्धिसिद्धिदा हुए न, हैं न, होहिं गे, मुनिंद कुंदकुंदसे ॥ कविवर वृन्दावनदासजी.Page Navigation
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